मदर्स डे स्पेशल : थैलेसेमिया के खिलाफ एक मां की लड़ाई

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मदर्स डे स्पेशल : थैलेसेमिया के खिलाफ एक मां की लड़ाईgaoconnection

आज हम मदर्स डे पर कुछ ऐसी मांओं से मिलाने जा रहे हैं, जो मां के कर्तव्य को बखूबी निभा रही हैं, जिनसे सभी को प्रेरणा लेना चाहिए। #repost #mothersday

कोलकाता। थैलेसेमिया बीमारी से पीड़ित अपनी तीन महीने की बच्ची का इलाज कराने के लिए एक मां को अकेले देश-विदेश में भटकना पड़ रहा है क्योंकि इस बीमारी का पता चलने के बाद उसके पति और सास ससुर ने उसे अकेला छोड़ दिया था।

बांग्लादेश की राजधानी ढाका की रहने वाली गृहिणी ममता यासमीन अपनी बेटी अमीरा (बदला हुआ नाम) को लेकर अकेले ढाका से कोलकाता आई। डॉक्टरों ने उसे सलाह दी थी कि कोलकाता में उसकी बेटी का बेहतर इलाज हो सकता है।

यासमीन (30 वर्ष) कहती हैं, ‘‘अमीरा केवल तीन महीने की थी,जब उसके थैलेसेमिया से पीड़ित होने का पता चला। डाक्टरों ने हमें बताया कि अमीरा का इलाज हो सकता है लेकिन हमें धैर्य रखना होगा।’’यासमीन ने बताया कि मेरे पति और सास-ससुर ने मुझसे कहा एक मरे पौधे को सींचने का कोई फायदा नहीं है। अपनी बच्ची का इलाज कराने के इरादे पर दृढ़ ममता अपने पिता के घर लौट गई, जिन्होंने वित्तीय रूप से उसकी मदद का आश्वासन दिया था।

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कोलकाता महानगर में अकेली ममता की मदद को कोई मौजूद नहीं था और उसने राजारघाट इलाके में एक कमरा किराए पर लिया और उस समय तक चार साल की हो चुकी अमीरा को लेकर एक प्रसिद्ध अस्पताल में गयी जहां इलाज का खर्चा बेहिसाब था।‘‘मेरे पिता ने अपनी जमीन तथा दूसरा सामान बेच दिया और मुझे अमीरा के उपचार के लिए कुछ लाख रुपए दिए और 2012 में मैं भारत आ गई।’’ यासमीन बताती हैं।

‘‘खून चढ़ाने की प्रक्रिया इतनी दर्दनाक थी कि उसी समय मुझे अस्थि मज्जा उपचार का पता चला जो थैलेसेमिया को पूरी तरह ठीक कर सकता था। लेकिन ये उपचार बेहद खर्चीला था, इसके बाद मैंने अपोलो ग्लैनइगेल्स अस्पताल में कोशिश करने की सोची।’’ अस्पताल में डाक्टरों ने अस्थि मज्जा प्रतिरोपण का फैसला किया जो थैलेसेमिया का एकमात्र इलाज है।

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हिमाटो ओंकोलोजिस्ट और अस्थि मज्जा प्रतिरोपण विशेषज्ञ डॉ. शिल्पा भारतिया ने बताया, ‘‘अमीरा का आठ साल का भाई एचएलए के लिए एकदम उचित मैच था और उसे प्रतिरोपण के लिए तैयार किया गया।’’

इसके बाद अमीरा को कीमोथैरपी की हाई डोज देना शुरू किया गया ताकि उसकी अस्थिमज्जा तथा रोग प्रतिरोधक प्रणाली को एकदम साफ किया जा सके। ‘‘हमने नवंबर में प्रक्रिया शुरू की। उसके भाई की कूल्हे की हड्डी से अस्थि मज्जा एकत्र की गई और बीएमटी कक्ष में अमीरा को प्रतिरोपित की गई। नए सेल का निर्माण शुरू होने तक अगले दो सप्ताह तक इंतजार किया क्योंकि अमीरा को लगातार भीषण संक्रमण का खतरा बना हुआ था।’’ डॉ.भारतिया बताती हैं,

इन दो सप्ताह के भीतर अमीरा को एक विशेष अलग कक्ष में रखा गया जहां संक्रमण से बचाने के लिए विशेष रूप से निर्मित भोजन उसे दिया गया।डॉ.भारतिया ने बताया, ‘‘दस दिन में उसके रक्त में नई स्वस्थ कोशिकाओं के बनने के संकेत मिलने लगे। तीन सप्ताह बाद उसे घर जाने की अनुमति दे दी गई।

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वह अपनी बीमारी से पूरी तरह स्वस्थ हो चुकी थी।’’ अमीरा के फिर से बीमार पड़ने की आशंका के बारे में उन्होंने बताया, ‘‘ऐसी आशंका केवल पांच फीसदी है। हमें पूरी उम्मीद है कि अमीरा सामान्य जिंदगी जिएगी और एक खूबसूरत युवती बनेगी।’’अपनी बेटी के स्वस्थ होने से खुश ममता यासमीन कहती है, ‘‘मैं अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी लड़ाई जीत गयी हूं।’’

 

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