यौन उत्पीड़न मुक्त हों कार्यस्थल, हर संस्था में हो आईसीसी

हर सरकारी और गैर सरकारी कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की शिकायत के लिए आईसीसी (आंतरिक शिकायत समिति) होना आवश्यक है लेकिन कितने संस्थान हैं जहां ये समितियां बनी हैं, इसका कोई आंकड़ा अभी तक नहीं है। महिला दिवस के मौके पर यौन उत्पीड़न और जेंडर हेतु संवेदनशील काम करने के स्थानों के बारे में चर्चा करने के लिए आली संस्था ने किया प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन।

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आली की प्रेस कॉन्फ्रेंस में मनीषा भाटिया, गार्गी वोहरा और शुभांगी।आली की प्रेस कॉन्फ्रेंस में मनीषा भाटिया, गार्गी वोहरा और शुभांगी।

लखनऊ। महिला सशक्तिकरण को आवाज़ देने के लिए एसोसिएशन फॉर एडवोकेसी एंड लीगल इनिशिएटिव्स (आली) ने महिला दिवस के एक दिन पहले सात मार्च को प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की। कॉन्फ्रेंस में यौन उत्पीड़न मुक्त और जेंडर हेतु संवेदनशील काम करने के स्थानों पर बात की गई। राजधानी लखनऊ के उत्तर प्रदेश प्रेस क्लब में आयोजित इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में राम मनोहर लोहिया नेशनल लॉ विश्वविद्यालय की आंतरिक शिकायत समिति की छात्रा सदस्य गार्गी वोहरा, एशियन एड की मनीषा भाटिया और आली की कार्यक्रम संयोजक शुभांगी ने पत्रकारों को सम्बोधित किया।

संयुक्त राष्ट्र की ओर से इस साल की थीम, "बेहतर के लिए संतुलन" रखी गई है। आली का कहना है कि महिलाओं के लिए सभी क्षेत्रों में समानता के लिए संघर्ष कई वर्षों से चल रहा है लेकिन इसके बावजूद कार्यक्षेत्र में उनके प्रति व्यवहार पूरी तरह से ठीक नहीं है। पहले से ही कार्यक्षेत्रों में महिलाओं की हिस्सेदारी इतनी कम है उसपर कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न जैसे मामले महिलाओं के लिए असुरक्षित परिस्थिति बनाकर उनकी हिस्सेदारी और कम कर रहे हैं।

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महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, वर्ष 2013 में संगठित और असंगठित दोनों क्षेत्रों में महिलाओं के यौन उत्पीड़न के मुद्दे को हल करने के लिए लागू किया गया था। अधिनियम के उद्देश्यों और प्रावधानों के बारे में जागरूकता की कमी के साथ ही शिकायतों के निवारण तंत्र की अनुपस्थिति, महिलाओं की अनुभवों पर ध्यान न देना और नियोक्ताओं की गैर-जवाबदेही के कारण उसे ठीक तरह से लागू नहीं किया जा रहा है।

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य में स्वयं सेवी संस्था 'AALI' द्वारा आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस।

आली ने बताया कि श्रम बल में महिलाओं का प्रतिनिधित्व लगातार कम होता जा रहा है। विश्व बैंक के अनुसार महिलाओं ने 1990 में भारत में कुल श्रम शक्ति में 28% का गठन किया, जो 2018 में घटकर 24.3% तक पहुंच गया। इसी प्रकार एनएसएसओ द्वारा 2015-2016 में आयोजित रोजगार-बेरोजगारी सर्वेक्षण के अनुसार, 72.1% पुरुषों की तुलना में केवल 21.7% महिलाएं ही पूर्णकालिक व्यवसायों में कार्यरत हैं। 93% महिला श्रमिक अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत हैं।

बढ़ती आबादी के बावजूद कार्यक्षेत्र में पुरुषों के साथ महिलाओं की संख्या बढ़ नहीं रही है। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार, जनवरी 2015 से जुलाई 2018 के बीच She-Box पर कार्यस्थल में यौन उत्पीड़न के 2196 मामले दर्ज किए गए। सबसे बड़ी संख्या में 29% मामले उत्तर प्रदेश से सामने आए जबकि वास्तविक संख्या बहुत अधिक होने की उम्मीद है।

