आज भी 80% महिलाएं परचून की दुकान तक जाने के लिए भी लेती हैं इज़ाजत

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आज भी 80% महिलाएं परचून की दुकान तक जाने के लिए भी लेती हैं इज़ाजतआज भी 80% महिलाएं परचून की दुकान तक जाने के लिए भी लेती हैं इज़ाजत

हम सब खूब बातें करते हैं कि महिलाओं को पुरुषों के बराबर हक मिलना चाहिए, उन्हें भी अपने हिसाब से ज़िंदगी जीने का हक हैं। लेकिन इन सब बातों से दूर हकीकत आज भी कुछ और है। ज़िंदगी को अपने हिसाब से जीने की बात तो दूर उन्हें परचून की दुकान तक जाने के लिए भी इजाज़त लेनी पड़ती है।

“घर में मेरी सास का दबाव है कि पहले बच्चा पैदा करूं, तब मायके जाऊं। अभी तो मेरा शादी करने का मन भी नहीं था। मैंने सिर्फ इंटर की परीक्षा ही दी थी कि मेरा ब्याह हो गया। मैं आगे पढ़ना चाहती थी।” ससुराल वालों की मनमर्जी का दर्द बयां किया उत्तर प्रदेश में लखनऊ के कमता ब्लॉक में रहने वाली पारुल (20 वर्षीय) ने।

इंडिया स्पेंड की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 15 से 81 वर्ष की महिलाएं अपने पति-पिता, परिवार और रिश्तेदारों की मर्जी के अनुसार अपना जीवन जीतीं हैं। करीब 73 प्रतिशत लड़कियों के जीवन साथी का का चुनाव माता-पिता और रिश्तेदार करते हैं, सिर्फ पांच प्रतिशत ही भारतीय महिलाएं अपनी मर्जी से पति का चुनाव करती हैं। यही नहीं, 80 प्रतिशत भारतीय महिलाएं किराने की दुकान और अस्पताल जाने के लिए भी पति व पिता की इजाजत मांगती हैं। यहां तक कि घर में खाना क्या बनेगा, इसका निर्णय भी उनके घर के मुखिया ही लेते हैं। अभी हाल में सुप्रीम कोर्ट ने बच्चे पैदा करना या गर्भपात करना या गर्भधारण करने का अधिकार महिलाओं का बताया।

पारुल आगे बताती हैं, “मेरे पापा ने शहर में जाकर अच्छे कॉलेज से पढ़ाई करने की बात कही थी, लेकिन जब से शादी हुई है, तब से घरवालों ने जि़द बना ली है कि पहले बच्चा करो फिर उसके बाद पढ़ाई करो।”

हर गांव तक अभी तक नहीं पहुंच पाई बदलाव की बयार।

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एसोसिएशन फॉर एडवोकेसी एंड लीगल इनिशिएटिव (आली) की कार्यकारी निदेशक रेनू मिश्रा बताती हैं, गर्भधारण के समय गर्भवती महिला के शारीरिक और मानसिक और मनोवैज्ञानिक तरीके से प्रभाव पड़ता है और इस पर बहुत ज्यादा दबाव देना भी हानिकारक है। यह उसका फंडामेंटल राइट्स है। क्योंकि यह उसके जीवन का सवाल है। इसलिए एक वकील होने के नाते औरत का ही हक होना चाहिए कि उसे गर्भधारण कब करना है यह उसका मौलिक अधिकार है।

उत्तर प्रदेश में लखनऊ से 34 किमी दूर बीकेटी ब्लॉक के खानीपुर गाँव की ज्योति अवस्थी (30 वर्ष) बताती हैं, “हमने गाँव में ही रहकर एम फार्मा, बी फार्मा की पढ़ाई की है। मैं अपने गाँव की सबसे ज्यादा पढ़ी-लिखी लड़की हूं। मेरे परिवार वालों ने मेरी शादी बहुत अच्छे घर में की। मैं आज बच्चों को पढ़ाती हूं, लेकिन शादी के तुरंत बाद मुझसे बच्चे पैदा करने का जोर दिया गया और नौकरी बाद में करने की बात कही गई। लेकिन मेरी जिद थी कि मैं अभी 2 से 3 साल गर्भवती नहीं होऊंगी, लेकिन पति और सास-ससुर के आगे मेरी न चली और मैं शादी के पहले साल ही गर्भवती हो गई और मुझे एक बेटा हुआ।”

ज्यादातर महिलाएं पति और बेटों से पूछकर करती हैं रसोई के अलावा दूसरे काम। फोटो- गांव कनेक्शन

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ज्योती आगे बताती हैं, “उसके बाद मैंने अपने फ्यूचर के बारे में सोचा, क्या मैं फिर से स्कूल जॉइन करुंगी, लेकिन घर वाले दूसरे बच्चे की जिद करने लगे। दो बच्चे पैदा होने के बाद ही स्कूल में पढ़ाने की अनुमति मिली, जबकि मैं पढ़ी-लिखी हूं और मुझे पता है कि एक बच्चे में किसी दूसरे बच्चे के बीच में कितना अंतर होना चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अब मेरी सारी पढ़ाई-लिखाई नौकरी चली गई है। क्योंकि मेरे दो छोटे बच्चे हैं और मेरे ऊपर उनकी जिम्मेदारी है।”ज्योति से जब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बारे में बात की गई, तो उन्होंने कहा, “समाज और कानून में बहुत अंतर है। कानून समाज की कुरीतियों को बहुत हद तक दूर करने का प्रयास करता है, लेकिन उसे बहुत लंबा समय लग जाता है। हमें इतनी भी आजादी नहीं है कि अपनी मर्जी से कुछ खा सकें।”

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