निवेश बढ़ाने को पट्टा कानूनों का उदारीकरण जरूरी

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निवेश बढ़ाने को पट्टा कानूनों का उदारीकरण जरूरीgaonconnection

भारतीय कृषि आज एक बहुत महत्वपूर्ण चौराहे पर है। दसवीं और ग्यारहवीं योजना अवधि में क्रमश: 3 प्रतिशत और 4 प्रतिशत की दर से वृद्धि के बाद बारहवीं योजना के पहले तीन वर्षों में कृषि उत्पादन की वृद्धि दर गिर कर 1.7 प्रतिशत पर आ गई है।

भारत की जीडीपी में कृषि की हिस्सेदारी मात्र 14 प्रतिशत होने के बावजूद यह क्षेत्र 49 प्रतिशत राष्ट्रीय कार्यबल को रोजगार देने के साथ ही 64 प्रतिशत ग्रामीण लोगों को भी रोजगार देता है। ये आंकड़े प्रभावी रूप से बताते हैं देश की लगभग आधी आबादी कृषि क्षेत्र पर निर्भर है और इस क्षेत्र पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है।  

जनसंख्या में तीव्र वृद्धि से आजादी के बाद देश में प्रति व्यक्ति भू-स्वामित्व में लगभग चार गुना की गिरावट आई है। वर्तमान में कुल भू-स्वामित्व में 85 प्रतिशत हिस्सा दो हेक्टेअर से कम की छोटी और सीमांत जोत श्रेणियों में है। टुकड़ों में बंटा भू-स्वामित्व न केवल प्रौद्योगिकी के उपयोग, संकर किस्मों और खेती की तकनीक का उपयोग को बल्कि पूंजी निवेश, सिंचाई और भूमि जोत के मशीनीकरण को भी बाधित करता है जिसका परिणाम वैश्विक मानकों की तुलना में कम पैदावार के रूप में सामने आता है।

एफएओ की ताजा रिपोर्ट के अनुसार 4.37 टन प्रति हेक्टेअर के वैश्विक औसत के मुकाबले भारत में चावल की औसत पैदावार 2.3 टन प्रति हेक्टेअर ही है। ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और चीन में यह पैदावार क्रमश: 10.1 टन, 7.5 टन और 6.5 टन है। टुकड़ों में बंटी जोत का अर्थ यह भी है कि बहुत थोड़े से उत्पादन के लिए बहुत ज्यादा लोग लगे हुए हैं। सिंचाई सुविधाओं की कमी के कारण हमारे अधिकांश खेतों में एकल फसल ही होती है जिससे स्पष्ट है कि इसमें काफी प्रछन्न या छिपी हुई बेरोजगारी है।

आज कृषि क्षेत्र में कई मोर्चों पर कार्य करने की जरूरत है। शोध और सिंचाई में निवेश में भारी वृद्धि के जरिए फसल विविधीकरण, बहु-फसलीकरण और उच्च नकदी फसलों की शुरुआत में मदद करने की जरूरत है। किसानों की आमदनी में सुधार के लिए प्रौद्योगिकी उन्नयन, अधिक उपज देने वाली किस्मों की शुरुआत और फसल कटाई के बाद भंडारण और प्रसंस्करण में निवेश भी महत्वपूर्ण होगा। हमें खेती में जुटे लोगों को अन्य गैर-कृषि व्यवसायों में तेजी से भेजने के मार्ग तलाशने की भी जरूरत है।

सरकार ने 2016-17 के आम बजट में कृषि क्षेत्र में पहले ही वास्तव में कई बड़े निवेशों की घोषणा की है। मेरे अनुसार एक चीज इस क्षेत्र को बेहतर बना सकती है और वह है खेतों को लंबी अवधि के पट्टे (लीज) पर देना। किसानों और निजी क्षेत्र को लंबी अवधि के लिए खेतों को पट्टे पर लेने के लिए प्रोत्साहित करने से वांछित बदलाव आ सकते हैं। अनुसंधान, बेहतर कृषि प्रथाओं, आधुनिक सिंचाई विधियों, अधिक उपज देने वाली किस्मों और मिट्टी की उत्पादकता बढ़ाने के लिए फसल के उचित चक्रीकरण के द्वारा पैदावार में सुधार करने के लिए निजी क्षेत्र बेहतर रूप से सक्षम है। बढ़ी हुई उत्पादकता और लागत कुशलता किसानों की आय बढ़ाने में अंतत: असरदार होगी।

