सिर्फ एक पैर से एवरेस्ट नहीं पांच और पर्वत शिखरों को फतह करने वाली लड़की की कहानी

Sanjay SrivastavaSanjay Srivastava   26 Oct 2017 6:08 PM GMT

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सिर्फ एक पैर से एवरेस्ट नहीं पांच और पर्वत शिखरों को फतह करने वाली लड़की की कहानीणिमा सिन

लखनऊ (आईएएनएस)। यह कहानी उस लड़की की है जिसने एक पैर से एवरेस्ट पर फतह प्राप्त की। दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी पर चढ़ाई करने वाली पहली अपंग महिला पर्वतारोही बनाने का अरुणिमा सिन्हा ने इतिहास बनाया।

साल 2011 में राष्ट्रीय स्तर की वॉलीबॉल खिलाड़ी रहीं अरुणिमा सिन्हा को कुछ गुंडों ने चलती ट्रेन से फेंक दिया था। असहनीय पीड़ा में पूरी रात रेलवे ट्रैक पर गुजारने वाली अरुणिमा को इस घटना में अपना एक पैर गंवाना पड़ा और उनके दूसरे पैर में धातु की रॉड लगाई गई।

ऐसे हादसे के कारण जहां आमतौर पर जिंदगी रुक सी जाती है, बहुत से लोग कृत्रिम पैर के सहारे चलने में चार से पांच साल लगा देते हैं, अरुणिमा ने एक खिलाड़ी के तौर पर अपने अंदर बसे जुनून को बरकरार रखते हुए घटना के महज दो साल के अंदर दुनिया की सबसे ऊंची जगह, माउंट एवरेस्ट फतह कर ली। दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी पर चढ़ाई करने वाली पहली अपंग महिला पर्वतारोही बनाने का उन्होंने इतिहास बनाया।

अरुणिमा का यह जुनून केवल एक महिला के विश्व के सर्वोच्च शिखर पर चढ़ाई करने की कहानी नहीं है, बल्कि उनके अटूट विश्वास की दास्तां है, जिसके दम पर उन्होंने निराशा के हाथों मजबूर होने के बजाए बड़ी बाधाओं को पार कर अपनी सबसे बड़ी कमजोरी को सबसे बड़ी ताकत बनाने की हिम्मत दिखाई।

अपने दर्द को पीछे छोड़ते हुए अरुणिमा ने अपना सफर केवल माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई तक ही सीमित नहीं रखा, बल्कि इसके बाद विभिन्न महाद्वीपों के पांच अन्य शिखरों की भी चढ़ाई की। उनका लक्ष्य अब सबसे कठिन चुनौती अंटार्कटिका की सबसे ऊंची चोटी 'एवरेस्ट : विंसन मासिफ' पर भारतीय परचम लहराने का है।

वर्ष 2011 में मैं एक दुर्घटना का शिकार हुई थी। मैं लखनऊ से दिल्ली जा रही एक ट्रेन के सामान्य डिब्बे में यात्रा कर रही थी। कुछ गुंडों ने मेरे गले में पहनी सोने की चेन खींचने की कोशिश की और जब मैंने अपना बचाव करने का प्रयास किया, तो उन्होंने मुझे बरेली जिले में ट्रेन से बाहर फेंक दिया।
अरुणिमा सिन्हा, पर्वतारोही

अरुणिमा बगल के ट्रैक से गुजर रही ट्रेन से टकरा गईं और फिर जमीन पर गिर गईं। इसके बाद क्या हुआ, उन्हें कुछ याद नहीं। उन्हें केवल इतना याद है कि होश आने के बाद उन्हें असहनीय दर्द का अहसास हुआ और इसका भी अहसास हुआ कि वह अपना एक पैर खो चुकी हैं और दूसरे पर गंभीर चोट लगी है।

उन्होंने कहा, "मैं मदद के लिए चिल्ला रही थी, लेकिन आस-पास कोई नहीं था, जो मेरी मदद कर सकता। चूहे मेरे घायल पैर को कुतर रहे थे और सारी रात मैं दर्द से कराहती रही। मैंने गिना था, मेरे पास से 49 ट्रेन गुजरी थीं।"

सुबह कुछ गांव वालों ने अरुणिमा को देखा और उन्हें पास के अस्पताल में लेकर गए, जहां चिकित्सकों को उनके एक पैर को काटना पड़ा और दूसरे पैर में रॉड लगाई।

अरुणिमा ने कहा, "उनके पास एनीस्थीसिया नहीं था और मैंने कहा था कि मुझे बिना एनीस्थीसिया दिए ही मेरे घायल पैर को ठीक करें। मैंने पूरा रात असहनीय दर्द को झेला था और इसलिए मैं जानती थी कि मैं ठीक होने के लिए कुछ और दर्द सह सकती हूं।"

इसके बाद, अरुणिमा को नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में स्थानांतरित कर दिया गया, जहां वह करीब चार माह तक भर्ती रहीं। यहीं पर उन्होंने संकल्प लिया कि वह माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई करेंगी।

अरुणिमा ने कहा, "मैं जब थोड़ा ठीक हुई, तो मैंने मीडिया में फैली अफवाहों के बारे में सुना। इसमें कहा जा रहा था कि मेरे पास ट्रेन का टिकट नहीं था और इसलिए, मैं ट्रेन से कूद गई। जब यह बात गलत साबित हुई तो कहा गया मैंने आत्महत्या करने के लिए ट्रेन से छलांग लगाई थी।"

