महिलाओं की इस अदालत ने सुलझाए 25,000 घरेलू हिंसा के मसले

उत्तर प्रदेश में ग्रामीण स्तर पर चलने वाली ये सबसे सस्ती न्यायिक प्रणाली है। यहाँ पर ग्रामीण महिलाओं के मसलों को कम समय में बिना किसी फीस के सुलझाया जाता है।

Neetu SinghNeetu Singh   19 Jun 2019 9:33 AM GMT

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महिलाओं की इस अदालत ने सुलझाए 25,000 घरेलू हिंसा के मसले

लखनऊ (उत्तर प्रदेश) । ग्रामीण महिलाएं एक ऐसी अदालत चलाती हैं, जहाँ पर ग्रामीण महिलाओं के हिंसा से सम्बन्धित मुद्दे सुलझाए जाते हैं। इन्हें न्याय के लिए अब न तो महीनों भटकना पड़ता है और न ही कोर्ट के चक्कर लगाने पड़ते हैं। ग्रामीण स्तर पर चलने वाली ये सबसे सस्ती न्यायिक प्रणाली है। नारी अदालत के नाम से मशहूर इस अदालत ने अबतक 25,000 घरेलू हिंसा के मसले सुलझाए हैं।

बीस वर्ष पहले यूपी के सहारनपुर जिले में पहली नारी अदालत की शुरुआत की गयी थी। नारी अदालत की शुरुआत करने वाली सुमित्रा देवी ने आज उम्र के 72 वर्ष भले ही पूरे कर लिए हों पर मुद्दे सुलझाने में ये आज भी उतनी ही ऊर्जावान दिखती हैं जितनी 20 साल पहले थीं। ये आत्मविश्वास के साथ कहती हैं, "हम पढ़े लिखे भले ही नहीं हैं लेकिन हमने उन सभी चीजों की ट्रेनिंग ले ली है, जिसकी हमें नारी अदालत में जरूरत पड़ती है। अब थाने, कोर्ट, कचहरी जाना तो हमारे लिए आम बात हो गयी है। बीस सालों में कितनी महिलाओं की समस्याएं निपटाई इसकी गिनती नहीं है हमारे पास।" सुमित्रा देवी नारी अदालत की पहली सदस्य नहीं है बल्कि इनकी तरह हजारों महिलाएं इस मुहीम से जुड़ी हैं।

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भरी दोपहरी में सीतापुर जिले में नारी अदालत में घरेलू हिंसा के मुद्दों को सुलझाती ग्रामीण महिलाएं.

महिला समाख्या उत्तर प्रदेश, महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा पिछले 20 वर्षों से नारी अदालत का संचालन ब्लॉक स्तर पर किया जा रहा है। ये एक अनूठा ढांचा है जहाँ पर ग्रामीण महिलाओं से बिना किसी फीस के उनके मामले सुलझाए जाते हैं। अबतक यूपी के 19 जिलों में 150 नारी अदालत चल रही हैं जिसमें 25,000 घरेलू हिंसा से सम्बन्धित मसले सुलझाए जा चुके हैं।

नारी अदालत चलाने वाली वो ग्रामीण महिलाएं हैं जो ज्यादा पढ़ी-लिखी तो नहीं हैं लेकिन इनमें कानून और काउंसलिंग करने की बखूबी समझ है। ये नारी अदालत हर महीने की एक निर्धारित तारीख पर ब्लॉक स्तर पर किसी पेड़ की छाँव में 15-20 महिलाएं संचालित करती हैं। इन्हें किसी तरह का कोई मानदेय नहीं मिलता पर नारी अदालत को इन्होंने एक मुहीम बना लिया हैं जहाँ ये अपने जैसी महिलाओं की न केवल मदद कर पाती हैं बल्कि इन्हें भी इनके नाम की एक पहचान मिली है।

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नारी अदालत लगाने वाली महिलाएं पहनती हैं नीले रंग की कोटी.

घरेलू हिंसा की संघर्षशील महिलाओं का राज्य स्तरीय वार्षिक सम्मेलन 18 जून 2019 को लखनऊ में आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य वर्षों से नारी अदालत चला रहीं ग्रामीण महिलाओं को सम्मान व पहचान दिलाना था जिन्होंने न केवल अपने जीवन में बल्कि अपने जैसी सैकड़ों संघर्षशील महिलाओं के जीवन में बदलाव लाया है। इस कार्यक्रम में 19 जनपदों की लगभग 700 महिलाएं शामिल हुई। जिसमें कई महिलाओं ने अपने संघर्ष की कहानी भी बताई। घरेलू हिंसा से मुक्त इन महिलाओं को 'नई पहचान' नाम दिया गया। आज ये महिलाएं अपने क्षेत्र में किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं। स्थानीय पुलिस भी अबकी मदद लेकर घरेलू हिंसा जैसे मुद्दों को सुलझाती है।

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राज्यस्तरीय कार्यक्रम में नारी अदालत की महिलाओं को सम्बोधित करती बेसिक शिक्षा मंत्री अनुपमा जायसवाल.

कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में आयीं बेसिक शिक्षा, बाल विकास एवं पुष्टाहार राज्यमंत्री अनुपमा जायसवाल ने महिलाओं को सम्बोधित करते हुए कहा, "आज सैकड़ों संघर्षशील महिलाओं को यहाँ देखकर मुझे खुशी हो रही है। महिलाओं के साथ मंच साझा करते हुए उन्हें समानता का अधिकार दिया गया है। महिला समाख्या ने आप सभी को निचले स्तर से लेकर फलक तक लाने का काम किया है।"


अगर हम चार साल पहले के आंकड़ों पर नजर डालें तो भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराध के वर्ष 2015 में जो मामले दर्ज हुए थे, उनमें उत्तर प्रदेश का पहला स्थान था। इन मामलों को कम करने में नारी अदालत महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। गाँव के मुद्दों को गाँव स्तर पर ही नारी अदालत सुलझाने का काम कर रही है। इसमें महिलाओं के पैसे और समय दोनों की बचत होती है। इसकी महत्वपूर्ण बात ये है कि महिलाएं महिलाओं के सामने अपनी बात सहजता से रख पाती हैं।

बीस वर्ष से नारी अदालत संचालित करने वाली 19 जिले के 150 नारी अदालत की लगभग 700 महिलाएं राज्यस्तरीय कार्यक्रम लखनऊ में शामिल हुई.

ग्रामीण स्तर पर नारी अदालत सबसे सस्ती न्याय प्रणाली

महिला समाख्या की राज्य परियोजना निदेशक डॉ स्मृति सिंह ने कहा, "नारी अदालत ब्लॉक स्तर पर चलने वाली सबसे सस्ती न्याय प्रणाली है। पिछले दो वर्षों में नारी अदालत ने बहुत रफ्तार से काम किया है। नारी अदालत में सौहार्दपूर्ण तरीके से मुद्दे सुलझाये जाते हैं। सजा का प्रावधान भी सन्देश देने जैसा होता है जैसे पिछले साल एक व्यक्ति को सजा के तौर पर पांच पौधे लगाकर उसकी देखरेख करने को कहा गया था।" वो आगे बताती हैं, "हर जिले में चलने वाली नारी अदालत की निर्धारित तारीख होती है जिसमें ज्यादातर 15 तारीख और बाकी की 14 और 28 तारीख को होती हैं। महिलाएं बकायदे मीटिंग मिनट्स नोट करती हैं। नारी अदालत चलाने वाली कई महिलाएं मजदूरी छोड़कर इसमें शामिल होती हैं। इनकी मंशा यही है जिस तरह से इनके जीवन में बदलाव आया है उसी तरह दूसरी महिलाओं को भी मदद कर तकलीफों से बाहर निकालना है।"

नारी अदालत में बाल विवाह के मसले को सुलझाती बहराइच जिले की महिलाएं.

हजारों ग्रामीण महिलाओं ने घर से बाहर निकलना सीखा

जब नारी अदालत की महिलाएं अपने संघर्ष की कहानी बता रहीं थीं तो उनमे आत्मविश्वास झलक रहा था। सहारनपुर की सावित्री देवी, गोरखपुर की जानकी देवी और प्रयागराज की दुईजी अम्मा को इस कार्यक्रम में सम्मानित किया गया। माइक पर सीतापुर जिले के पिसावां ब्लॉक की नींबूकली आत्मविश्वास के साथ अपनी आपबीती बता रहीं थीं, "एक समय था जब हमें दरवाजे की ओट से झाँकने पर मना कर दिया जाता था। गाँव की किसी बैठक में पञ्च और प्रधान फैसला लेते थे लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब बिना हमारे गये पंचायत का कोई फैसला नहीं लिया जाता। आज हम अकेले कहीं भी जा सकते हैं। पांचवीं तक पढ़ाई भी इस उम्र में की है।"

नीबूकली की तरह महिला समाख्या में ऐसी हजारों महिलाएं हैं जो आज न केवल इधर उधर अकेले आ जा सकती हैं बल्कि उनकी अपने नाम की एक पहचान है। इन ग्रामीण महिलाओं का एक रॉक बैंड भी चलता है जिसकी प्रस्तुती हुई और मदर सेवा संस्थान द्वारा नारी अदालत पर आधारित 'लाडो' नाटक का मंचन भी किया गया।

आली संस्था की कार्यकारिणी निदेशक रेनू मिश्रा ने नारी अदालत को ग्रामीण क्षेत्रों की महत्वपूर्ण कड़ी बताई.

पैनल डिस्कशन में शामिल आली संस्था की निदेशक रेनू मिश्रा ने कहा, "महिलाओं के द्वारा चल रही ये नारी अदालत आर्टिकल 21 के तहत हमें सम्मानपूर्वक जीवन जीने का अधिकार देता है। नारी अदालत का प्रदर्शन उत्साहजनक है। गाँव की महिलाओं के लिए कोर्ट कचहरी जाना कितना मुश्किल है इसे आप बखूबी समझ सकते हैं। सरकार को चाहिए ऐसी नारी अदालतों को वह एक मध्यस्थ संस्था का दर्जा दें, जिससे ग्रामीण महिलाओं को कानूनी लड़ाई लड़ने में आसानी हो।"

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नारी अदालत की ये हैं विशेषताएं

नारी अदालत की सबसे बड़ी खासियत ये है जब किसी केस की कहीं सुनवाई नहीं होती तो नारी अदालत में उस मसले को सुलझाया जाता है। यहाँ पर जिन केसों को सुलझाया जाता है उनमे न्यायालय की तरह लम्बे समय तक पीड़ित को चक्कर नहीं काटने पड़ते और न ही वकीलों का खर्चा देना पड़ता है। यहाँ आये मसलों को सामान्य सहमति से सुलझाया जाता है।

नारी अदालत में आये 99 फीसदी मुद्दे सफलतापूर्वक सुलझा दिए जाते हैं। जब कोई केस सुलझ जाता है तो नारी अदालत की महिलाएं उसका फालोअप भी करती हैं जिससे पीड़ित महिला को दोबारा से किसी तरह की कोई परेशानी का सामना न करना पड़े।

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