महिला घुड़सवार के घुड़साल से निकल रहे मारवाड़ी नस्ल के उम्दा घोड़े

मारवाड़ी घोड़ों की स्थिति को सुधारने के लिए राजस्थान के कुछ अश्वपालकों ने 'भूदान यज्ञ बोर्ड' एवं राज्य सरकार द्वारा मिली जमीन पर 'मारवाड़ अश्व प्रजनन एवं अनुसंधान संस्थान' की शुरूआत की।

Moinuddin ChishtyMoinuddin Chishty   19 May 2018 8:30 AM GMT

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महिला घुड़सवार के घुड़साल से  निकल रहे मारवाड़ी नस्ल के उम्दा घोड़े

जयपुर (राजस्थान)। जोधपुर की युवा घुड़सवार डॉ. पूजा गहलोत को मारवाड़ी घोड़ों के प्रति प्रेम और लगाव अपने पिता किशोरसिंह द्वारा विरासत में मिला, पर घोड़ों के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा उनके अंदर 1997 में पैदा हुआ, जब 'ग्लोबल राइड ऑफ यूके' के मिस्टर जेम्स ग्रीनवुड ने अपने मिशन 'वर्ल्ड टूर ऑन हॉर्स बैक' के लिए जोधपुर से मारवाड़ी नस्ल की एक घोड़ी 'कालिका' को पसंद किया और खरीदा।

जेम्स ने कालिका पर सवार होकर अपना 300 माइल्स का सफर तय किया। वे उसकी स्वामी भक्ति से प्रभावित होकर उसे अपने साथ ले जाने को तैयार हो गए थे। अपने इस 'सर्वे' के दौरान उन्हें एक बात पता चली कि उस वक्त देश में शुद्ध मारवाड़ी नस्ल के केवल 250 घोड़े ही शेष बचे थे।

आज लोगों को वाहनों से चलना ज्यादा आसान रहता है, उससे समय भी कम लगता है और घोड़ों की अपेक्षा खर्च भी कम आता है। घोड़ों का रख-रखाव काफी मंहगा होता है इसलिए दिन पर दिन घोड़ों की स्थिति खराब होती जा रही है।
मारवाड़ी घोड़ों की स्थिति को सुधारने के लिए राजस्थान के कुछ अश्वपालकों ने 'भूदान यज्ञ बोर्ड' एवं राज्य सरकार द्वारा मिली जमीन पर 'मारवाड़ अश्व प्रजनन एवं अनुसंधान संस्थान' की शुरूआत की।
डॉ. पूजा बताती हैं,''मारवाड़ी या मालानी नस्ल के घोड़े विलुप्त होते जा रहे हैं इसलिए भारत सरकार ने इस संस्थान को अपनी दसवीं पंचवर्षीय योजना में 42 लाख रूपयों की अनुदान राशि स्वीकृत की। भारत सरकार के इतिहास में यह पहला मौका था, जब घोड़ों के उत्थान के लिए इतनी बड़ी राशि प्रदान की गई थी। आज पूजा इस संस्थान की सचिव हैं। आगे की कहानी उन्हीं की जुबानी...

