शौचालय की कमी दे रही महिलाओं को यूटीआई इंफेक्शन, जानें कैसे बचें इस बीमारी से
Shrinkhala Pandey 16 Jun 2017 6:53 PM GMT

लखनऊ। घर-घर शौचालय हो और इसका इस्तेमाल हो इसके लिए सरकार लगातार प्रयास कर रही हैं। ये देश के विकास में तो अहम है ही साथ ही सेहत से भी इसका पूरा सरोकार है। हाल ही में जारी हुई फिल्म टॉयलेट एक प्रेमकथा के प्रोमो में भी महिलाओं को खुले में शौच जाने पर क्या क्या समस्याएं आती हैं ये दिखाया गया है।
शौचालय का न होना और गंदा होना दोनों ही कई बीमारियों को न्यौता देता है। ग्रामीण क्षेत्रों व शहरों में काम करने वाली महिलाएं जिन्हें शौचालय की सुविधा नहीं मिलती वे उसके अभाव और साफ-सफाई की खराब व्यवस्था के कारण यूटीआई से पीड़ित होती हैं। शहरी और खासकर कामकाजी महिलाएं गन्दे सार्वजनिक शौचालयों के कारण इस समस्या से ग्रस्त हो रही हैं।
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यूटीआई यानि यूरीनरी ट्रेक्ट इंफेक्शन होने के कई कारण हैं जिनमें शौच के बाद सही तरीके से सफाई न करने, पेशाब लगने के बावजूद बहुत देर तक शौचालय न जाना भी है।
इस बारे में कोलंबिया एशिया अस्पताल के चिकित्सकों और विशेषज्ञों के आकलन के बाद यह भी कहा गया है कि यूटीआई महिलाओं और पुरुषों में देखा गया है, लेकिन पुरुषों की तुलना में महिलाएं इसकी ज्यादा शिकार हैं। यूटीआई को महिलाओं में सबसे आम बैक्टीरियल इंफेक्शन माना जाता है। लगभग 50 से 60 प्रतिशत महिलाएं अपने जीवन में कम-से-कम एक बार यूटीआई से पीड़ित पाई गई हैं। हर वर्ष विश्व के लगभग 15 करोड़ लोगों में यूटीआई के मामले पाए जाते हैं।
लखनऊ जिला मुख्यालय से लगभग 30 किमी उत्तर दिशा में अर्जुनपुर गाँव की रहने वाली देवनंदनी देवी (34) बताती हैं, “गाँव में शौचालय तो बने नहीं हैं दिन में बड़ी दिक्कत हो जाती है, पानी ज्यादा नहीं पीते कि बार-बार बाथरूम न जाना पड़े।”
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वहीं लखनऊ शहर की एक प्राइवेट कंपनी में काम करने वाली सरिता वर्मा (24ववर्ष) बताती हैं, “मेरे काम ज्यादातर फील्डवर्क का है ऐसे में जब मैं बाहर होती हूं तो शौचालय दिखते नहीं हैं सार्वजनिक शौचालय इतने गंदे हैं कि उन्हें इस्तेमाल करने से पहले सोचना पड़ता है।”
स्वच्छ सार्वजनिक शौचालयों का अभाव और कार्यस्थलों पर भी ऐसे टॉयलेट का अभाव एक बड़ी समस्या है। इससे होने वाली बीमारियों के बारे में लखनऊ की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ पुष्पा जायसवाल बताती हैं, “ऐसी बीमारियों में व्यक्तिगत साफ-सफाई तथा जागरुकता बहुत जरूरी मानी जाती है। यूटीआई बहुत आम समस्या होती जा रही है। अक्सर ऐसे केस आते हैं जो महिलाएं ऑफिस में काम करती हैं या बाहर ट्रैवल करती हैं उन्हें यूरिन लगने पर तुंरत टायलेट का न मिलना बीमारी की तरफ भेजता है। यूरिन लगने पर रोकना पथरी का भी कारण बन सकता है। वहीं दूसरी तरफ गंदे शौचालय कई तरह के इंफेक्शन को बढ़ावा देते हैं।”
लखनऊ की इंदिरा नगर निवासी प्रियंका सिंह (26वर्ष) बताती हैं, “मैं अगर कभी बस से सफर कर रहीं हूं तो टॉयलेट की सुविधा कम ही होती है हाईवे वगैरह पर और वैसे भी महिलाएं कहां गाड़ी रोक कर कहेंगी टॉयलेट जाने को। इसके साथ ही ट्रेन में टॉयलेट इतने गंदे होते हैं कि उनसे बचने की कोशिश करती हूं।”
लक्षण
बार-बार पेशाब लगना, पेशाब करने के दौरान जलन, बुखार, बदबूदार पेशाब होना और पेशाब का रंग धुंधला या फिर हल्का लाल होना और पेट के निचले हिस्से में दबाव महसूस होना इस बीमारी के प्रमुख लक्षण हैं। यूटीआई के साथ मुख्य समस्या यह होती है कि एक बार ठीक होने के बाद इस संक्रमण के दोबारा होने की आशंका काफी ज्यादा होती है। अमूमन 50 प्रतिशत महिलाओं को एक साल के भीतर दोबारा यह संक्रमण हो जाता है। इसलिए यूटीआई होने पर एंटीबायोटिक का कोर्स पूरा करना जरूरी होता है। साथ ही दवा बंद करने के एक सप्ताह बाद फिर से यूरिन टेस्ट करवाने की सलाह दी जाती है, ताकि दोबारा संक्रमण होने की आशंका को दूर किया जा सके।
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ऐसे बचें यूटीआई से
जैसे ही पेशाब लगे, तुरंत शौचालय जाएं। पेशाब को रोक कर न रखें।
पेशाब करने के बाद अपने प्राइवेट पार्ट्स की सही तरीके से सफाई जरूर करें।
सार्वजनिक शौचालयों के इस्तेमाल के वक्त सतर्कता बरतें। 80 प्रतिशत से ज्यादा मामलों में संक्रमण यहीं से होता है। सार्वजनिक शौचालय का इस्तेमाल करने से पहले और बाद में फ्लश जरूर करें। साथ ही अगर वेस्टर्न शौचालय है तो इस्तेमाल करने से पहले उसकी शीट को साफ करें।
रोज 10 गिलास पानी जरूर पिएं। अगर आपको बार-बार संक्रमण हो रहा है तो पानी की मात्रा 10 प्रतिशत बढ़ा दें। अगर आपको खुद में यूटीआई का कोई लक्षण नजर आए तो हर दिन पीने वाले तरल पदार्थों की मात्रा को दोगुना कर दें।
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