इन तीन लड़कियों के मजबूत इरादों के आगे हार गया बेरहम जमाना

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इन तीन लड़कियों के मजबूत इरादों के आगे हार गया बेरहम जमानाये तीनों बदलते भारत की तस्वीर पेश करती हैं

अक्सर आंखें जो देखती हैं वही सच नहीं होता। आंखों में उतरने वाले बिंब के पीछे बहुत कुछ कहा-अनकहा छिपा होता है। साधारण सी दिखने वाली शक्लो-सूरत, लड़खड़ाती जबान और लरजने वाली मुस्कान के पीछे छिपा फौलादी इरादों का शोर जब सुनाई देता है तो रुपहले पर्दे के सुपर हीरो भी इनके आगे फीके पड़ जाते हैं। आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर देखिए द नीलेश मिसरा शो का यह एपीसोड जिसकी स्टार हैं तीन ऐसी ही मामूली से दिखने वाली लड़कियां।

गांवों और छोटे कस्बों की, साधारण सी दिखने वाली इन लड़कियों : प्रिया कुमारी, शीलू सिंह राजपूत और डिंपी तिवारी की कहानी असाधारण है जिन्होंने जिंदगी को अपनी ही शर्तों पर जीने का जज्बा दिखाया।

प्रिया कुमारी

प्रिया की कहानी ऐसी लड़की की कहानी है जिसके लिए कुदरत और दुनिया ने सारे रास्ते बंद कर दिए थे, लेकिन इस लड़की ने अपनी हिम्मत से अपने लिए पगडंडियां बना डालीं। उत्तर प्रदेश के सोनभद्र की रहने वाली प्रिया कुमारी एथलीट बनना चाहती हैं, एवरेस्ट पर चढ़ना चाहती हैं। वो माउंटनेरिंग के शुरुआती कोर्स सफलता पूर्वक कर चुकी हैं, और अब 'मिशन एवरेस्ट' में जुटी हैं। जहां से प्रिया आती हैं, वहां लड़कियों का स्कूल तक जा पाना भी एवरेस्ट फतह करने से कम नहीं है, लेकिन एक छोटे से गांव में रहकर भी प्रिया ने एक बड़ा सपना देखा और सिर्फ अपने दम पर उस सपने को पूरा करने निकल पड़ीं।

प्रिया कुमारी

प्रिया की मां उसे जन्म देते ही मरने के लिए कूड़े के ढेर पर छोड़कर चली गईं। उसे एक महिला सामाजिक कार्यकर्ता ने उठाया और मां बनकर पाला। प्रिया जब सिर्फ 16 साल की थीं, जब उसे पालने वाली मां की भी मौत हो गई। उसके एक मात्र रिश्तेदार बचे मामा के लड़के उसकी प्रॉपटी के दुश्मन बन गए थे। वो शादी कर प्रिया की जिम्मेदारी से मुक्ति चाहते थे लेकिन प्रिया एवरेस्ट की सफेद चादर पर तन के खड़े होना चाहती। मार-पीट, धमकी से सिलसिला आगे बढ़ गया और एक दिन प्रिया अपना घर छोड़कर भाग आई।

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जेब में करीब 100 रुपए, थोड़ी सी भूख, पकड़े जाने का डर और आंखों में कई सपने, मंजिल तक पहुंचने का जूनुन लिए, वह उन्हीं पैसों के सहारे दिल्ली पहुंची, फिर एक एनजीओ की मदद से देहरादून में माउंटेनयरिंग का कोर्स किया। प्रिया हिमालय की कुछ चोटियों पर चढ़ चुकी है, लेकिन आज भी माउंट एवरेस्ट चढ़ना उसकी ज़िंदगी का सबसे बड़ा मकसद है।

शीलू सिंह राजपूत

उत्तर प्रदेश के रायबरेली की रहने वाली शीलू सिंह राजपूत ने जब आल्हा गायिका बनने का सपना देखा तो उसने नहीं सोचा था कि वो कितनी लड़कियों के लिए रास्ते खोलने वाली हैं। शीलू जिस गांव से आती हैं, वहां फैमिली फक्शन में भी फिल्मों के गाने पर डांस करने से पहले लड़कियां कई बार सोचती थीं, लेकिन शीलू आल्हा गायिका बनना चाहती थीं।

