महिला दिवस विशेष: डेयरी में 70 प्रतिशत हिस्सेदारी, फिर भी गुमनाम हैं महिलाएं

Diti BajpaiDiti Bajpai   8 March 2018 1:03 PM GMT

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महिला दिवस विशेष: डेयरी में 70 प्रतिशत हिस्सेदारी, फिर भी गुमनाम हैं महिलाएंफोटो- विनय गुप्ता।

ग्रामीण क्षेत्रों में अक्सर आपने महिलाओं को गाय-भैंसों भेड़-बकरी के लिए चारा-पानी देते और देखभाल करते हुए देखा होगा। उनका यह योगदान पशुपालन के क्षेत्र में सिर्फ एक मदद मानी जाती है। पशुपालन के क्षेत्र में एक अहम योगदान होने के बावजूद उनके काम को तवज्ज़ो नहीं दी जाती, जिससे उनको पशुपालन में कोई भी लाभ नहीं मिलता है।

दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री राधा मोहन सिंह ने कहा "करीब 7 करोड़ ऐसे ग्रामीण किसान परिवार डेयरी से जुड़े हुए हैं, जिनके पास कुल गायों की 80 प्रतिशत आबादी है। इतना ही नहीं कामकाज करने वाली 70 प्रतिशत महिलाओं का हिस्सा डेयरी व्यवसाय में कार्य कर रहा है।" पशुपालन में महिलाओं की 70 प्रतिशत भागीदारी के बाद भी उनका कोई वजूद नहीं है।

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"सुबह से उठते ही पहले गाय-भैंसों को चारा पानी देते हैं। अब घर में जानवर हैं तो उसकी देखरेख तो हमको ही करनी पड़ेगी। दूध बेचने के लिए हमारे पति ही जाते हैं।" ऐसा बताती हैं, सरोजनी कटियार (35 वर्ष)। उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात के राजपुर ब्लॉक की रहने वाली सरोजनी के पास चार भैंस और दो गाय है। जिनकी पूरी देखरेख वो करती है लेकिन उन्हें इस काम के एवज में कुछ नहीं मिलता है।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और डीआरडब्लूए की ओर से नौ राज्यों में किये गये एक शोध से पता चलता है कि पशुपालन में महिलाओं की भागीदारी 58 प्रतिशत और मछली उत्पादन में यह आंकड़ा 95 प्रतिशत तक है। सिर्फ इतना ही नहीं, नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गनाइजेशन (NSSO) के आंकड़ों की मानें तो 23 राज्यों में कृषि, वानिकी और मछली पालन में ग्रामीण महिलाओं का कुल श्रम की हिस्सेदारी 50 प्रतिशत है। इसी रिपोर्ट के अनुसार, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और बिहार में ग्रामीण महिलाओं की भागीदारी का प्रतिशत 70 प्रतिशत रहा है। फिर भी महिलाओं को इस क्षेत्र में काम करने पर कोई भी लाभ नहीं है।

मध्यप्रदेश के इंदौर जिले के देपालपुर में रहने वाले अंशुल सिंह (40 वर्ष) पिछले पांच वर्षों से डेयरी चला रहे हैं। अंशुल बताते हैं, "डेयरी शुरू करने से पहले हमारे पास दो भैंसें थी, जिसका पूरा काम हमारी पत्नी ही करती थी। डेयरी शुरू करने के बाद हमने दो मजदूर रखें। गाँव में जिनके घरों में एक दो पशु होते है उनके घरों में ज्यादातर महिलाएं ही काम करती है। ये उनके लिए घर कामों में से एक काम जुड़ा हुआ होता है।" अंशुल के पास 50 भैंसे है, जिनके रोजाना 300 लीटर से ज्यादा दूध उत्पादन होता है।

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पशुधन के क्षेत्र में महिलाओं को बढ़ावा देने के लिए उत्तर प्रदेश के दुग्ध विकास मंत्री लक्ष्मी नारायण चौधरी ने एक कार्यक्रम में कहा, "अब नई दुग्ध समितियों में महिलाओं को प्राथमिकता दी जाएगी। महिलाओं को इन समितियों में प्राथमिकता देने का उद्देश्य किसानों की आर्थिक हालत को मजूबत करना है।महिलाएं बचत की प्रवृत्ति रखती हैं, इसलिए जब उनको भुगतान किया जाएगा तो वह कुछ पैसे जरूर बचाएंगी जो उनकी माली हालत को मजबूत करेगा। अब सीधे महिला के खाते में बेचे गए दूध का पैसा भेजने की व्यवस्था की जा रही है।" लेकिन प्रदेश अभी तक कोई योजना नहीं बनी।

भारत पिछले 15 वर्षों से विश्व का सर्वाधिक दूध उत्पादन करने वाला देश बना हुआ है। वर्ष 2013-14 में दूध का उत्पादन करीब 137.7 मिलियन टन दूध का उत्पादन हुआ था जो बढ़कर 2016-17 में 163.6 मिलियन टन हो गया है। भूमिहीन एवं सीमांत किसान के लिये डेयरी व्यवसाय उनके जीवनयापन का एक जरिया बन गया है। इनमें से कई महिलाओं की भी हिस्सेदारी है।

