नेशनल हेराल्ड का केस, फिरोज़ गांधी की चर्चा नहीं

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नेशनल हेराल्ड का केस, फिरोज़ गांधी की चर्चा नहींगाँव कनेक्शन

सुब्रमनियम स्वामी की दायर याचिका में नेशनल हेराल्ड की सम्पत्ति में तथाकथित भ्रष्टाचार का मामला उठाया गया है और इस मामले में सोनिया गांधी तथा राहुल गांधी सहित कई लोगों पर आरोप लगे हैं। सोनिया गांधी और राहुल गांधी को अब अदालत में 19 दिसम्बर को पेश होना है। संसद में हंगामे से काम ठप है और सड़कों पर आन्दोलन चल रहा है। ध्यान रहे लखनऊ से छपने वाले नेशनल हेराल्ड, नवजीवन और कौमी आवाज़ ने आजादी की लड़ाई में बड़ा योगदान दिया था। ये अखबार कब और कैसे बन्द हुआ और कब भ्रष्टाचार का शिकार हुआ यह शोध का विषय है । 

इन अखबारों के प्रबंध निदेशक थे राहुल गांधी के दादा फिरोज़ जहांगीर गांधी थे। वह इन्दिरा गांधी के पति और राजीव गांधी के पिता थे। फिरोज़ गांधी ने गांधी परिवार को अपना नाम दिया क्योंकि भारत में पिता के नाम से ही परिवार का नाम चलता है। फिरोज़ गांधी प्रबन्ध निदेशक ही नहीं अखबारों के माध्यम से जनता की आवाज़ बुलंद करने वाले, आजाद भारत में भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग छेडऩे वाले पहले सांसद थे। प्रेस की आजादी और जन सूचना अधिकार के लिए लडऩे वाले फिरोज़ गांधी हमारे देश के अग्रणी नेता थे और नेशनल हेराल्ड के मूर्धन्य सम्पादक थे चेलापति राव। इसे विडम्बना ही कहा जाएगा कि फिरोज़ गांधी के परिवार ने ना तो उनका कोई स्मारक बनवाया और न जन्म शताब्दी मनाई। 

फिरोज़ गांधी ने नेहरू से अपनी रिश्तेदारी की परवाह किए बिना सरकार की औद्योगिक नीतियों और भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग छेड़ दिया था। उनका परिवार भ्रष्टाचार में आरोपित होगा, बड़े कष्ट की बात है। फिरोज़ गांधी गुजरात के रहने वाले थे और बाद में इलाहाबाद में आकर बसे थे। इलाहाबाद में 1930 में वह कांग्रेस की वानर सेना में सम्मिलित हो गए थे और उसके सक्रिय सदस्य थे। उन्हीं दिनों उनका परिचय इन्दिराजी से हुआ और वे पति पत्नी बन गए। वह 1950 में उत्तर प्रदेश विधान सभा और 1952 तथा 1957 के चुनावों में रायबरेली से सांसद चुने गए। 

उन्होंने 1955 में डालमियां-जैन कम्पनी द्वारा बीमा धारकों के पैसे के दुरुपयोग का मामला उठाकर नेहरू सरकार और संसद को स्तब्ध कर दिया था। भ्रष्टाचारों के खिलाफ बड़ी मेहनत से आंकड़े इकट्ठे किए और सदन में साबित किया कि सरकार द्वारा जाने अनजाने भ्रष्टाचार को समर्थन मिल रहा था। उनके अथक प्रयासों का परिणाम था कि भारतीय जीवन बीमा निगम कम्पनी का जन्म हुआ। इसके बाद भी भ्रष्टाचार के खिलाफ उनकी लड़ाई बन्द नहीं हुई। 

जब दूसरी बार वे वर्ष 1957 में सांसद चुनकर आए तो एचडी मूंधड़ा के खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला जोर-शोर से उठाया और नेहरू सरकार के वित मंत्री टीटी कृष्णमाचारी को त्यागपत्र देना पड़ा। पूरे मामले की जांच के लिए बम्बई उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश अली करीम छागला की अध्यक्षता में एक जांच कमीशन बिठाया गया। फिरोज़ गांधी ने साबित कर दिया था कि एक सांसद यदि मेहनत करे और जनता के मुद्दे उठाए तो क्या नहीं कर सकता है। देश के नौजवानों को पता होना चाहिए कि स्वतंत्र भारत में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई का आरम्भ फिरोज़ गांधी ने किया था।   

उनकी जन्म शताब्दी का वर्ष 2012 में आया और चला गया लेकिन संसद के अन्दर और संसद के बाहर, प्रेस के लिए लड़ने वाले इस महापुरुष की याद ना तो उनके परिवार और ना ही हमारे मीडिया को आई। शायद ही कोई जानता हो कि उन्हें नज़र अन्दाज़ क्यों किया गया। सच तो यह है कि अगर फिरोज़ साहब के परिवार ने उनका रास्ता अपनाया होता तो देश से भ्रष्टाचार मिट गया होता। अफसोस की बात है कि जिसके ससुर प्रथम प्रधानमंत्री थे, जिसकी पत्नी प्रधानमंत्री बनी और जिसका बेटा प्रधानमंत्री बना वह स्वयं आज तक देश में गुमनाम है। 

रायबरेली के बछरावां का डिग्री कालेज फिरोज़ गांधी की देन है। शिक्षा के क्षेत्र में उनके इस योगदान के लिए भी सरकारों ने उन्हें नहीं याद किया। फिरोज़ गांधी 48 साल की अल्पायु में 1960 में इस दुनिया से चले गए। लेकिन फिरोज़ गांधी का योगदान अखबारों को चलाने तक ही नहीं, प्रेस की आजादी के लिए जो संघर्ष किया उसे भुलाया नहीं जाना चाहिए। परिवार और प्रेस ने तो भुलाया ही, अल्पसंख्यकों के नाम पर राजनीति करने वाले लोग भी भूल गए।

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