इस्लाम में महिलाओं के मस्जिद जाने की नहीं है मनाही, पढ़ सकती है नमाज भी

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इस्लाम में महिलाओं के मस्जिद जाने की नहीं है मनाही, पढ़ सकती है नमाज भी

रिपोर्ट- फराज़ हुसैन

लखनऊ। सबरीमला मंदिर महिलाओं के प्रवेश को लेकर चर्चा में है। सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं के लिए मंदिर के दरवाजे खोल दिए हैं। कई दरगाहों और मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश को लेकर खबरें आती रही हैं। आमतौर पर लोगों में यह भी धारणा है कि मस्जिद में औरतें नहीं जा सकती हैं लेकिन इस्लाम धर्म के मानने वाले शिया और सुन्नी समुदाय के लोग ऐसा नहीं सोचते हैं। उनके मुताबिक औरतें मस्जिद जा सकती हैं और नमाज भी पढ़ सकती हैं।

मोहर्रम महीने की 28 तारीख को लखनऊ स्थित कश्मीरी मोहल्ले (मौला आब्बास दरगाह के पास) के निवासी वक़ार हुसैन के घर पर रात में लगभग नौ बजे के आस-पास औरतों की मजलिस (प्रार्थना) हुई। मजलिस होने के बाद औरतों ने अपने चौथे इमाम ज़ैनुल आबदीन (अ.स.) का ताबूत उठाया और ताबूत को लेकर मस्जिद में गईं।

गाँव कनेक्शन ने कश्मीरी मोहल्ला में मजलिस में आई कुछ औरतों से बात की और उनसे इस्लाम में औरतों के मस्जिद जाने पर प्रतिबंध के बारे में पूछा। नरजिस फातिमा (46 वर्ष) बताती हैं, "हम लोग मस्जिद जाते हैं और हमारे यहां इस्लाम में औरतों के मस्जिद जाने पर कोई रोक नहीं है। हम लोग हमेशा ताबूत उठाते हैं और मस्जिद लेकर जाते हैं। इस्लाम किसी को भी किसी का अधिकार छीनने की इजाज़त नही देता।"

महिलाओं के लिए लखनऊ के सेक्टर 16 में बनी अम्बर मस्जिद।

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नरजिस की तरह रोजिया 55 वर्ष भी अक्सर मजिस्द जाती हैं। वो बताती हैं, "हम अपने बचपन से यहां मजलिस करते रहे हैं। हम हर साल ताबूत के साथ मस्जिद के अन्दर जाते हैं। हमारे यहां मस्जिद में औरतों को जाने से कोई नहीं रोकता है।" सिर्फ शहर ही नहीं ग्रामीण इलाकों की महिलाएं भी मस्जिद में जाती हैं।

इसी मजलिस में मौजूद उत्तर प्रदेश में बाराबंकी जिले के सुलेमाबाद गांव की रहने वाली इतरत फातिमा (19 वर्ष) बताती हैं, "हमारे यहां केवल मजलिस में ही नहीं बल्कि आम दिनों में भी औरते मस्जिद में जाती हैं। जब हमारे यहां भाइयों कि शादी होती हैं तो सारी बहने मिल कर मस्जिद जाते हैं और मस्जिद में मौजूद मुख्य ताख़ को जाकर कई पाक चीज़ों से भरते हैं फिर वहां से आकर खुदा का शुक्र करने के लिए दो रकत नमाज़ भी पढ़ते हैं।"

इन महिलाओं के मुताबिक वो जब चाहें मस्जिद जा सकती हैं। लेकिन कई बार वो खुद एहतियात बरतती हैं। पुराने लखनऊ में रहने वाली महजबी (36 वर्ष) बताती हैं, "हमें मस्जिद जाने और नमाज पढ़ने से कोई नहीं रोकता। बस हम लोग मस्जिद में नमाज़ इसलिए नहीं पढ़ते क्योंकि उसके लिए कई चीज़ों का ध्यान रखा जाता है जैसे वहां कोई गैर मर्द न हो और एक वजह मस्जिदों में जिन्नात होने की भी है जिसकी वजह से हम रोज़ मस्जिद नही जाते हैं।"

महिलाओं के मस्जिद में जाने के बारे में इस्लाम का नज़रिया जानने के लिए शिया और सुन्नी धर्म गुरुओं से बात भी की। शिया धर्म गुरू कलबे जव्वाद मोबाइल पर बताते हैं, "इस्लाम मुस्लिम औरतों को मस्जिद में जाने से नहीं रोकता। अगर वह पाक हैं तो मस्जिद जा सकती हैं।"

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वहीं मुजफ्फरनगर जिले के गुहाना के शोरम गाँव में रहने वाले सुन्नी मौलाना मोहम्मद रिज़वान नदवी कासमी बताते हैं, "इस्लाम औरतों को मस्जिद जाने से नहीं रोकता है। अगर औरतें मस्जिद जाना चाहें तो जा सकती हैं। उन पर कोई प्रतिबंध नही है। बस औरतों और मर्दों को एक साथ मस्जिद में नमाज़ पढ़ने से इसलिए रोका गया क्योंकि अगर दोनों एक साथ नमाज़ पढ़ेंगे तो उनका ध्यान बजाए ख़ुदा (ईश्वर) के एक-दूसरे पर जा सकता है।"

"हमारे यहां जब लोग हज करने जाते हैं तो औरतें और आदमी एक साथ काबे (खुदा के घर) का तवाफ़ (चारों तरफ़ घूमते) करते हैं। इससे साफ़ ज़ाहिर है कि इस्लाम औरतों को मस्जिद जाने से नहीं रोकता।" उन्होंने आगे बताया।


      

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