जमीनी हकीकत: सफाई के सही तरीकों से अंजान ग्रामीण महिलाएं

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जमीनी हकीकत: सफाई के सही तरीकों से अंजान ग्रामीण महिलाएंफोटो: विनय गुप्ता

श्रृंखला पाण्डेय

लखनऊ/बाराबंकी। ग्रामीण भारत की महिलाएं जागरूकता की कमी और अशिक्षा के चलते खाना खाने से पहले हाथ धोना, प्रतिदिन खुद को और बच्चों को ठीक से नहलाना और शौच के बाद हाथों को ठीक तरह से धोने जैसे कई ज़रूरी तथ्यों को नजऱअंदाज कर देती हैं। यही आदतें उनके स्वास्थ्य को बुरी तरह प्रभावित करती हैं।

बाराबंकी जिला मुख्यालय से लगभग 21 किलोमीटर उत्तर दिशा में कबीरपुर गाँव का रहने वाला रोहन (10वर्ष ) ये नहीं जानता कि खाना खाने से पहले हाथ धोना जरूरी है, क्योंकि उसकी मां या घरवालों ने उसे कभी नहीं बताया। रोहन की मां राजरानी (35वर्ष) बताती हैं, ”अगर ध्यान रहा तो खाना खाने से पहले कभी-कभार हाथ धो लेते हैं। ज्यादातर रसोई का काम करते-करते ही खाना खा लेते हैं।”

राजरानी की तरह गाँव में ज्यादातर महिलाएं स्वच्छता के प्रति जागरूक नहीं हैं। बाराबंकी जिले के कबीरपुर, शहाबपुर और बुढ़वारा गाँव की लगभग 20 महिलाओं से उनके रोजमर्रा की साफ-सफाई की आदतों के बारे में पूछने पर पता चला कि वो नहाने में केवल पांच मिनट का समय लेती हैं और कपड़े बिना साबुन के धुलती हैं। इसके अलावा वे घर की स्वच्छता और खाना बनाते समय भी कोई विशेष सफाई का ध्यान नहीं रखतीं।

कबीरपुर से लगभग पांच किलोमीटर दूर शहाबपुर गाँव की नन्दिनी (24वर्ष) बताती हैं, ”नहाने के लिए कोई बाथरूम तो है नहीं। आंगन में ही रस्सी बांधकर पुरानी साड़ी बांधी है और नल के आगे थोड़ी ऊंचाई तक ईंटें लगा दिये हैं। कोई आ न जाये इसलिए एकदम बेफ्रिक होकर नहीं नहा पाते, जल्दी-जल्दी नहाकर भागना पड़ता है।” वो आगे बताती हैं, ”निरमा-साबुन इतना महंगा है कि साबुन-सर्फ से कपड़े हप्ते में सिर्फ दो बार ही धोते हैं।”

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार डायरिया से हर साल दुनिया में 20 लाख बच्चे मर जाते हैं, जिनमें से हर पांचवा बच्चा भारतीय होता है। डॉक्टरों के अनुसार इन आंकड़ों को केवल साफ-सफाई पर ध्यान देकर ही कम किया जा सकता है। लंदन स्कूल ऑफ हाइजिन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के अनुसार, कायदे से हाथ धोकर 47 प्रतिशत तक डायरिया के खतरे को कम किया जा सकता है।

लखनऊ के विवेकानंद पॉलीक्लीनिक के डॉ. नरेश राजपाल बताते हैं, ”खाने-पीने में साफ-सफाई न होने से अतिसार, हैजा, जुकाम, पेट की कई बीमारियां और बच्चों में डायरिया जैसी समस्या होती हैं। कारण यही है कि काम के दौरान सफाई न बरतने से कई तरह के बैक्टीरिया और वायरस शरीर में घुसकर हमें बीमार कर देते हैं।”

डॉ. राजपाल आगे बताते हैं, ”बच्चों में मौत का सबसे बड़ा कारण डायरिया है, जो गंदगी के कारण ही होता है। मां अगर स्वच्छता का ध्यान रखे तो इस समस्या को कुछ हद तक कम किया जा सकता है।”

