जॉब कार्ड बनवा महिलाओं को दिलाया हक़

Diti BajpaiDiti Bajpai   20 April 2017 3:16 PM GMT

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जॉब कार्ड बनवा महिलाओं को दिलाया हक़पचास वर्षीय शाहजहां अपनी गाँव की महिलाओं को उनके पैरों पर खड़ा करना चाहती हैं।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। पचास वर्षीय शाहजहाँ अपनी गाँव की महिलाओं को उनके पैरों पर खड़ा करना चाहती हैं, ताकि वो किसी के ऊपर आश्रित न रहें और अपने आप को सशक्त बना सकें।

गाँव की बिटिया के नाम से पुकारी जाने वाली शाहजहाँ लखनऊ से लगभग 24 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में अस्ती गाँव की रहने वाली हैं। शाहजहाँ के परिवार में छह बच्चे और उनके पति हैं। शाहजहाँ के पति अक्षम है, इसलिए मेहनत मजदूरी करके वो खुद अपने परिवार का खर्च चला रही हैं और अपने बच्चों को अच्छी तालीम भी दिलवा रही हैं।

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शाहजहाँ ने जिस तरह अपने परिवार की बागडोर संभाली उसी तरह गाँव की बेटी होने के नाते अपने गाँव की महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए कदम उठाया और जिन महिलाओं के जॉब कार्ड नहीं बने थे और जिनके जॉब कार्ड होते हुए भी उनके पास नहीं थे उनके जॉब कार्ड बनवा कर उन्हें काम दिलाया।

अखिल भारतीय महिला समिति(एडवा) से जुड़ी शाहजहाँ बताती हैं, “हमारे गाँव में पहले पुरुष ही मनरेगा में लगने वाला कार्य किया करते थे महिलाओं को तो पता भी नहीं था कि मनरेगा में क्या काम किया जाता है। तब मैनें सोचा की महिलाओं को मनरेगा में कैसे कार्य दिया जाता है, कैसे पैसा मिलता है, इन सभी की जानकारी देकर उन्हें जागरूक किया जाए ताकि वह ये काम कर सके और उनकी भी आमदनी हो सकें।”

वह आगे बताती हैं, “पहले जो हमारे गाँव का प्रधान था उसने महिलाओं का कार्ड तो बनवाया पर उन्हें उन महिलाओं तक नहीं पंहुचाया। जिसके लिए मैंने कलेक्टर ऑफिस में धरना दिया और उनको हक दिलाया।” इन सभी में शाहजहां की एडवा संस्था ने काफी मदद की।

अब मैं खेतों में काम करने के साथ-साथ मनरेगा में लगने वाले काम भी करती हूँ और ये सब शाहजहाँ दीदी की वजह से संभव हुआ है।
क्रान्ति (23), गाँव निवासी

काफ़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा

शाहजहाँ को कई तरह की धमकियों का भी सामना करना पड़ता है पर वह स्वतंत्र होकर अपने गाँव की महिलाओं के लिए लड़ रही हैं और उनको उनका हक दिला रही हैं। गाँव की लगभग सभी महिलाओं का कार्ड शाहजहाँ बनवा चुकी हैं और वो कार्ड उनके पास है कि नहीं समय-समय पर देखती रहती हैं।

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