उन्होंने कहा, "मैं और मेरा परिवार पूरे जोर से प्रतिवाद कर रहा था कि ये सब झूठ है, लेकिन किसी ने हमारी बात नहीं सुनी। इसलिए, मैंने उन सभी लोगों को जवाब देने का सबसे सही तरीका चुना। मैंने फैसला किया कि मैं साबित कर दूंगी कि दुर्घटना से पहले मैं क्या थी और अब मैं क्या हूं।"

दुर्घटना के बाद जिस हालत में अरुणिमा सिन्हा थीं, उस हालत में हिल पाना भी मुश्किल होता है। लेकिन, असाधारण इरादों वाली अरुणिमा सिन्हा की कहानी कभी धैर्य न हारने वाले जज्बे की कहानी साबित हुई।

अरुणिमा ने कहा, "आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते कि चलने की कोशिश के दौरान मुझे कितना दर्द हो रहा था, लेकिन जब एक इंसान किसी काम को करने की ठान लेता है, तो कोई भी दर्द और बाधा उसे रोक नहीं सकती।"

जहां एक ओर पूरी दुनिया उनके इरादों पर संदेह जता रही थी, उनके परिवार और खासकर उनके जीजा ओम प्रकाश ने उनकी हिम्मत बढ़ाई। ओम प्रकाश (42 वर्ष) ने अरुणिमा को उनके लक्ष्य की ओर प्रेरित करने के लिए अपनी केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) की नौकरी से त्यागपत्र दे दिया।

ओम प्रकाश ने बताया, "मैं उस रेलवे ट्रैक के हादसे से लेकर एवरेस्ट की चढ़ाई तक उनके हौसले को बढ़ावा देने के लिए हर दिन उनके साथ खड़ा रहा। यहां तक कि मैंने उनके साथ प्रशिक्षण लिया और एवरेस्ट के आधार शिविर तक गया भी।"

जिन हालात में अरुणिमा थीं, उसमें लोगों को खड़े होने के लिए वर्षों लग जाते हैं, वहीं अरुणिमा केवल चार माह में ही उठ कर खड़ी हो गईं। अगले दो साल उन्होंने एवरेस्ट पर चढ़ाई करने वाली पहली भारतीय महिला बछेंद्री पाल से प्रशिक्षण लिया। उन्हें स्पांसर मिले, उनकी यात्रा शुरू हुई और फिर वह दिन भी आया जब मंजिल फतह हुई।

अरुणिमा ने कहा कि इस कोशिश के दौरान उनके पैरों से खून बहता रहता था और अक्सर वह गिर भी जाती थीं। लोग उन्हें पागल कहते थे और उन्हें लगता था कि वह कभी अपने लक्ष्य में सफल नहीं हो पाएंगी। हालांकि, वे सभी उनके इरादों की मजबूती से अनजान थे।

उन्होंने कहा, "लोगों ने मेरी शारीरिक कमजोरी को देखकर अपनी राय बना ली, लेकिन मेरे अंदर के जुनून को नहीं देखा। किसी की परवाह किए बगैर मैंने अपने आपको समझाया कि मैं चल सकती हूं। मेरे असहाय पैरों को भी यह बात समझ आ गई।"

अरुणिमा ने अपने कृत्रिम पैर के दम पर अब तक माउंट एवरेस्ट के अलावा, माउंट किलिमंजारो (अफ्रीका), माउंट कोजिअस्को (आस्ट्रेलिया), माउंट अकोंकागुआ (दक्षिण अमेरिका), कारस्टेन्ज पिरामिड (इंडोनेशिया) और माउंट एलब्रस (यूरोप) की चढ़ाई कर ली है।

अंटार्कटिका में 'एवरेस्ट : विंसन मासिफ' की चढ़ाई से पहले अरुणिमा लद्दाख में प्रशिक्षण लेंगी। उन्होंने कहा, "मैं दिसम्बर में विंसन मासिफ की चढ़ाई के लिए अंटार्कटिका जा रही हूं। यह सातवां शिखर है और एवरेस्ट के बाद सबसे मुश्किल भी।"

अरुणिमा दुनिया को सिर्फ यह बताना चाहती हैं कि अगर कोई शख्स लक्ष्य हासिल करने की ठान ले, तो कोई बाधा उसे नहीं रोक सकती।

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उन्होंने कहा, "जब मैं एवरेस्ट शिखर पर पहुंची तो मैंने चाहा कि मैं चीख कर दुनिया से कहूं कि देखो मैं विश्व के शीर्ष पर हूं जबकि किसी को विश्वास नहीं था कि मैं यह कर सकती हूं।"

अरुणिमा की इच्छा विकलांग लोगों के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय खेल अकादमी की स्थापना करने की है।

उन्होंने कहा, "इसके लिए मैंने कानपुर के पास उन्नाव में जमीन खरीद ली है। भवन बनाने की जरूरत है जिसपर 55 करोड़ रुपए खर्च होंगे। लेकिन, यह एक पैर से माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने से अधिक मुश्किल नहीं होगा।" अरुणिमा ने लखनऊ में 120 विकलांग बच्चों को गोद लिया है और हरसंभव तरीके से उनकी मदद कर रही हैं।

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(यह फीचर आईएएनएस और फ्रैंक इस्लाम फाउंडेशन के सहयोग से विविध, प्रगतिशील व समावेशी भारत को प्रदर्शित करने के लिए शुरू की गई विशेष श्रृंखला का हिस्सा है)

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