खुले में शौच बड़ी समस्या

बाराबंकी से लगभग 25 किलोमीटर दूर बुढ़वारा गाँव की रहने वाली रत्ना कुमारी (32वर्ष) बताती हैं, ”गाँव की सभी महिलाएं शौच के लिए बाहर जाती हैं। यहां जो शौचालय बनाये गये थे, वो इस लायक नहीं हैं कि इस्तेमाल किये जा सकें । किसी में दरवाजा नहीं तो किसी में गड्ढा ही नहीं खुदा। नाम के लिए शौचालय हैं बस।” ग्रामीण भारत में आमतौर पर घर की महिला ही भोजन तैयार करती है। इसलिए उसके हाथों का साफ होना ज़रूरी है।

बुढ़वारा गाँव की रुक्साना बताती हैं, ”शौच के बाद हम मिट्टी से ही हाथ धो लेते हैं। साबुन का खर्चा कौन करे इतने बड़े परिवार में।” ग्रामीण भारत में महिलाओं की एक प्रमुख समस्या खुले में शौच जाना है।

राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (एनएसएस) द्वारा जारी की गई स्वच्छता स्थिति रिपोर्ट के मुताबिक, देश में आधे से अधिक ग्रामीण आबादी अभी भी खुले में शौच करती है। सर्वेक्षण के मुताबिक, अनुमानित रूप से ग्रामीण भारत में 52.1 फीसदी लोग खुले में शौच करते हैं, जबकि शहरी भारत में यह संख्या 7.5 फीसदी है.

इसको समझाते हुए स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. प्रज्ञा अग्रवाल बताती हैं, ”गाँवों में महिलाएं खुले में शौच और खेतों पर काम करने के लिए नंगें पैर चले जाने से उनके शरीर में कीड़े पहुंच जाते हैं, जो आंतों में पहुंचकर खून चूसते हैं, जिससे शरीर में खून की कमी हो जाती है।”

मासिक धर्म के दौरान कपड़े का इस्तेमाल दे रहा बीमारियों को न्यौता

जागरूकता की कमी के कारण ग्रामीण महिलाएं अपनी व्यक्तिगत साफ-सफाई को भी नजरअंदाज करती हैं। ज्यादातर महिलाएं और किशोरियां मासिक धर्म के दौरान कपड़े का इस्तेमाल करती हैं, जिससे उन्हें कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। मासिक धर्म के दौरान साफ-सफाई न रखने से होने वाली समस्याओं के बारे में डॉ. प्रज्ञा अग्रवाल बताती हैं, ”ज्यादातर महिलाएं इस दौरान एक ही कपड़े का इस्तेमाल लंबे समय तक करती हैं, जिससे कई तरह के इंफेक्शन हो सकते हैं और आगे चलकर कई तरह के यौन रोग होने की भी संभावना बढ़ जाती है।”

बाराबंकी के कबीरपुर गाँव की शीला देवी (31वर्ष) बताती हैं, ”हम शुरू से ही पुराने कपड़े इस्तेमाल करते आए हैं। इसके अलावा यहां कहां जाएं खरीदने, दुकानें तो हैं नहीं ज्यादा, और हम महिला होकर कैसे ये सब मांगें, दुकानदार क्या सोचेगा?”

दुनिया भर में सामाजिक मुद्दों पर सर्वे कराने वाली संस्था नीलसन द्वारा भारत में किए गए एक अध्ययन के अनुसार 81 फीसदी ग्रामीण महिलाएं मासिक धर्म के दौरान कपड़े का प्रयोग करती हैं। डॉ. प्रभा अग्रवाल आगे बताती हैं, ”अगर कपड़े का इस्तेमाल कर भी रहीं हैं तो विशेष सावधानी बरतें। एक ही कपड़े को दोबारा इस्तेमाल न करें, अगर करें तो उसे गर्म पानी में साबुन और डिटॉल डालकर धोएं।”

बुढ़वारा गाँव की प्रियंका (17वर्ष) से जब इस विषय पर बातचीत करने की कोशिश की तो कतराते हुए उन्होंने बताया, ”यहां सैनेटरी पैड्स कहीं आस-पास मिलते ही नहीं। एक दो बार बाजार खरीदने भी गये लेकिन दुकानदार आदमी था तो वापस आ गये।” इस तरह ग्रामीण महिलाओं से बात करने पर लगता है कि उनकी साफ-सफाई की समस्याएं जागरूकता की कमी, अशिक्षा और निर्धनता से जुड़ी है। इसके कारण वो अनजाने में कई बीमारियों का शिकार होती हैं। ये भी महसूस किया गया शौचालयों के साथ अनिवार्य रूप से हैंडपंप लगवाए जाएं।

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