क्योंकि मुझे पढ़ना है... चूल्हा चौका निपटाकर पढ़ने आती हैं दादी और नानी, देखिए वीडियो

Neetu SinghNeetu Singh   17 Nov 2017 12:10 PM GMT

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क्योंकि मुझे पढ़ना है... चूल्हा चौका निपटाकर पढ़ने आती हैं दादी और नानी, देखिए वीडियोघर का काम काज निपटाकर पढ़ने आती हैं ये ग्रामीण महिलाएं।

ये ख़बर बदलते भारत की उन महिलाओं की है, जो दादी-नानी बन गई हैं लेकिन स्कूल जाती हैं। वो जिन्होंने उम्र के कई दशक स्कूल का मुंह नहीं देखा और वो हिसाब-किताब करती हैं। लोगों को जागरुक करती हैं, अधिकारियों से सवाल करती हैं, पढ़िए नीतू सिंह की बुंदेलखंड से विषेश रिपोर्ट

ललितपुर (बुंदेलखंड)। आदिवासी और दलित समुदाय की वो महिलाएं, जिनकी कम उम्र में शादी हो गई, निरक्षर होने की वजह से रुपए-पैसे का हिसाब नहीं लगा पाती थीं। इन महिलाओं ने अपनो से लड़ाई लड़कर उम्र की इस दहलीज में न सिर्फ लिखना-पढ़ना सीखा, बल्कि सरकारी योजनाओं की जानकारी होने के बाद अपने हक के लिए पंचायत स्तर पर खुद सवाल भी करने लगी हैं।

ललितपुर जिला मुख्यालय से लगभग 48 किलोमीटर दूर पूरब दिशा में महरौनी ब्लॉक के बम्हौरी बहादुर सिंह गाँव में रहने वाली सावित्री रजक (35 वर्ष) सहजनी साक्षरता केंद्र के कमरे की तरफ इशारा करते हुए बताती हैं, “इस एक कमरे में हमारे पूरे गाँव की हर जानकारी लगी है। जिलाधिकारी से लेकर ग्राम प्रधान, पंचायत मित्र सभी का नम्बर लिखा है, कितनों को पेंशन मिलनी चाहिए, कितनों को मिल रही है ये सब लिखा है।” (देखिए वीडियो)

सहजनी साक्षरता केंद्र में पढ़ती महिलाएं। फोटो- नीतू सिंह

वो आगे बताती हैं, “कम उम्र में मां-बाप ने शादी कर दी थी। घर में इतना पैसा नहीं था कि वो हमें पढ़ा सकें। पचास रुपए का हिसाब लगाना हमारे लिए मुश्किल था, जबसे इस साक्षरता केंद्र पर पढ़ाई करने लगे हैं तबसे घर पर अपने बच्चों को भी पढ़ा लेते हैं। अब 10 हजार रुपए तक का हिसाब भीकर लेते हैं।” सावित्री रजक इस क्षेत्र की पहली महिला नहीं हैं जो पहले निरक्षर थीं और अब साक्षर हो गईं हों बल्कि इनकी तरह हजारों दलित और आदिवासी महिलाएं सहजनी साक्षरता केंद्र पर आकर लिखने-पढ़ने के साथ ही सरकारी योजनाओं की जानकारी ले रही हैं और अब अपने हक के लिए पंचायत स्तर पर सवाल करने लगी हैं। (देखिए वीडियो)

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भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय मुताबिक, वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की साक्षरता दर 72.99 फीसदी है। इसमें पिछले 10 वर्षों की अवधि में समग्र साक्षरता दर में 8.15 फीसदी की वृद्धि हुई है। 2001 में 64.84 फीसदी थी वहीं 2011 में 72.99 फीसदी हुई है।ललितपुर जिले में 42 साक्षरता केंद्र और 25 ग्राम पंचायतों में सूचना केंद्र चल रहे हैं, जहां ग्रामीणों को पढ़ाने के साथ-साथ सरकारी योजनाओं की जानकारी दी जाती है।

जो महिलाएं स्कूल नहीं गईं, वो आ रहीं हैं साक्षरता केंद्र

संस्था की जिला समन्यवक मीना बताती हैं, “इन साक्षरता केंद्र में वो महिलाएं और किशोरियां पढ़ने आती हैं जो कभी स्कूल नहीं गई हैं, जो अंगूठा लगाती हैं जिन्हें पैसे का लेनदेन करने में असुविधा होती है, साक्षरता केन्द्रों पर सुबह 10 बजे से शाम चार बजे तक नि:शुल्क इन्हें पढ़ाया जाता है।” वो आगे बताती हैं, “अबतक 6365 महिलाएं साक्षर हो चुकी हैं ये संख्या लगातार बढ़ रही हैं। ग्रामीण महिलाएं ही इस संस्था में काम करती हैं। महिलाएं हर क्षेत्र में आगे हो ये हमारा प्रयास है।”

इस केंद्र पर पढ़ने आ रही मीरा देवी (55 वर्ष) बताती हैं, “बुढ़ापे में भी हम पढ़ेंगे ऐसा हमने सोचा नहीं था। पुराने समय में कुछ दर्जा पढ़े थे, लेकिन शादी के बाद चूल्हा-चौका करने में सब भूल गए थे। घर का कामकाज निपटाकर दो-तीन घंटे के लिए अब यहाँ पढ़ने आ जाते हैं।”

वो आगे बताती हैं, “यहां पढ़ाई के साथ-साथ सभी सरकारी योजनाओं की जानकारी दी जाती है। हम स्कूल में जाकर चेक कर सकते हैं मिड-डे मील का खाना कैसा बना है। कोटेदार कम तौल कर देता है तो अब हम उसे टोक देते हैं। बैंक में जाकर पैसा जमा करने और निकालने के लिए फॉर्म खुद भर लेते हैं।”

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खेल-खेल में ग्रामीण महिलाओं को पढ़ाती नीलम

यहां लड़कियों को पढ़ाना जरूरी नहीं समझा जाता

इस साक्षरता केंद्र पर पढ़ा रही नीलम राजा बताती हैं, “हमारे यहां लड़कियों को पढ़ाना जरूरी नहीं समझा जाता है, वो नौकरी करने नहीं जाएंगी इसलिए कम उम्र में शादी कर दी जाती है, ऐसा नहीं है वो पढ़ना नहीं चाहती हैं। आज उन्हें मौका मिल रहा है तो इस उम्र में भी घर का काम जल्दी निपटाकर पढ़ने आती है।”

वो आगे बताती हैं, “अब घर में ये महिलाएं अपने बच्चों की स्कूल की कॉपी चेक कर पाती हैं, जो बच्चे पहले पढ़ने नहीं जाते थे अब ये उन्हें पढ़ने भेज रही हैं। विद्यालय प्रबंधन समिति की मीटिंग, पंचायत की बैठक में भी अब ये हिस्सा ले रही हैं।” इन साक्षरता केंद्र से आसपास के क्षेत्र में बहुत बड़ा तो नहीं पर बदलाव जरूर नजर आ रहा है। दिनभर महिलाएं अपने घर का कामकाज निपटाकर यहां आ जाती हैं। एक-दूसरे को देखादेखी गिनती, पहाड़ा, अंग्रेजी, किताब पढ़ना सब सीख रही हैं।

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