गांवों की बुजुर्ग महिलाएं नहीं जानतीं अपनी उम्र, घटनाओं से जोड़कर लगातीं हैं अंदाज़ा

Shrinkhala PandeyShrinkhala Pandey   28 Nov 2017 6:07 PM GMT

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गांवों की बुजुर्ग महिलाएं नहीं जानतीं अपनी उम्र, घटनाओं से जोड़कर लगातीं हैं अंदाज़ाफोटो: विनय गुप्ता

लगभग 80 वर्ष की धन्नो देवी से उनकी सही उम्र पूछने पर वो सिर्फ इतना बता पातीं हैं कि जब से चांदी का रुपया बंद हुआ तबकी हमारी उम्र है अब अंदाजा लगा लो कितनी होगी।

लखनऊ से लगभग 35 किमी उत्तर दिशा में अर्जुनपुर गाँव की रहने वाली धन्नो देवी विधवा पेंशन लाभार्थी है लेकिन आज तक उन्हें उनकी सही उम्र नहीं पता। सबसे ताजुब्ब की बात ये है कि धन्नो देवी का वोटर कार्ड बना है उसके बाद भी उन्हें अपनी उम्र नहीं पता क्योंकि कभी इसकी जरूरत नहीं पड़ी। तरह गाँव की कई महिलाएं ऐसी है जिनकी न कोई सही उम्र है और न नाम।

2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार देश में महिला साक्षरता की दर 65 फीसदी है। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय के जून 2014 में जारी आंकड़ों के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में साक्षरता दर पिछले वर्ष 71 प्रतिशत थी, जबकि शहरी क्षेत्रों में 86 प्रतिशत है। सर्वे में यह भी पाया गया कि ग्रामीण क्षेत्रों लगभग 4.5 प्रतिशत पुरुष और 2.2 प्रतिशत महिलाओं ने स्नातक स्तर की पढ़ाई की जबकि शहरी क्षेत्रों में 17 प्रतिशत पुरुष और 13 प्रतिशत महिलाओं ने इस स्तर की शिक्षा पूरी की।

तमाम योजनाओं के बाद भी ग्रामीण क्षेत्रों में अशिक्षा आज भी एक बड़ा कारण है। अर्जुनपुर गाँव की एक महिला ( 40 वर्ष ) को उनका असली नाम नहीं पाता। नाम पूछने पर पर शर्माती हैं और कहती हैं अब नाम क्या कौन सा ऑफिस जाते हैं सब ऐसे ही बड़की बड़की कहते हैं। बचपन में सब मुन्नी कहते थे और जब ब्याह के आए तो पति के नाम से फिर बच्चों की अम्मा के नाम से ही जाने गए। उनके बगल में खड़ी रामकली को उनकी उम्र नहीं पता वो कहती हैं, हम क्या जानें उम्र बस अम्मा बताती थीं गाँव वाले गिरिजा चाचा जब मरे थे उसके आस पास हम पैदा हुए थे।

ज्यादातर ग्रामीण इलाकों में महिलाएं आज भी अपने नाम और उम्र से अंजान हैं। उम्र पूछने पर वो इसे किसी घटना से जोड़ के बताती हैं। इस बारे में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के समाजशास्त्री डॉ सोहन राम यादव बताते हैं, “इसका सबसे बड़ा कारण अशिक्षा और जागरूकता की कमी है। उनके माता पिता ने कभी लिखा ही नहीं जन्म का समय या दिन कौन सा था। बस घटनाओं से जोड़कर उन्हें याद रखते थे। तो उन्हें भी वही पता है वो उन्हें किसी घटना के सहारे अंदाजे में बताती हैं।”

फोटो -प्रभात वर्मा।

वो आगे बताते हैं, “जब आप दाखिला लेने स्कूल जाते हैं वहां आपकी उम्र पूछी जाती है वही नाम और उम्र आपके सारे दस्तावेजों पर होती है लेकिन जब ये महिलाएं न स्कूल गईं न इन्होनें कभी पढ़ाई की तो इन्हें इसकी जरूरत ही नहीं पड़ी।”

जन्मतिथि का कोई साक्ष्य न होना किशोरियों के लिए एक परेशानी है। ऐसे में उनकी उम्र का सही पता नहीं चल पाता और उनके बड़े होने को माहवारी से जोड़कर उन्हें शादी के योग्य मान लिया जाता है।

“अब लड़कियां कब बड़ी हुईं ये तो महीना (माहवारी) होने पर ही पता चल जाता है। लड़की शादी करने लायक तभी मान जी जाती है और ये वही 15, 16 साल में होता है।”
पद्मिनी देवी, बुर्जुग महिला , जमनवां गाँव, गोण्डा

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