गाँवों में सबको खिलाने के बाद खाना खाने का रिवाज़ महिलाओं की सेहत पर पड़ रहा भारी

Shrinkhala PandeyShrinkhala Pandey   22 Dec 2017 4:51 PM GMT

गाँवों में सबको खिलाने के बाद खाना खाने का रिवाज़ महिलाओं की सेहत पर पड़ रहा भारी

परिवार के साथ भोजन करने से भी आएगा बदलाव।

अक्सर हम देखते हैं कि घर की महिलाएं सबको खाना खिलाने के बाद भोजन करने बैठती हैं। गाँवों में ही नहीं बल्कि शहरों के संयुक्त परिवारों में भी ये रिवाज़ देखने को मिलता है। हम बराबरी के हक की बात करते हैं तो इन महिलाओं को बराबर में बैठाकर खाना क्यों नहीं खिलाते।

ग्रामीण भारत में आज भी आमतौर पर महिलाएं पूरे परिवार को खाना खिलाने के बाद ही खाती हैं और ये भी एक कारण हैं उनके शरीर को पर्याप्त पोषण न मिलने का। गोण्डा जिले के धमसड़ा गाँव की रहने वाली सुनीता पांडेय (38वर्ष) संयुक्त परिवार में रहती हैं, जहां सास-ससुर, पति बच्चे, जेठ व जेठानी सबका खाना एक साथ बनता है। वो बताती हैं, “मैं जबसे ससुराल आई हूं कभी भी पति या बच्चों के साथ खाना नहीं खाया। पहले घर के आदमी व बच्चे खा लेते हैं फिर औरतें खाती हैं। कभी कभार ये भी होता है कि दाल कम पड़ गई, या किसी ने दो रोटी ज्यादा खा ली तो कम पड़ गया। ऐसे में हम बचा ही खा लेते हैं अकेले के लिए दोबारा कौन बनाए।”

ज्यादातर महिलाएं एनीमिया का शिकार

सुनीता जैसी कई महिलाएं हैं जो अपने परिवार के पोषण का तो पूरा ध्यान रखती हैं लेकिन खुद के खानपान को लेकर इतनी सजग नहीं होतीं। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार ग्रामीण भारत में 15 से 49 वर्ष के बीच की कम से कम 54 फीसदी महिलाओं में खून की कमी है जबकि 27 फीसदी महिलाएं कम वजन की हैं।

इस रिवाज़ को बदलने की जरूरत

महिलाओं के सेहत पर असर डाल रहे इस रिवाज को सुधारने के लिए 2015 में फ्रीडम फ्रॉम हंगर इंडिया ट्रस्ट ने एक न्यूट्रीशन प्रोजेक्ट शुरू किया था। इसके तहत घर के सभी सदस्यों को एक साथ भोजन करने के लिए जागरूक किया गया। ट्रस्ट की प्रमुख कार्यकारी अधिकारी सरस्वती राव बताती हैं, "हम हमेशा से अपने ही घर में ये चीज देखते आए हैं कि महिलाएं सबको खिलाने के बाद खाती हैं लेकिन हमने कभी इसे बदलने की कोशिश नहीं की। भले ये रिवाज घर के बड़ों को सम्मान देने के लिए बना हो लेकिन ये उनकी सेहत के लिए नुकसानदायक हो गया।”

महिलाओं को ज्यादा कैलोरी की जरूरत।

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वो आगे बताती हैं, “इस परियोजना के तहत हमने पुरुषों और महिलाओँ को शामिल कर इस मुद्दे पर बात करना शुरू किया। घर के पुरूषों को दिखाया व बताया कि जब ये महिलाएं अकेले खाने बैठती हैं तो कम व बचा हुआ खाती हैं ये भी एक कारण हैं पूरा पोषण न मिलने का।”

यहां तक की ज्यादातर टीवी सीरियलों व फिल्मों में भी यही दिखाया जाता है कि डाइनिंग टेबल पर पूरा परिवार खाना खाने बैठा होता है व महिलाएं परोसती हुई दिखाई जाती हैं। लखनऊ के केड़वा गाँव की रहने वाली अंकिता चौधरी (33वर्ष) बताती हैं, “हमारे यहां पहले ससुर, पति व बच्चे खाते हैं, उसके बाद सास फिर मैं। भूख लगी भी हो तो इनके खाने का इतंजार करना पड़ता है। जब तक वो लोग नहीं खाते हमें अपनी भूख मारनी पड़ती है।”

स्टार प्लस पर आने वाले टीवी सीरियल साथ निभाना साथिया में गोपी बहू खाना परोसते हुए।

महिलाओं को पुरूषों की अपेक्षा ज्यादा कैलोरी की जरूरत होती है। इस बारे में स्वास्थ्य एवं पोषण सलाहकार डॉ सुरभि जैन बताती हैं,“एक घरेलू महिला को दिन भर में 2100 कैलोरी की जरूरत होती है वहीं खेती या मजदूरी करने वाली महिला को 2400 कैलोरी की जरूरत होती है। महिलाओं को पूरे पोषण के लिए भोजन में दाल, चावल, रोटी और हरी सब्जी दोनों समय लेना चाहिए। फल और दूध को आहार में शामिल करना चाहिए। खाने में प्रोटीन की मात्रा ज्यादा होनी चाहिए।”

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इस बारे में लखनऊ के राम मनोहर लोहिया लॉ विश्वविद्यालय के समाजशास्त्री डॉ संजय सिंह बताते हैं, “ये लंबे समय से चलता आ रहा है, शहरों में तो अब ऐसा कम है लेकिन गाँवों में ये आज भी है कि महिलाएं सबसे बाद में भोजन करती हैं या महिलाएं परिवार के सब लोग के खाने पीने का पूरा ध्यान रखती हैं लेकिन उनका ध्यान रखने वाला कोई नहीं है।”

वो आगे बताते हैं, “ यहां तक की वो जब बीमार होती हैं तो भी समस्या बहुत ज्यादा बढ़ जाने पर ही डाॅक्टर को दिखाने नहीं जाती। इसकी तरफ ध्यान देने की जरूरत घर के पुरुषों की हैं। अगर वो हमारे लिए इतना करती हैं तो उनकी सेहत का ध्यान रखना हमारी जिम्मेदारी होनी चाहिए। ”

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