मिड-डे मील तो है, पर पौष्टिकता का ख़्याल नहीं

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मिड-डे मील तो है, पर पौष्टिकता का ख़्याल नहींविद्यालय परिसर में खेलती बच्चियां।  

अब्दुर रहमान

पुपरी (बिहार)। “चावल में कभी कभी कीड़ा रहता है और दाल एकदम पतली होती है। सब्जी में स्वाद नहीं रहता, फिर भी खाना पड़ता है।” ये वाक्य हैं 12 साल की छात्रा कविता के, जो बिहार के जिला सितामढ़ी के पुपरी प्रखंड के विद्यालय में पढ़ती है।

इस संबंध में और भी बच्चों से बात की गई तो पता चला कि कई सुविधाओं से वंचित इस विद्यालय में बच्चों के पोषण पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। “सप्ताह में क्या क्या मिलता है? पूछने पर सोनू, कविता और मधु ने बताया दाल-चावल और कभी-कभी खिचड़ी मिलती है। और सब्जी? सब्जी मिलती है लेकिन अच्छी नहीं लगती, बच्चों ने जवाब दिया।

कक्षा सात की छात्रा कामिनी कुमारी (13 वर्ष) बताती है, “दीदी हम तो कितनी बार यहां का खाना नहीं खाते बहुत गंदगी में बनता है, कभी कभार बदबू भी आती है इसलिए हम घर चले जाते हैं।” लेकिन माई (मां) बोलती है कि जब स्कूल में खाना मिलता है तो घर क्यों आ जाती है बाकी बच्चे भी तो वहीं खाना खाते हैं।

यहां बच्चों को खाना अच्छा क्यों नहीं दिया जाता है? पूछने पर नाम न बताने की शर्त पर रसोईए ने बताया “हम तो वही बनाएंगे जो स्कूल प्रबंधन की तरफ से दिया जाएगा, जो सामान रसोई में रहता है वही बनता है बाकि 600 से भी ज्यादा बच्चे पढ़ते हैं, तो कभी- कभार कम भी पड़ जाता है।”

कुछ अभिभावकों से बात करने पर पता चला कि वो अपने बच्चों को खाने का डिब्बा देकर स्कूल भेजते हैं जबकि कुछ के बच्चे खाने के समय प्लेट लेने घर आते हैं। ताकि साफ प्लेट में खाना खा सकें। विद्यालय प्रधानाचार्य मंजू कुमारी ने बताया, “हम बच्चों के खाने पीने का पूरा ख्याल रखते हैं लेकिन बच्चों की संख्या अधिक होने के कारण कुछ परेशानियां हो जाती हैं। हमारे पास रसोई भी थोड़ी छोटी है और खाना बनाने वाले भी कम हैं। इस संबध में मेरी प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी से बात भी हुई है।

एक ओर बच्चों और अभिभावकों की शिकायतें, दूसरी ओर स्कूल प्रबंधन की दलीलें, मिड-डे मील की वास्तविक चित्र को उजागर नहीं करती लेकिन इतना जरुर है कि कई प्रयासों के बावजूद मध्यान्ह भोजन की स्थिति देश के कई सरकारी स्कूलों में आज भी अच्छी नहीं है।

मिड-डे मील की शुरुआत

मध्यान्ह भोजन योजना की शुरुआत भारत सरकार द्वारा 1995 में की गई जिसका मुख्य उद्देश्य बड़ी संख्या में बच्चों को स्कूल तक लाना और उन्हें कुपोषण से सुरक्षित रखना है। परंतु देश के विद्यालयों में मध्यान्ह भोजन की स्थिति उपयुक्त विद्यालय की ही तरह बनी रही तो बच्चों को पर्याप्त पोषण नहीं मिल पाएगा जिसका सबसे प्रतिकूल प्रभाव हमारी बेटियों पर पड़ेगा वो बेटियां जिन्हें भविष्य में गृहणी से लेकर मां बनने तक का सफर तय करना है।

साभार: चरखा फीचर्स

  

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