दोहरे बोझ के तले दबती जा रहीं कामकाजी महिलाएं, तनाव का हो रहीं शिकार

Shrinkhala PandeyShrinkhala Pandey   21 Dec 2017 4:53 PM GMT

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दोहरे बोझ के तले दबती जा रहीं कामकाजी महिलाएं, तनाव का हो रहीं शिकार

कामकाजी महिलाएं तनाव का ज्यादा शिकार।

प्रियंका (35 वर्ष) एक कामकाजी महिला हैं जो घर का सारा काम निपटाकर आफिस जाती हैं, ऑफिस के काम के साथ पूरे परिवार व बच्चों की जिम्मेदारी का बोझ भी इन्हीं के कंधों पर होता है। ऐसे में प्रियंका का अपने लिए वक्त निकालना मुश्किल हो जाता है।

महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा ज्यादा तनाव का शिकार होती हैं, इनमें कामकाजी व घरेलू दोनों ही तरह की महिलाएं होती हैं। एक अध्ययन के अनुसार, कामकाजी महिलाएं घरेलू महिलाओं की तुलना में दो गुना ज्यादा तनाव का शिकार होती हैं।

इसके पीछे कई कारण हैं। जहां एक ओर बदलते समय में महिलाएं भी नौकरी कर रही हैं, बड़े बड़े पद संभाल रही हैं वहीं दूसरी ओर घर संभालने की जिम्मेदारी अकेले उनके ही कंधे पर होती जो उनपर दोगुना दबाव डालती है। खाना बनाना और बच्चों की देखभाल को अभी भी महिलाओं का ही काम माना जाता है। घरेलू महिलाओं पर सिर्फ यही जिम्मेदारी होती है तो वहीं कामकाजी महिलाओं को दोनों ही निभाना पड़ता है।

घर की जिम्मेदारी सिर्फ महिलाओं की क्यों ?

आॅफिस व घर के बीच सांमजस्य बैठाने में कई बार ये महिलाएं फेल हो जाती हैं तो कई बार तनाव में रहने लगती हैं। दिल्ली की रहने वाली पिंकी शुक्ला (32 बैंक) में कार्यरत हैं। सुनीता दो बच्चों की मां हैं और संयुक्त परिवार में रहती हें जहां सास ससुर, पति बच्चे सभी रहते हैं। सुनीता बताती हैं, “आदमी अगर नौकरी करता है तो ये कहा जाता है कि बाहर दिन भर मेहनत करता है घर आए तो लोग तुरंत चाय पानी लेकर दौड़ते हैं लेकिन महिला अगर नौकरी करती हैं तो उसके प्रति ये भाव नहीं रहता। वो खुद चाय बनाए तभी पिए। तो ये दो तरह का व्यवहार नहीं बदल पा रहा अभी भी हम भले कितनी भी तरक्की कर लें।”

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घर के साथ कार्यस्थलों पर भी इनके साथ भेदभाव होता है। ऑनलाइन करियर ऐंड रिक्रूटमेंट सलूशन प्रवाइडर मॉनस्टर इंडिया के हालिया सर्वे से पता चलता है कि देश में महिलाओं का औसत वेतन पुरुषों के मुकाबले 27 प्रतिशत कम है। जहां पुरुषों की औसत सैलरी 288.68 रुपए प्रति घंटा है, वहीं महिलाओं की महज 207.85 रुपए प्रति घंटा है।

घरेलू जिम्मेदारियां नौकरी छोड़ने पर करती हैं मजबूर

लखनऊ की रहने वाली कविता सिंह (30 वर्ष) ने हाल ही में अपनी नौकरी छोड़ दी क्योंकि उनपर दोहरा काम का बोझ पड़ता था। वो बताती हैं, “रोज सुबह 10 से 6 की नौकरी करना। सुबह बच्चों का नाश्ता, घर के सारे काम निपटाकर आफिस जाना शाम को लौटकर फिर बच्चों की पढ़ाई, घर के अन्य काम निपटाना ये दोनों की चीजें निभाते निभाते मैं परेशान हो गई थी।” वो आगे बताती हैं कि मैं डिप्रेशन में रहने लगी थी। हम पति पत्नी में लड़ाईयां भी बहुत होती थीं क्योंकि मुझे लगता था। वो मेरी मदद नहीं कर रहे और शायद ऐया था भी।

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जुलाई, 2015 में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की ओर से बेंगलुरु, हैदराबाद और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में सर्वेक्षण के लगभग आधे महिलाओं और लड़कियों का अध्ययन किया गया था। अध्ययन में ये सामने आया कि घरेलू जिम्मेदारी महिलाओं के करियर की बाधा थीं जिसके चलते उन्हें बीच में नौकरी भी छोड़नी पड़ती है तो कई बार तनाव में रहने लगती हैं।

घर व नौकरी के बीच तालमेल बैठाते बैठाते हो जाती हैं तनाव का शिकार

इस बारे में लखनऊ की मनोवैज्ञानिक नेहा आंनद बताती हैं, “कामकाजी महिलाओं में तनाव घर व आफिस दोनों ही कारणों से होते हैं। पुरूष अक्सर विरोध दर्ज कराकर अपनी भावना व्यक्त कर देते हैं, लेकिन महिलाएं ऎसा भी नहीं कर पातीं। न ही वो अपनी समस्याएं किसी से कह पाती हैं। इस तरह से वो खुद को ही कोसती हैं, अपनी किस्मत मानकर खुद से ही झल्लाती भी हैं।”

डॉ आंनद बताती हैं, “दूसरा जब वो नौकरी छोड़ देती हैं तो उन्हें लगता है इतनी मेहनत से पढ़ाई की थी, अच्छे पोस्ट पर पहुंची थी, सब बेकार हो गया। तो इस दशा में भी वो तनाव में रहने लगती हैं। परिवार में सहयोग की कमी उन्हें कुंठित कर देती है।”

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