पानी ही नहीं है तो पान कैसे होगा ?

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पानी ही नहीं है तो पान कैसे होगा ?Gaon Connection

महोबा (बुंदेलखंड)। उत्तर प्रदेश के महोबा में 24 साल के राजेश अब चाय की एक छोटी सी गुमटी से अपना गुजारा कर रहे हैं। आज से करीब 10 साल पहले उनका परिवार महोबा में 180 हेक्टेयर से भी बड़े क्षेत्र में फैली पान की खेती में एक सक्रिय हिस्सेदार था। लेकिन अकेले महोबा के 800 से ज़्यादा किसानों के परिवारों की रोजी रोटी में अहम भूमिका निभाने वाली ये खेती अब कुछ घरों तक सीमित रह गयी है।

राजेश बताते हैं, ''कभी मैं और मेरे चारों भाई पिताजी के साथ मिलकर पान की खेती किया करते थे। मेरे पिताजी की आज से 10 साल पहले 40 से 50 पारियां (पारियां एक तरह की क्यारी है जिसमे बांस के डंडे में पान फैलता है ) बोते थे। जिससे हमें बीस हज़ार का मुनाफा हो जाता था लेकिन अब कोई मुनाफा नहीं है इसलिए हमने खेती बंद कर दी और अब सब इसी तरह के छोटे-मोटे काम कर रहे हैं।''

राजेश की चाय की दुकान से यही कोई एक किलोमीटर दूर एक बड़ा तालाब है जिसमें अब पानी की एक बूंद भी नहीं बची। 65 साल के पूरन लाल निराश नज़रों से इस तालाब को देखते हुए बताते हैं, ''पहले तक जब हम पान की खेती करते थे तो ये तालाब लबालब भरे रहते थे। अब पानी ही नहीं रहा तो पान कहां से होगा ?''

पूरन सिंह बताते हैं कि महोबा में तीन बड़े तालाब थे। किरथ सागर, कल्याण सागर और मदन सागर नाम के ये तीनों तालाब अब एकदम सूख गए हैं। पिछले दशक में बुंदेलखंड में पड़े भीषण सूखे की चपेट में आये इन तालाबों के सूखने की वजह से महोबा में अब कई लोगों का रोजगार छिन गया। जो कभी किसानी करते थे वो अब छोटी-मोटी मजदूरी के लिए दरबदर भटक रहे हैं।

भारतीय आर्थिक सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार सन 2000 में देशभर में पान का कारोबार करीब 800 करोड़ का था। पिछले दशकों में इस कारोबार में 50% से भी ज़्यादा की कमी आई है। पानी का अभाव पान की खेती में आई इस भारी गिरावट की बड़ी वजहों में से है। जो खेती कभी महोबा के लोगों को अच्छा ख़ासा मुनाफा देती थी आज वो घाटे का सौदा बन कर रह गई है। जो लोग खेती कर भी रहे हैं वो इसे किसी बड़े जुए की तरह मानते हैं।

मुकुंद लाल चौरसिया (45 साल) उन लोगों में हैं जो अभी भी महोबा में पान की खेती करते है, वो कहते है, ''एक नए बरेजा (बांस की लकड़ी  से बना हुआ एक बड़ा सा ढांचा जिसे चारों तरफ से बंद किया जाता है और उसके अन्दर पान की बेलें पनपती हैं) बनाने में एक से डेढ़ लाख रुपये का खर्चा आता है जबकि एक बार की तोड़ाई में सिर्फ 40,000 से 50,000 रुपये की ही कमाई होती है। कभी-कभी तो इतना भी नहीं निकल पाता।''

महोबा के उन खेतों की तरफ जाएं जहां ये पान के बरेजे लगे हैं तो वहां कई गड्ढे खुदे हुए नज़र आते हैं कई फीट गहरे इन सूखे गड्ढों  में मोटर के साथ मोटे पाइप लगे हैं मुकुंद बताते हैं, "एक बरेजा दो साल तक चलता है और अब तो सारे तलाब सूख  गए है ऐसे में बरेजा में पानी डालने के लिए 40 से 50 फुट के गड्ढे करने पड़ते है और एक गड्ढे को खोदने की कीमत 45 हज़ार रु होती है"

पानी की इस किल्लत ने स्थानीय पान के किसानों की हिम्मत तोड़ दी है मुकुंद जैसे किसानों की परेशानी ये भी है कि ये खेत जहां उन्होंने अपने बारेजे बनाए हैं वो उनके अपने नहीं हैं. किराए के इन खेतों पर होने वाले सालाना खर्च ने पान की खेती को और मुश्किल पेशा बना दिया है "हम जमीन किराये पर लेके खेती करते है एक एकड़ जमीन का दो हज़ार रु साल में देना होता है और जब इस जमीन का मुआवजा आता है वो किसान को न मिल कर उसे मिलता है जिसकी ये ज़मीन है ये भी हमारे लिए सबसे बड़ी परेशानी है।'' 

लखनऊ के हज़रतगंज में पान की गुमटी चलाने वाले लल्लन यादव बताते हैं, ''महोबा से पान तो आज भी मेरे पास आता है लेकिन अब पहले से कम मिल पाता है।"

उत्तर प्रदेश देशभर में पान के सबसे बड़े उपभोक्ताओं में रहा है। ऐसे में पान की खेती पर मंडराया ये संकट अब यहां के हज़ारों किसानों का ज़ायका फीका कर रहा है।

रिपोर्टर- उमेश पंत/आकाश द्विवेदी

 

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