शीलू सिंह राजपूत

आल्हा बुंदेलखंड का एक लोक गीत है, जिसे शीलू से पहले सिर्फ पुरुष गाते आए थे। लेकिन शीलू ने पुरुषों के माने जाने वाले इस क्षेत्र में ना सिर्फ कदम रखा बल्कि खूब नाम भी कमाया। पिछले कुछ सालों में शीलू सिंह राजपूत इस लोक गायकी का बड़ा नाम बन गई हैं। वो मंच पर तब दांत भीचते हुए तलवार भांजती हैं, मंच के सामने बैठी भीड़ तालियां बजाती रह जाती हैं। अपने घर की लकड़ी की दहलीज लांघकर इस मंच तक पहुंचने के लिए शीलू को कई जतन करने पड़े, ताने सहने पड़े। गांव और रिश्तेदार तो दूर घर के लोगों का विरोध झेलना पड़ा, (वीडियो में देखिए शीलू का संघर्ष) लेकिन अब शीलू हजारों लड़कियों की रोल मॉडल हैं।

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डिंपी तिवारी

डिंपी सिंह...किक बॉक्सिंग में नेशनल लेवल पर गोल्ड सहित पांच मेडल, ताइक्वांडों में सिल्वर मेडल जीतने वाली ये लड़की रायबरेली ज़िले के छोटे से गांव से आती है। ऐसी कई लड़कियां और लड़के मिल जाएंगे, जो खेलों में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुके हैं, लेकिन डिंपी तिवारी की कहानी कुछ अलग है। जिन हालातों से लड़कर वह प्ले ग्राउंड तक पहुंची हैं। अपने विरोधी खिलाड़ी को हराने से पहले उसने समाज को हराया, उसने उन रिश्तेदारों और दकियानूस लोगों को हराया है, जो लड़कियों को घर की चारदीवारी में बांधे रखने के हिमायती हैं, वह कहानी हज़ारों लड़कियों के लिए प्रेरणा है।

डिंपी तिवारी

डिंपी तिवारी के पिता सूर्य प्रताप तिवारी फौजी थे। ज़्यादा शराब पीने की वजह से उनकी उनकी मौत हो गई। डिंपी उस वक्त सिर्फ 13 साल की थी। बड़ी बहन की शादी तय हो चुकी थी, लेकिन दहेज देने के लिए पैसे नहीं थे। ऐसे में बड़ी बहन की शादी और परिवार की ज़िम्मेदारी डिंपी पर आ गई। पड़ोस के स्कूल में लड़कों को किक बॉक्सिंग करते देखकर डिंपी को भी ये खेल सीखने की चाह हुई। रास्ता आसान नहीं था, रिश्तेदार उसकी शादी करके अपने सिर का बोझ उतार लेना चाहते थे, लेकिन डिंपी ने ना सिर्फ किक बॉक्सिंग करना जारी रखा, बल्कि घर की ज़िम्मेदारियां भी अपने ऊपर ले लीं। डिंपी ने आस-पास के स्कूलों में लड़कियों को सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग देना शुरू किया। साथ ही राष्ट्रीय खेलों में भी हिस्सा लेती रही। आज डिंपी नेशनल लेवल की किक बॉक्सिंग प्लेयर हैं और इंटरनेशनल मुकाबलों की तैयारी कर रही हैं। इसके साथ ही वह सैकड़ों लड़कियों और पुलिस के सिपाहियों को सेल्फ डिफेंस, यानी आत्म रक्षा की ट्रेनिंग दे रही हैं।

प्रिया कुमारी, शीलू सिंह राजपूत और डिंपी तिवारी जैसी लड़कियों की लड़ाई और जीत सिर्फ उनकी नहीं है...ये लड़ाई उनकी जैसी हज़ारों-लाखों लड़कियों की जीत है, जिन्हें अपने अधिकारों और अपने जगह पाने के लिए रोज़ ऐसी कई लड़ाइयां लड़नी पड़ती हैं। ऐसे ही नायक, नायिकाओं की कहानियां हर हफ्ते सुनिए 'द नीलेश मिसरा शो' में।

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