इलाहाबाद में महिला समूह ने बचत कर बनाया खुद का बैंक, कर्ज लेने के लिए नहीं लगातीं साहूकारों के चक्कर
Neetu Singh 20 April 2017 3:12 PM GMT
स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क
इलाहाबाद। कभी महाजन के कर्ज से दबी महिलाएं आज अपने दम पर अपनी मजदूरी से जमा किए पैसों से लाखों रुपए की मालकिन बन चुकी हैं। अब इन महिलाओं को कर्ज मांगने के लिए कहीं भटकना नहीं पड़ता है। ये अपनी ही जमा पूंजी से आपस में पैसे का कम ब्याज पर लेन-देन कर लेती हैं और रोजगार से मुनाफा होने पर वापस कर देती हैं।
शान्ती देवी (50 वर्ष ) बताती हैं, “जब जमींदार से पैसा उधार लेते थे तो वो मनमाना ब्याज लगाते थे, अगर पैसा वापसी में देरी हुई तो वो दरवाजे आकर गाली-गलौज करते थे, कई बार वर्षों तक उनके यहां मजदूरी करने के बाद सिर्फ ब्याज का ही पैसा चुकता कर पाते थे।”
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शान्ती देवी की तरह सैकड़ों महिलाओं ने समूह में संगठित होकर अपनी मजदूरी से 20 रुपए महीने बचाकर बचत करना शुरू किया। सैकड़ों महिलाओं द्वारा जमा की गई छोटी पूंजी से आज लाखों रुपए इनके खाते में पड़े हैं।
इलाहाबाद जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर जसरा ब्लॉक की रहने वाली शान्ती देवी बताती हैं, “हमारे समूह में इस समय ढाई लाख रुपए हैं, बचत करना वर्ष 2004 में शुरू किया था, एक लाख की बचत हुई है तीन लाख रुपए ब्याज का हो गया है ।” वो आगे बताती हैं, “किसी महिला को अब अगर पैसों की जरूरत पड़ती है तो वो इस समूह से ही पैसा उधार लेती हैं, जब तक पैसा वापसी नहीं होती तब तक दो रुपए सैकड़ा ब्याज देना होता है।
महिला समाख्या द्वारा वर्ष 2004 में इलाहाबाद के कई ब्लॉकों में महिलाओं द्वारा संघ बचत समूह शुरू किया गया, जिसमें महिलाओं ने मजदूरी से बचत करके 20 रुपए महीने से 20-20 महिलाओं ने शुरू की। आज ये हजारों महिलाएं 100 रुपए महीने जमा कर रही हैं। असरवई गाँव की रहने वाली संघ समूह की महिला मुन्नी देवी (65 वर्ष) खुश होकर बताती हैं, “बेटी की शादी में हमें किसी के आगे हाथ नहीं जोड़ना पड़ा। समूह से पैसे लिए और शादी कर दी, जब कोई बड़ी बीमारी अचानक हो जाती है तो तुरंत पैसे ले लेते हैं। बाद में मजदूरी करके वापस भी कर देते हैं।”
समूह का पूरा लेनदेन मैं देखती हूं। जब जरूरत लगती है रुपए ले लेते हैं। कई महिलाओं ने भैंस पालन, बकरी पालन, दुकान, खेती करने जैसे कई रोजगारों के लिए समूह से पैसा लेकर शुरुआत की है। रोजगार से मुनाफा होते ही महिलाएं बिना कहे पैसा वापस कर देती हैं।रामबनी देवी, कोषाध्यक्ष, कंजासा गाँव
समूह से पहले का अनुभव साझा करते हुए मुन्नी बताती हैं, “हमने तो अपने पुरखों को भी जमींदारों से कर्ज लेते देखा है, उसके बदले मारपीट से लेकर भूखे पेट वर्षों मजदूरी करते देखा है, अब समूहों से इतनी हिम्मत आ गई है कि किसी के सामने हाथ नहीं फैलाना पड़ता नहीं तो हम मजदूरों के लिए हजार रुपए अकेले जुटाना तो मुश्किल है, लाखों के बारे में तो हम सोच भी नहीं सकते हैं।”
अब उधार की वजह से नहीं करनी पड़ती मजदूरी
शान्ती देवी बताती हैं, “इन ग्रामीण मजदूर महिलाओं को अब उधार पैसा लेने के लिए किसी महाजन के सामने घंटों हाथ जोड़कर नहीं खड़े होना पड़ता है और न ही दोगुना-तिगुना ब्याज देना पड़ता है। उधार पैसों की वजह से जो बंधुवा मजदूरी करनी पड़ती थी, उससे भी मुक्ति मिली है।”
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