देश की दूसरी सबसे बड़ी टमाटर मंडी में एक रुपए पहुंची टमाटर की कीमत, सड़कों पर फेंकने का समय आ गया है

टमाटर की कीमत इस एक बार फिर कौड़ियों के भाव तक पहुंच गयी है। किसानों को मजबूरन टमाटर सड़कों पर फेंकना पड़ रहा है।

Mithilesh DharMithilesh Dhar   10 Oct 2018 8:06 AM GMT

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देश की दूसरी सबसे बड़ी टमाटर मंडी में एक रुपए पहुंची टमाटर की कीमत, सड़कों पर फेंकने का समय आ गया है

लखनऊ। देश की प्रमुख टमाटर मंडियों में टमाटर की कीमत एक रुपए प्रति किलो तक पहुंच चुकी है। मतलब टमाटर सड़कों पर फेंकने का समय आ गया है और ऐसा पहली बार नहीं होगा। सरकार के तमाम दावे और आश्वासन फिर फेल होते दिख रहे हैं।

देश की सबसे बड़ी टमाटर मंडी नासिक के पिपलगांव में टमाटर का न्यूनतम भाव 200 रुपए प्रति कुंतल तक पहुंच गया है। जबकि 23 और 24 सितंबर को तो भाव 150 रुपए कुंतल हो गया था। राष्ट्रीय बागवानी अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान (एनएचआरडीएफ) के आंकड़ों अनुसार महाराष्ट्र में नासिक जिले की बेंचमार्क पिंपलगांव मंडी में अच्छी गुणवत्ता वाला टमाटर 1.50-2 रुपए प्रति किलोग्राम की दर पर बिका है।

टमाटर की कीमत इस एक बार फिर कौड़ियों के भाव तक पहुंच गयी है। किसानों को मजबूरन टमाटर सड़कों पर फेंकना पड़ रहा है। देश की सबसे बड़ी टमाटर मंडियों में कीमत पिछले एक महीने से लगातर गिर रही है। गिरते-गिरते कीमत अब तो एक से दो रुपए प्रति किलो तक पहुंच गयी है। ऐसे में मंडी तक टमाटर ले जाने, ले आने का खर्च तक नहीं निकल पा रहा। देश के कई हिस्सों से टमाटर सड़कों पर फेंकने की खबरें आने लगी हैं।

24 सिंतबर को पिपलगांव मंडी में टमाटर बेचने पहुंचे नीलेश अहेरोरा बताते हैं "मैंने दो एकड़ में टमाटर लगाया था जिसमें लगभग 28 कुंतल पैदावार हुई। दाम सितंबर के शुरू से ही गिरने लगा था। थोड़ा इंतजार किया लेकिन टमाटर पक चुकी थी। जब मैं घर से निकला था तब कीमत 200 रुपए कुंतल थी। जब मंडी पहुंचा तो दाम 150 रुपए प्रति कुंतल मिला। मजबूरी थी इसलिए पूरी उपज बेचनी पड़ी। नहीं कुछ तो लगभग चार लाख रुपए का नुकसान हुआ (लागत और मुनाफा मिलाकर) हुआ।

"टमाटर की आवक बहुत ज्यादा है। ऐसे में कीमत तेजी से गिर रही है। बांग्लादेश और पाकिस्तान हमारा टमाटर जा नहीं रहा, ऐसे में कीमत कितनी नीचे जा सकती है ये कहना मुश्किल है। उत्पादकों का नुकसान और बढ़ सकता है। सरकार अगर आयात पर कुछ करे तो शायद स्थिति सुधर जाये।" पिपलगांव बाजार समिति के अध्यक्ष दिलीप बनकर कहते हैं।

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सरकार के ही आंकड़ों के अनुसार 2016-17 में 548 करोड़ रुपए का टमाटर भारत ने निर्यात किया था कि जो 2017-18 में गिरकर 107 करोड़ रुपए पर पहुंच गया। पाकिस्तान और बांग्लादेश से भारत के टमाटर एक्सपोर्ट को गहरा झटका लगा है। पाकिस्तान को 2016-17 में 368 करोड़ का टमाटर एक्सपोर्ट किया था जो कि घट कर पिछले साल 34 लाख ही रह गया।

देश की अन्य बड़ी मंडियों में भी हालात कमोबेश कुछ ऐसे ही हैं। देश की दूसरी सबसे बड़ी टमाटर मंडी आंध्र प्रदेश के चीत्तूर जिले की मदनपल्ली में भी यही हाल है। किसान कौड़ियो के भाव टमाटर बेच रहे हैं। वहां तो कीमत और नीचे 100 रुपए प्रति कुंतल तक पहुंच चुकी है। चीत्तूर, मदनपल्ली के ही टमाटर किसान दादम रेड्डी सेखर फोन पर बताते हैं " 30 किलो के एक पैकेट के लिए 60 रुपए मिल रहा है। समझ नहीं आ रहा कि बाकि की फसल जो अभी खेतों में है उसे तोडूं या खेत में ही छोड़ दूं।"