तमाम चुनौतियों को पार कर काम करने के लिए पहुंचने वाली महिलाओं को जब दफ्तर में यौन उत्पीड़न जैसी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है तो ये एक गंभीर बाधा बन जाती है। सभी प्रकार के कार्यक्षेत्रों में महिलाओं के साथ ऐसी घटनाएं होती हैं। संवेदनशील होकर हम उत्पीड़न के कुछ रूपों को खत्म कर सकते हैं। यौन उत्पीड़न में भद्दे कमेंट्स पास करना, अवांछित शारीरिक संबंध बनाना या अश्लील सामग्री दिखाना शामिल है। कुछ उत्पीड़न ऐसे भी होते हैं जो हमें सामने से दिखाई नहीं देते जैसे काम करने के बाद भी नुकसान कराने की धमकी, पीड़ित के वर्तमान या भविष्य की रोजगार की स्थिति के बारे में धमकी देना या उसके काम में दखल देना, उसे डराने के लिए काम का माहौल ऐसा बनाना।

एशियन एड की मनीषा भाटिया ने कहा कि हर साल जेंडर ऑडिट होना चाहिए।

आली की कार्यक्रम संयोजक शुभांगी ने बताया कि यौन उत्पीड़न के इन रूपों को महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 में मान्यता दी गई थी जो महिलाओं के लिए सुरक्षित कार्य वातावरण बनाने और कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के लिए निवारण तंत्र को स्थापित करने के उद्देश्य से लाया गया था। "कार्यस्थल" की एक विस्तृत परिभाषा के साथ अधिनियम हर कार्यस्थल में एक आंतरिक शिकायत समिति की स्थापना करने की बात करता है। जिसमें 10 से अधिक कर्मचारी हों और 10 कर्मचारियों से कम कार्यस्थलों पर शिकायतों के निवारण के लिए जिला स्तर पर एक स्थानीय शिकायत समिति के गठन की बात करता है।

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कार्यक्रम में आईं एशियन एड की मनीषा भाटिया ने कहा कि इस कानून की जानकारी हर स्तर पर कर्मचारियों के साथ-साथ नियोक्ताओं को भी होनी चाहिए। इसके साथ ही छोटे और बड़े हर स्तर के कार्यक्षेत्रों में जेंडर ऑडिट होना चाहिए ताकि कानून का बेहतर क्रियान्वयन हो सके। साथ ही असंगठित क्षेत्रों में काम कर रही महिलाओं तक भी इस कानून की जानकारी होनी चाहिए।

राम मनोहर लोहिया नेशनल लॉ विश्वविद्यालय की आंतरिक शिकायत समिति की छात्रा सदस्य गार्गी वोहरा ने अपने अनुभवों को साझा करते हुए बताया कि शिकायत समितियों की वजह से पीड़िताओं को चुप कराने की कोशिशें कम हुई हैं। इस तरह की समितियां पीड़िताओं को एहसास दिलाती हैं कि वह अपनी लड़ाई में अकेली नहीं है। साथ ही संस्था के लिए उनका भरोसा बढ़ता है।

आली पिछले 20 वर्षों से उत्तर प्रदेश में महिलाओं तक न्याय पहुंचाने के लिए सामाजिक-कानूनी सहायता दे रही है।

आली पिछले 20 वर्षों से उत्तर प्रदेश में महिलाओं तक न्याय पहुंचाने के लिए सामाजिक-कानूनी सहायता दे रही है। साथ ही जिन महिलाओं के साथ कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न किया गया हो उनकी भी मदद करती है। आली ने कई संगठनों के लिए आंतरिक शिकायत समितियों के गठन की सुविधा प्रदान की है और कई सरकारी और गैर-सरकारी संस्थानों में सदस्य के रूप में कार्य करती है।

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एसोसिएशन फॉर एडवोकेसी एंड लीगल इनीशिएटिव्स् (आली) एक नारीवादी कानूनी पैरोकारी एंव संदर्भ केन्द्र है। ये वर्ष 1998 से महिला मानवाधिकारो की स्थापना के लिए तकनीकी समर्थन एवं कानूनी सन्दर्भ केन्द्र के रूप में अधिकार आधारित समझ एवं नारीवादी परिपेक्ष्य के साथ कार्य करती रही है। आली अपनी स्थापना के समय से ही महिलाओं तथा बच्चों के साथ होने वाली हिंसा के खिलाफ उत्तर प्रदेश, झारखण्ड व अन्य राज्यों में साथी संस्थाओं के सहयोग से काम करती आ रही है तथा उनसे सम्बन्धित कानूनों के प्रति जागरूकता और उसके प्रभावी क्रियान्वयन हेतु सक्रिय प्रयास करती रही है।

    

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