"हमारे पति तांगा चलाते हैं पर घोड़े की पूरी देखभाल हम करते हैं। घोड़ों को ठीक चारा-पानी नहीं दिया तो उनके पेट में दर्द हो जाता है जिससे घोड़ा मर भी जाता है। ऐसे में घोड़ों का बहुत ध्यान रखना पड़ता है। इसी से हमारे परिवार का खर्चा चलता है।" ऐसा बताती हैं, रामदेवी कुमारी (31 वर्ष)। रामदेवी शाहजहांपुर जि़ला मुख्यालय से लगभग आठ किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में ददरौल ब्लॉक के शहबाजनगर गाँव की रहने वाली है। इनके गाँव में करीब 15 महिलाएं ऐसी है जो घोड़ों की पूरी देखभाल करती है, जिससे उनका जीवनयापन होता है।

महिलाओं को बढ़ावा देने के लिए उत्तराखंड सरकार ने गाय गंगा महिला डेयरी योजना की शुरूआत की है। दुग्घ विकास के लिए चालाई जा रही गंगा गाय महिला डेयरी योजना के अन्तर्गत 1040 महिलाओं को गाय देने की योजना है। इस योजना से जहां दुग्घ उत्पादन को बढ़ावा मिल रहा है तो साथ ही महिलाओं को स्वरोजगार भी मिल रहा है।

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बाराबंकी ज़िला मुख्यालय से पूर्व में लगभग 45 किलोमीटर दूर अलादपुर गाँव की रीता सिंह (45 वर्ष) पिछले दो वर्षों में डेयरी के ज़रिए न सिर्फ खुद की माली हालत सुधारी बल्कि गाँव की अन्य महिलाओं को भी सशक्त बनाया है। रीता सिंह बताती हैं, "महिला डेयरी योजना मैंने ली थी। इसमें एक समिति बनाई थी इस समिति की मैं अध्यक्ष हूं। पशुओं का सारा काम ज्यादातर महिलाएं ही करती हैं पर उनको कोई लाभ नहीं मिल पाता था। इस योजना से महिलाओं को रोज़ पैसे मिलते हैं, जिससे वह बचत भी कर पाती है। महिलाओं के लिए यह योजना रोज़गार का अच्छा साधन बनी।’’ समिति में जुड़े सदस्यों के बारे में रीता आगे बताती हैं, इस समय गाँव की लगभग 14-15 महिलाएं समिति की सदस्य हैं, जो रोज 65-70 लीटर दूध समिति को देती हैं’’। रीता ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं हैं पर डेयरी योजना से होने वाली आय का बड़ा हिस्सा वे अपने बच्चों को अच्छे स्कूलों में पढ़ाने पर खर्च करती हैं। रीता बताती हैं, ‘‘मैं पूरे महीने में 15 से 20 हजार रुपए कमा लेती हूं, जिससे बच्चों को अच्छा पढ़ा-लिखा रहे हैं।’’

जहां पशुपालन क्षेत्र में अहम भूमिका निभाने के बावजूद भी महिलाओं को गिना नहीं जाता है। वहीं कानुपर देहात जिले के औरंगाबाद डालचंद गांव की छिदाना देवी (77 वर्ष) ने दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में मिसाल कायम की है। छिदाना देवी ने भैंस पालन में प्रति पशु 14 लीटर रोजाना दूध का उत्पादन करके इन्होंने प्रदेशभर में पहला स्थान प्राप्त किया है। छिदाना देवी बताती है '' मैंने अपनी पशुओं की देखभाल अपने बच्चों की तरह की। वहीं उनकी सबसे बड़ी पूंजी हैं। इसमें उनके घरवालों का भी पूरा सहयोग मिला। जिसका नतीता आप लोगों के सामने हैं।''

महिलाओं को बढ़ावा देने के लिए प्रदेश में शुरु होने वाली योजना के बारे में प्रमुख सचिव, पशुधन उत्तर प्रदेश, डॉ सुधीर एम बोबडे बताते हैं, "अभी महिलाओं के लिए कोई नहीं योजना प्रस्तावित नहीं की है लेकिन जल्द ही छह से आठ पशुओं की नई योजना आ रही है जिसमें हम महिलाओं को प्राथमिकता देंगे। इस योजना के तहत जितना भी दुग्ध उत्पार्जन होगा पराग के पास हम प्राथमिकता देंगे कि महिलाओं के नाम से खाते खुले जिससे उनके खाते में ऑनलाइन पैसा दिया जाएगा। इस योजना के तहत महिलाओं को समितियों में जोड़ा जाएगा। इससे हमारे पास भी डाटा होगा कि कितनी महिलाएं हमारे साथ जुड़ी हुई है। इससे महिलाएं आत्मनिर्भर होंगी।"

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