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घोड़े होते हैं वफादार
घोड़़ों की सबसे तारीफ की बात है उनकी वफादारी। घोड़ा अपने मालिक की आवाज पहचानता है। वह मालिक की 'देहगन्ध' तक से भी परिचित होता है। वह उस गाड़ी की आवाज तक पहचानता है, जिसे आप चलाते हैं। वह बीमार भी होगा, तब भी आप को अपनी पीठ पर बिठाने से इंकार नहीं करता क्योंकि आप उसके 'मालिक' हैं।
मेरी कामयाबी में घोड़ों की अहम भूमिका रही है
इंग्लैण्ड की अंर्तराष्ट्रीय संस्था 'ग्लोबल राइड ऑफ यूके' की तरफ से 'मारवाड़ अश्व प्रजनन एवं अनुसंधान संस्थान' को प्रमाण पत्र प्रदान किया गया। 'ग्लोबल राइड' द्वारा किसी भारतीय संस्था को दिया गया यह एकमात्र प्रमाण पत्र है। इतना ही नहीं, हमारी संस्थान को 'कोलाम्बिया-इण्डिया एनिमल साईंस इंटरचेन्ज प्रोग्राम' द्वारा भी 2001 में सम्मान पत्र से नवाजा जा चुका है। राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केन्द्र, हिसार द्वारा मुझे 'अश्व पालक किसान सम्मान दिवस' के मौके सम्मानित किया गया। यह सम्मान पाने वाली राजस्थान की एकमात्र महिला घुड़सवार हूं।
अश्वपालन और हमारा परिवार
अश्वपालन के क्षेत्र में हमारा परिवार सदैव अग्रणी रहा है। इस क्षेत्र में मेरे पिता-गुरु किशोरसिंह ही मेरे आदर्श हैं, जिन्हें राजस्थान में इस क्षेत्र का 'पितामह' कहा जाता है। भाइयों अजयसिंह-श्यामसिंह ने भी मेरा अच्छा सहयोग किया है। मैं पिताजी द्वारा बहुत समझाए जाने के बाद दृढ़ निश्चय करके इस क्षेत्र में उतरी और आज 'घोड़ेवाली' के नाम से पुकारी जाती हूं। आज मेरे पास 26 अश्व हैं जिसमें नर-मादा-बच्चे शमिल हैं।
घोड़े को खिलाएं 'गुड़'
घुड़सवारी में एकाग्रता बहुत जरूरी होती है। घुड़सवारी करते हुए हालांकि मुझे डर नहीं लगता, लेकिन दूसरों को सिखाते समय थोड़ी दिक्कत या परेशानी जरूर महसूस होती है। मैं घुड़सवारी सीखाने से पहले अश्वपालकों और सीखने वाले दोनों से यही कहती हूं कि वह घोड़े से दोस्ती कर लें। साथ ही घोड़े के हाव-भाव और उसकी आदतों के बारे में भी बता देती हूं। इसके बाद घोड़े पर सवार कैसे होना है, इस बात की जानकारी देती हूं। घोडे़ को 'गुड़' खिलाने को भी कहती हूं। घोड़े को गुड़ बहुत प्यारा है और गुड़ खिलाने वाले से वह बहुत जल्दी घुल-मिलकर दोस्ती कर लेता है।
मारवाड़ी नस्ल के घोड़ों की संख्या
'होर्सेज इन इण्डियाः इकोनोमिक एण्ड बिजनेस अपोरचुनीटिज ' जैसे विषय पर शोधकार्य (पीएच.डी.) कर कर चुकी डॉ पूजा कहती हैं, ''यह बड़े ही गौरव की बात है कि आज देश में लगभग 10 से 12,000 मारवाड़ी घोड़े हैं। जोधपुर सहित जालोर, सिरोही, बाड़मेर, जैसलमेर, नागौर, बीकानेर इत्यादि स्थानों पर इनकी संख्या लगभग 6 से 7000 हैं। पंजाब मारवाड़ी घोड़ों के लिए दूसरे स्थान पर है और इसके बाद गुजरात है।
भारत सरकार ने भारतीय घोड़ों की 5 नस्लों को विर्निदिष्ट किया जिसमें मारवाड़ी भी शामिल है। यह नस्ल अपनी सुंदरता और तेजी के लिए जानी जाती है। भारत सरकार के डाक विभाग ने मणीपुरी, कठियावाड़ी, मारवाड़ी और जांसकारी नस्ल के घोड़ों पर 5-5 रूपये मूल्य के 30-30 लाख डाक टिकट जारी किए हैं।


घोड़ों से यूं कमाएं लाभ अश्वपालक और किसान
शादी ब्याह और कई प्रकार के उत्सवों में घोड़ों को भेजकर किसान साथी, अश्वपालक और पशुपालक भाई लाभ कमा सकते हैं। अच्छी किस्म के घोड़े रखें साथ ही इन घोड़ों से हुई संतानों को बेचकर अच्छा पैसा कमाया जा सकता है। अगर आज घोड़ों से आमदनी नहीं हो पा रही है तो उसकी बड़ी वजह है कि किसान और पशुपालक को मार्केट का पता नहीं होता।

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