श्रमिकों की बेटियां कर रहीं सेनेटरी पैड का उपयोग

Mohit AsthanaMohit Asthana   1 Jun 2017 10:04 PM GMT

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श्रमिकों की बेटियां कर रहीं सेनेटरी पैड का उपयोगमाहवारी विषय पर जानकारी देतीं अध्यापिका

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

बहराइच-सहारनपुर-कानपुर। श्रमिकों की बेटियां सरकार द्वारा चलाए जा रहे विहान स्कूल और कस्तूरबा गांधी स्कूल में न सिर्फ बेहतर शिक्षा पा रही हैं, बल्कि पीरियड जैसे विषय पर बेबाकी से बात भी कर रही हैं। कभी माहवारी के समय गंदे कपड़े का इस्तेमाल करने वाली ये छात्राएं अब माहवारी के दिनों में साफ़-सफाई रखने के साथ ही सेनेटरी पैड का इस्तेमाल कर रही हैं।

बहराइच जिला मुख्यालय से लगभग 45 किमी. दूर पूर्व-दक्षिण दिशा में बेहड़ा गाँव में कस्तूरबा गांधी आवासीय विद्यालय में पढ़ने वाली चौदह वर्षीय गुड़िया देवी बताती हैं, ‘जब हम गाँव में रहते थे हमें नहीं पता था सेनेटरी पैड भी कोई चीज होती है, जब पहली बार पीरियड हुआ तो हमारी बड़ी बहन ने पुरानी फ्रॉक फाड़ कर दे दी, उसका इस्तेमाल करने से बहुत खुजली हुई, हमेशा ऐसे ही गंदे कपड़े का प्रयोग करते थे, क्योंकि इसे गन्दा खून मानते थे।’

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गुड़िया की तरह इन स्कूलों में पढ़ने वाली हजारों छात्राएं जिन्होंने कभी पैड का इस्तेमाल नहीं किया था, माहवारी पर कभी बात नहीं की थी आज वो टीचरों के बीच में खुलकर बात करती हैं, अपनी परेशानी बताती हैं, पैड इस्तेमाल करने के साथ ही साफ-सफाई का ध्यान रखती हैं। महावारी दिवस पर सभी कस्तूरबा और विहान विद्यालयों में जागरुकता कार्यक्रम चलाया।

गुड़िया खुश होकर आगे कही हैं, ‘जब कस्तूरबा गांधी में पढ़ने आए तो यहां मैम ने सेनेटरी पैड इस्तेमाल करने को दिया, पहली बार माहवारी के दिन बहुत आराम से कट गए, जब यहां शुरू में मैम बात करती थी तो शर्म लगती थी, क्योंकि घर पर कभी मम्मी ने बात नहीं की, अब हमें बहुत जानकारी हो गई है।’

केन्द्र सरकार ने सर्वशिक्षा अभियान‎ को बढ़ावा देने के लिए कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय योजना के निर्देशन में देशभर में 750 आवासीय स्कूल खोलने का प्रावधान किया है। इन विद्यालयों में कम से कम 75 फीसदी सीटें अनुसूचित जाति व जनजाति, पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक वर्गों की बालिकाओं के लिए आरक्षित होती हैं, बाकी 25 फीसदी गरीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन करने वाले परिवार की बालिकाओं के लिए है।

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वहीं श्रम विभाग द्वारा निर्माण श्रमिकों के बच्चों के लिए प्रदेश में 24 विहान स्कूल खोले गए हैं, जिसमें 12 छात्राओं के हैं। इन छात्राओं को शैक्षिणिक ज्ञान के साथ व्यवहारिक ज्ञान पर खास ध्यान दिया जाता है। प्रदेश भर में चल रहे इन स्कूलों में महिला समाख्या के तत्वाधान में 33 कस्तूरबा गांधी और 12 विहान बालिका स्कूल का संचालन किया जा रहा है।

महिला समाख्या की श्रम परियोजना की स्टेट कोऑर्डिनेटर रेवा चौबे का कहती हैं, ‘जितने भी विहान बालिका स्कूल चल रहे हैं, इसमें पढ़ने वाले श्रमिकों के बच्चों की माहवारी विषय पर झिझक तोड़ने में बहुत समय लगा, गरीबी की वजह से इन छात्राओं ने कभी यहां पढ़ने से पैड का इस्तेमाल नहीं किया था, अब ये पैड का इस्तेमाल गड्ढे में पैड का निस्तारण कर रही हैं।’

बहराइच जिले के शिवपुर ब्लॉक के बेहड़ा गाँव में कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालय की वार्डेन रेखा तिवारी बताती हैं, ‘हर तीसरे दिन शाम को इन छात्राओं के साथ इनके स्वास्थ्य, पंचायत, शिक्षा, सामाजिक व्यवहार पर खुलकर बात करते हैं, स्कूल में एक चार्ट बनाकर टंगा है, जिसमें किस छात्रा को किस तारीख को पीरियड होता है ये डीटेल लिखी होती है, जब उसे पीरियड आता है तो वो उस पर टिक कर देती हैं, जो छात्रा सेनेटरी पैड वितरण का इंचार्ज लिए है उसे पैड दे देती हैं।’

सहारनपुर जिले के देवबंद ब्लॉक के कस्तूरबा गांधी में पढ़ने वाली रितिका गौतम (14 वर्ष) बताती हैं, ‘जब घर में थे तो इस खून को बहुत गन्दा मानते थे, जबसे स्कूल में बताया गया तबसे उस समय नहाते भी हैं और हर तीन घंटे पर पैड भी बदलते हैं।’ वो उदास होकर कहती है, ‘जब पढ़ाई पूरी करके घर वापस जाएंगे पता नहीं पैड खरीदकर इस्तेमाल कर पाएंगे या नहीं, हमारे माँ-बाप मजदूरी करते हैं उनके पास इतना पैसा नहीं है कि हर महीने 30-40 रुपए पैड की लिए खर्च कर पाएं।’

यहां की वार्डेन मंजेश राणा का कहती हैं, ‘यहां की किशोरियां अब बात करने में झिझकती नहीं हैं, हमने स्कूल में ऐसा माहौल बनाया है कि ये खुलकर अपनी बात बता सकें, अगर हर स्कूल में माहवारी पर चर्चा हो तो किशोरियों को कोई परेशानी न हो।’

वो बताती हैं, ‘इनके घरवाले इसे शर्म का विषय मानते हैं अगर टीचर भी बात नहीं करेंगे तो इन्हें पूरी जानकारी कहां से मिलेगी, इनको बेहतर जानकारी मिल सके टीचर को इनसे दोस्ती करना जरूरी है।’

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