मदनपल्ली में सबसे बड़े टमाटार कारोबारियों में से एक रघू फार्म टोमैटो के डायरेक्टर रघू कहते हैं " कीमत एक रुपए किलो तक पहुंच गयी है। इसका कारण यह है कि बाजार में अभी मांग बहुत कम है जबकि खेतों में पक चुकी टमाटर सीधे यहीं पहुंच रही है। त्योहार को देखते हुए हो सकता है कि कीमतों में कुछ सुधार आये।"

ऐसे में सवाल ये भी उठता है कि जब हर साल ऐसा ही होता है तो सरकार टमाटर की कीमतों को गिरने से रोकने के लिए कुछ करती क्यों नहीं ? टमाटर, प्याज और किसानों के साथ पिछले कुछ वर्षों से ऐसा ही होता आ रहा है।

इस बारे में निवेश नीति विश्लेषक और कृषि मामलों के जानकर देविंदर शर्मा गांव कनेक्शन के लिए लिखे अपने एक आर्टिकल में कहते हैं "लगातार तीन साल से फसल कटाई के समय पर फसलों के दाम बुरी तरह से गिरे हैं। अब आप किसानों की दुर्दशा और उनकी तकलीफ का अंदाजा लगा सकते हैं। साल दर साल किसान मेहनत करते हैं, अपने पूरे परिवार के साथ खेतों में काम करते हैं और मंडी पहुंचने पर पता चलता है कि उनकी उपज के दाम तो मिट्टी में मिल चुके हैं। अपने पूरे परिवार के साथ की गई मेहनत के बदले उसे घाटा नसीब होता है जो अंतत: उसे अपनी जीवनलीला खत्म कर देने पर विवश कर देता है। अब कल्पना कीजिए, लगातार तीन बरसों से घाटा सह रहे किसानों की हालत का। जैसे कि मैंने पहले भी कहा था, खेतों पर मौत का भयानक नाच जारी है।"

देश की तीसरी सबसे बड़ी टमाटर मंडी कर्नाटक के कोलार की भी बात कर लेते हैं। यहां के टमाटर किसान और व्यवसायी वसीम खान ने गांव कनेक्शन को फोन पर बताया "एक सितंबर को टमाटर की कीमत 150 रुपए प्रति कुंतल तक पहुंच गयी थी। हालांकि अभी भी कीमत 200 रुपए प्रति कुंतल तक ही है। हो सकता है कि इधर एक महीने कीमत में कुछ सुधार हो लेकिन स्थिति और बदतर होती जायेगी, कीमतें और गिरेंगी।"

हालांकि देश की राजधानी नई दिल्ली स्थिति आजादपुर मंडी की स्थिति इन मंडियों की अपेक्षा थोड़ी ठीक है। वहां नौ अक्टूबर का रेट 400 रुपए प्रति कुंतल है। टमाटर एसोसिशन के उप प्रधान अशोक कुमार बताते हैं, "आजादपुर मंडी में तो पिछले एक महीने से टमाटर की दर स्थिर है। सामने महीने भर से ज्यादा त्योहारी सीजन है, ऐसे में कुछ समय के लिए कीमतों में सुधार हो सकती है उसके बाद दाम और घटेगा।"

राजस्थान, जयपुर के एग्री एक्सपर्ट और कमोडिटी कारोबारी विजय सरदाना कहते हैं " अगर देश में खाद्य प्रसंस्करण की स्थिति ठीक हो तो हालात में कुछ बदलाव आ सकता है। सरकार ने बजट के समय टमाटर, आलू और प्याज को बचाने के लिए ऑपरेश ग्रीन का नारा भी दिया था लेकिन अभी वो ठंडे बस्ते में हैं। अभी फसल तैयार है इसलिए कीमत कम हो गयी है, बाजार में आवक बढ़ गयी है। कुछ महीने बाद इसी टमाटर की कीमत आसमान पर होगी क्योंकि तक आवक नहीं होगी। ऐसे में अगर जल्दी खराब हो जाने इस फसल को सही से रखने की व्यवस्था देश में हो तो किसानों को फायदा तो मिलेगा ही साथ ही साथ आम लोगों को फायदा होगा।"

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सीफेट (सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्ट हार्वेस्टिंग इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजीज) की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत फलों और सब्जियों का दूसरे सबसे बड़ा उत्पादक देश है, बावजूद इसके देश में कोल्ड स्टोर और प्रसंस्करण संबंधी आधारभूत संसाधनों के अभाव में हर साल दो लाख करोड़ रुपए से अधिक की फल और सब्जियां नष्ट हो जाती हैं।

इसमें सबसे ज्यादा बर्बादी आलू, टमाटर और प्याज की होती है। भारत हर साल 13,300 करोड़ रुपए के ताजा उत्पाद बर्बाद कर देता है क्योंकि देश में पर्यात कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं और रेफ्रिजरेट वाली परिवहन सुविधाओं का अभाव है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि देश भर में हर साल कोल्ड स्टोरेज के अभाव में 10 लाख टन प्याज बाजार में नहीं पहुंच पाती है। सिर्फ इतना ही नहीं, 22 लाख टन टमाटर भी अलग-अलग कारणों से बाजार में पहुंचने से पहले ही बर्बाद हो जाता है।


      

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