सुलझ नहीं रही छात्राओं की उन दिनों की उलझन

Meenal TingalMeenal Tingal   28 Dec 2016 8:47 PM GMT

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सुलझ नहीं रही छात्राओं की उन दिनों की उलझनफोटो साभार: इंटरनेट

मीनल टिंगल

लखनऊ। छात्राओं की उन दिनों की उलझन आसानी से सुलझ नहीं रही है। कभी सेनेटरी नेपकिन नहीं मिल रही तो कभी उसको फेंकने की दिक्कत छात्राओं के सामने मुंह बाये खड़ी रहती है। यही नहीं इन दिनों में शौच जाने में भी उन बच्चियों को बेहद दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है, जिनके स्कूलों और घरों में शौचालय की व्यवस्था नहीं है।

प्रदेश सरकार द्वारा स्कूलों में पढ़ने वाली बच्चियों को सेनेटरी नेपकिन वितरित किये जाने की योजना की शुरुआत तो की गयी लेकिन यह पूरी तरह से कारगर साबित नहीं हो रही। इस योजना का एक उद्देश्य यह भी था कि इन दिनों में बच्चियों की उपस्थिति स्कूल में पूरी रहे लेकिन ऐसा भी देखने को नहीं मिल रहा है। ऐसा नहीं है कि यह समस्या केवल गाँवों के स्कूलों में पढ़ने वाली बच्चियों को ही आ रही है। शहर के स्कूल भी इससे अछूते नहीं हैं।

राजकीय बालिका इंटर कॉलेज शाहमीना रोड की प्रधानाचार्या प्रीता शुक्ला कहती हैं कि नेपकिन तो किसी तरह बच्चियां खरीद ही लेती हैं लेकिन उससे भी बड़ी समस्या है इस्तेमाल किये गये नेपकिन फेंकने की। इनके कारण कई बार शौचालय चोक होने की स्थिति बन चुकी है। स्कूल के नये बने शौचालय में नेपकिन डिस्ट्राय करने की मशीन लगायी गयी थी लेकिन उसको बच्चियां इस्तेमाल नहीं कर पाती हैं।

इस बारे में काकोरी स्थित पूर्व माध्यमिक विद्यालय कठिंगरा के प्रधान अध्यापक शाहिद अली आब्दी कहते हैं कि स्कूल के शौचालय में बाल्टी रखवा दी है लेकिन बच्चियां शर्म के कारण नेपकिन उसमें नहीं फेंकती हैं। उसको टॉयलेट में डाल देती हैं जिसके चलते कई बार टॉयलेट चोक हो चुकी है। बच्चियां उन दिनों में स्कूल आने में भी कतराती हैं क्योंकि वह जानती हैं कि स्कूल में ऐसे में यही दिक्कत सामने आएगी। यही नहीं बच्चियां घर पर शौचालय न होने के कारण काफी शर्माती हैं और उनको ऐसे दिनों में भी शौच के लिए बाहर जाना पड़ता है। वह शिक्षिकाओं से इस बारे में शिकायत भी करती हैं कि घर पर माता-पिता इस बारे में नहीं सोचते हैं।

शाहजहांपुर के आर्य कन्या इंटर कॉलेज की शिक्षिका आशा सिंह ने बताया कि केवल एक बार सेनेटरी नेपकिन आया था। उसके बाद अब तक कभी नहीं आया। छात्राएं इंतजार करती रहीं लेकिन अब वह खुद ही खरीद लेती हैं। स्कूल में नेपकिन फेंकने के लिए डस्टबिन रखा जाता है लेकिन उसका इस्तेमाल करने की बजाए टॉयलेट में नेपकिन फेंके जाते हैं। कई बार शिक्षिकाओं ने छात्राओं को समझाया है लेकिन फिर भी उस समझाने पर शर्म ज्यादा हावी रहती है और वह नेपकिन टॉयलेट में ही फेंकती हैं। छात्राओं की संख्या भी कम ही रहती है।

हरदोई स्थित वीवीएम इंटर कॉलेज के प्रधानाचार्य प्रेम प्रकाश मिश्रा ने बताया कि कई महीनों पहले स्कूल में नेपकिन बांटे गये थे जिनके बारे में छात्राओं को जानकारी देने के लिए अस्पताल से महिला नर्स को बुलवाया गया था क्योंकि स्कूल में शिक्षिका नहीं थी। नेपकिन फेंकने के लिए भी बच्चियां टॉयलेट शीट का ही इस्तेमाल करती हैं, जिससे काफी दिक्कतों का सामना स्कूल को करना पड़ता है।

कक्षा 12 में पढ़ने वाली नेहा मिश्रा जो कि रसूलपुर, ब्लाक बक्शी का तालाब की निवासी हैं वह कहती हैं कि मेरे जब पीरियड होता है तो मैं स्कूल नहीं जाती। पहले मैं नेपकिन स्कूल के टॉयलेट में डाल दिया करती थी लेकिन जबसे स्कूल में ऐसा करने से मना किया गया है तबसे मैं इन दिनों में स्कूल ही नहीं जाती हूं, क्योंकि मुझे शर्म आती है। स्त्रीरोग विशेषज्ञ व वात्सल्य संस्था की प्रमुख डॉ. नीलम सिंह कहती हैं कि आज के दौर में केवल गाँव की लड़कियां ही नहीं बल्कि शहर की लड़कियां भी पीरियड्स के बारे में बात करने में संकोच करती हैं। जमीनी स्तर पर किये गये सर्वे के अनुसार एक बात साफ हुई है कि पीरियड्स के दौरान होने वाली मुश्किलों पर अगर शिक्षिकाएं और अभिभावक बच्चियों से खुलकर बात करें तो स्थिति में सुधार हो सकता है।

      

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