स्वयं सहायता समूह ने ख़त्म की पर्दा प्रथा

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स्वयं सहायता समूह ने ख़त्म की पर्दा प्रथाgaon connection

रायबरेली। सरिता देवी (34वर्ष) अब आधे हाथ का घूंघट करके घर से बाहर निकलने से पहले सोचती नहीं हैं बल्कि हर महीने गाँव से दो किमी दूर मीटिंग करने जाती हैं। सरिता एक स्वयं सहायता समूह से पिछले तीन साल से जुड़ी हैं और इससे उनकी जिंदगी में कई छोटे-बड़े बदलाव भी हुए हैं। अब पहले की तरह उनके घर के लोग उन्हें घर से बाहर जाने पर रोकते भी नहीं हैं क्योंकि सरिता से घर को आर्थिक मदद भी मिलती है।

रायबरेली जिले से लगभग 14 किमी दूर बेलाटिकई गाँव की रहने वाली सरिता देवी बताती हैं, ''समूह के बारे में गाँव की महिलाओं से ही पता चला था। हर महीने 100 रूपये जमा करते हैं और कभी अचानक जरूरत पडऩे पर आसानी से मिल भी जाते हैं। पहले साहूकारों से पैसे लेते थे तो वो आए दिन दरवाजे पर खड़े हो जाते थे अब ऐसा नहीं है।" जिंदगी में आए बदलाव के बारे में सरिता बताती हैं, ''अब हमारे अदंर हिम्मत आई है पहले बाजार तक नहीं जाते थे अकेले अब गाँव से बाहर भी जाते हैं मीटिंग के लिए और कोई रोकता नहीं है क्योंकि घर बनवाने में बीस हजार रूपये मैनें भी दिए थे।"

स्वयं सहायता समूह में 10 से 15 लोगों का समूह होता है जिसमें वो हर महीने एक निश्चित पैसे जमा करती हैं और जरूरत पडऩे पर कुछ धनराशि निकाल भी लेते हैं और उसे कम ब्याज पर चुकाते रहते हैं। केवल बेलाटिकई गाँव में इस समय 12 समूह चल रहे हैं। ये समूह रायबरेली जिले के राजीव गांधी चैरिटबल ट्रस्ट और नाबार्ड की मदद से चलाए जा रहे हैं, जिनसे गाँव की लगभग हर महिला जुड़ी हैं। 

उत्तर प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन 2015 के अनुसार उत्तर प्रदेश में कुल 11,9758 स्वयं सहायता समूह हैं, जिनसे लगभग  11,62322 लोग जुड़े हैं। इनमें से 90548 समूह बैंकों से जुड़े हैं। 

ये स्वयं सहायता समूह अब आर्थिक लेनदेन के अलावा विकास की योजनाओं में भी अग्रसर हो रहे हैं। संतोष महिला समूह की अध्यक्ष सरोज देवी (35वर्ष) बताती हैं, ''इस समय गाँव के आठ समूहों ने जो अच्छी हालत में हैं, मिलकर दुर्गा महिला शक्ति संगठन बनाया है। इसमें हर समूह से दो दो महिलाएं जुड़ी है। ये संगठन महिलाओं को स्वास्थ्य, शिक्षा की जानकारी भी देता है।" वो आगे बताती हैं, ''गाँव की हर महिला के घर में सोलर लाइट लग गई है वो इसी संगठन के कारण हुआ है। महिलाओं में अब साफ सफाई, अपनीे बेटियों की शिक्षा और स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता आई है।" 

कानपुर जिले में गैर सरकारी संगठन श्रमिक भारती से वर्तमान समय में कुल 1300 समूह बने हैं और इनके पास 13 करोड़ से ऊपर की बचत है। यहां के मुख्य कार्यकारी अधिकारी राकेश पाण्डेय समूह से महिलाओं में आये मुख्य बदलावों के बारे में बताते हैं, ''इन समूह से महिलाओं में सशक्तीकरण बढ़ा है। उन्होनें घर से निकलना शुरू किया है, तरह तरह की ट्रेनिंग और लोगों के साथ काम करने के कारण समझदारी में भी फर्क आया है।" वो आगे बताते हैं, ''अब वो खड़े होकर मंच पर बात करती हैं आर्थिक तौर पर भी मजबूत हुई हैं, जिससे परिवार के पुरूष उनसे मदद मांगते हैं। बच्चों की पढ़ाई पर अंतर आया है वो अब अच्छे स्कूल में पढ़ रहे हैं, महिलाओं में नेतृत्व करने और प्रबंधन की क्षमता बढ़ी है। आज वो 50 हजार रूपये तक लोन ले सकती हैं तो उनके पास भी अपनी पहचान है।"

समूह से जुड़ने के बाद महिलाओं में आत्मनिर्भरता तो आई ही है इसके अलावा पर्दा भी गाँव में बहुत कम हो गया है। कई महिलाओं ने खुद का छोटा मोटा काम भी शुरू कर लिया है। बेला टिकई गाँव की रहने वाली ऊषा सिंह (28वर्ष) बताती हैं, ''मैंनें बचत से पैसे निकाल कर गाय खरीदी थी और अब उसके दूध को बेंचकर पैसे भी कमा रही हूँ।" इसी तरह गाँव की और भी कई महिलाएं हैं जिन्होनें घर बनावाया या फिर दुकान खोली है। ''बैंक जाना हम महिलाओं के लिए परेशानी है वहां के नियम कानून, लिखा-पढ़ी हमारी समझ में नहीं आते क्योंकि हम पढ़े लिखे नहीं है ज्यादा और समूह में हम महिलाएं ही होती हैं तो आराम से बातचीत करके पैसे जमा कर देते हैं। ज्यादा झंझट भी नहीं है।" ऊषा आगे बताती हैं। 

नाबार्ड के विकास कुमार बताते हैं, ''नाबार्ड बैंको और स्वयंसेवी संस्था के माध्यम से महिलाओं को समूह बनाने के लिए प्रेरित करता है। समूह बनने से लेकर रिकवरी तक के लिए दस हजार रूपये भी बैंक कों देता है। इसके अलावा ट्रेनिंग के लिए अलग से फंड जारी करता है।"

 

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