खेतों को पट्टे पर देने का मामला लंबे समय से विवादास्पद रहा है। ज्यादातर राज्य सरकारें खेतों को संगठित उपयोग के योग्य बनाने के लिए भूमि पट्टे पर देने के कानून को उदार बनाने में झिझकती रही हैं। कई राज्यों में 1960-70 के दशक में लागू प्रतिबंधित किरायेदारी कानून भी निजी क्षेत्र को खेत पट्टे पर देने से रोकते रहे हैं। एक ओर कुछ राज्यों ने पट्टे पर खेत देने को बिल्कुल असंभव बना दिया वहीं कुछ राज्यों ने मात्र सीमित वर्ग के लोगों को भूमि पट्टे पर देने की इजाजत दी या खेत पट्टे पर देने को हतोत्साहित करने के लिए कड़े प्रावधान बनाए।

उदार पट्टा कानूनों की कमी का परिणाम गुप्त पट्टे या अनौपचारिक पट्टे के रूप में आया। ऐसे पट्टा समझौतों ने पट्टे पर अनिश्चितता के अंतर्निहित जोखिम के कारण भूमि विकास और सिंचाई में निवेश को बाधित किया। इसके अलावा अनौपचारिक पट्टेदारों को संस्थागत ऋण और बीमा की सुविधा के अभाव की समस्या झेलनी पड़ती है। सबसे खराब यह है कि कानूनी प्रतिबंधों के मद्देनजर कई भू-स्वामी पट्टे पर खेत देने पर अपना मालिकाना छिन जाने के भय से अपने खेत खाली रखते हैं। 

पिछले कुछ दशकों में, चीन और वियतनाम जैसे समाजवादी देशों तक ने कृषि भूमि को पट्टे पर देने के कानूनों को उदार बनाया है, जिसके परिणामस्वरूप विकास और समानता दोनों पर महत्वपूर्ण असर पड़ा है। भारत को भी इस मामले में झिझकने का कोई कारण नहीं रह गया है। इस समय की सबसे बड़ी जरूरत खेत को पट्टे पर देने के लिए उदार कानून की है ताकि भू-स्वामी के पूर्ण मालिकाना हक की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके और साथ ही पट्टे की अवधि समाप्त होने पर पट्टेदार का कोई काश्तकारी अधिकार न होने के साथ ही पट्टादाता को भूमि की स्वत: बहाली होने के प्रावधान हों। वास्तव में पंजाब और राजस्थान में लंबी अवधि के लिए जमीन पट्टे पर देने के लिए प्रावधान मौजूद हैं। यह सही समय है जब केन्द्र सरकार मॉडल लैंड लीजिंग ऐक्ट बनाए, जिसे राज्य सरकारों द्वारा अपनाया जा सकता है।

एक बेहतर और संगठित निजी कृषि संस्था और किसानों को जमीन पट्टे पर देने से उत्पादकता पर निर्णायक प्रभाव पड़ सकता है। भूस्वामी भी अपनी पट्टे पर दी गई जमीन से न केवल नियमित मासिक भाड़े के रूप में आय प्राप्त कर सकते हैं बल्कि पट्टेदार के यहां रोजगार भी कर सकते हैं जिससे उन्हें एक नियमित आय प्राप्त हो सकती है। आय में इस गुणात्मक वृद्धि के साथ ही निजी क्षेत्र के प्रवेश का समस्त कृषि वातावरण पर संभावित असर बहुमूल्य हो सकता है।

निजी प्रबंधन महज इस क्षेत्र में लगे भूमि, श्रम, पूंजी और प्रौद्योगिकी जैसे उत्पादन के कारकों में ही नाटकीय परिवर्तन नहीं ला सकता, बल्कि यह अपनी जमीन पर खुद खेती करना जारी रखने वाले किसानों पर एक असरदार प्रदर्शन वाला प्रभाव भी छोड़ सकता है। ये किसान अपनी प्रति हेक्टेअर उपज बढ़ाने के लिए सर्वश्रेष्ठ तरीकों से लाभान्वित हो सकते हैं और अपनी आय में सुधार ला सकते हैं और साथ ही ऐसी निजी पहलकदमियों के बढ़ते कार्यक्रमों में साझीदार भी बन सकते हैं। निजी क्षेत्र की बढ़ी हुई भागीदारी का परिणाम कटाई के बाद के प्रबंधन और प्रसंस्करण में टिकाऊ निवेश के रूप में भी सामने आ सकता है, जो ग्रामीण क्षेत्र में अतिरिक्त रोजगार सृजित हो और प्रछन्न बेरोजगारी दूर हो सके।

मानसून पर निर्भरता ने कृषि को भारत में एक जोखिमपूर्ण पेशा बना दिया है। कृषि क्षेत्र खुद को पुनर्जीवित कर सके, इसके लिए परिवर्तन लाने वाले बड़े कदम उठाने की जरूरत है। ऐसा करने के लिए निजी क्षेत्र को आने की अनुमति देना एक स्वागत योग्य पहल होगी। उपाध्यक्ष, भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) और वाइस चेयरमैन, भारती एंटरप्राइजेज

 

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