पानी के लिए संवेदनहीन नहीं संवेदनशील होने का समय

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पानी के लिए संवेदनहीन नहीं संवेदनशील होने का समयgaoconnection

दिनों जलसंकट देश की प्रमुख समस्या है। महाराष्ट्र के विदर्भ और मराठवाड़ा के साथ मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, उड़ीसा, झारखंड, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भी पानी की कमी बढ़ती जा रही है। लातूऱ तो पानी वाली विशेष ट्रेनों के भरोसे है। पीने तक के लिए पानी न मिलने के कारण कई इलाकों में किसान अपने मवेशी और फसल बेचकर दूसरे इलाकों में जा रहे हैं। महाराष्ट्र के 200 गाँवों में पानी की कमी की समस्या के गंभीर रूप धारण कर लेने से राज्य में सूखाग्रस्त गाँवों की संख्या बढ़ कर 3100 हो गई है। यह संख्या और भी बढ़ सकती है।

पानी की कमी को देखते हुए महाराष्ट्र में मुम्बई व कुछ अन्य स्थानों पर होटलवालों ने अपने ग्राहकों के लिए मेज पर पानी का गिलास भर कर रखने के बजाय खाली गिलासों के साथ जग में पानी रखना शुरू कर दिया है ताकि वे आवश्यकता के अनुसार ही पानी लें व फालतू पानी फेंकना न पड़े। जल संकट को देखते हुए ही बंबई हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को आईपीएल के मैचों को शिफ्ट करने का सुझाव दिया था ताकि मैदानों के रख-रखाव में पानी खर्च होने से बचाया जा सके।

लखनऊ यूनिवर्सिटी की वनस्पति विज्ञान की विभागाध्यक्ष सेशु लावनिया कहती हैं, “जल संसाधन में कमी होना और भूजल का स्तर गिरना जलसंकट है।” वहीं कृषि विभाग के अनुसार अगर किसी जमीन की उर्वरता कम है और 31 जुलाई या 15 अगस्त तक वहां बारिश नहीं होती है तो वहां सूखा कहलाता है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार साल 2014 में पूरे भारत में 3135.6 मिमी बारिश हुई वहीं 2013 में 3,577.6। दस साल पहले की बात करें तो साल 2003 में 3630.31 मिमी तक बारिश हुई थी। 

अभी भी नहीं समझे जल दिवस का महत्व

पूरे विश्व के लोगों द्वारा हर वर्ष 22 मार्च को विश्व जल दिवस मनाया जाता है। वर्ष 1993 में संयुक्त राष्ट्र की सामान्य सभा के द्वारा इस दिन को एक वार्षिक कार्यक्रम के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया। लोगों के बीच जल का महत्व, आवश्यकता और संरक्षण के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए हर वर्ष 22 मार्च को विश्व जल दिवस के रुप में मनाने के लिए इस अभियान की घोषणा की गयी थी। इस बार हमने 22वां जल दिवस मनाया फिर भी लगता नहीं कि जलदिवस के महत्व से हम पूरी तरह वाकिफ हैं।

बात करें उत्तर प्रदेश की तो इस वक्त बुंदेलखंड के कुछ इलाकों- चित्रकूट, बांदा, महोबा, हमीरपुर, ललितपुर और झांसी की हालत सबसे ज्यादा खराब है। बांदा के काहला गाँव में गर्मी और पानी की कमी की वजह से अप्रैल से शुरू हुए नए सत्र में बच्चे पढ़ने नहीं जा पा रहे हैं। प्रशासन की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार बांदा के 33,000 हैंडपंप में 35 फीसदी काम ही नहीं कर रहे हैं। कुछ ऐसे ही हालात चित्रकूट और दूसरे इलाकों के भी हैं। बुंदेलखंड में  (जो मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश में फैला है) तो पिछले साल बारिश कम होने की वजह से सर्दियों की फसल बोने के लिए पानी नहीं था।

अखिलेश सरकार ने बुंदेलखंड में पानी के संकट से उबरने के लिए 30 करोड़ रुपए दिए थे। इस राशि से सात इलाकों में कुछ हैंडपंप भी लगाए गए थे लेकिन अभी भी इन क्षेत्रों में सूखे जैसे के हालात हैं। पिछले साल राज्य में जून से लेकर 30 सितंबर तक करीब 53.50 फीसदी बारिश होने की वजह से उत्तर प्रदेश के 50 जिलों को सूखाग्रस्त घोषित किया था। इसमें गोण्डा, फैजाबाद से लेकर कन्नौज, देवरिया, कानपुर नगर और देहात, साथ ही लखनऊ भी शामिल था। वहीं महाराष्ट्र के लिए पिछले दिनों 4 मार्च, 2016 को राज्यसभा में आंकड़ें पेश किए थे जिसके अनुसार, वर्ष 2015 में महाराष्ट्र में कम से कम 3228 किसानों ने आत्महत्या की है, यानी रोज़ाना करीब नौ किसान आत्महत्या करते हैं।

आत्महत्या करने वालों की संख्या, वर्ष 2014 में, तालिबान (अफगानिस्तान स्थित वैश्विक आतंकवादी संगठन) द्वारा मारे गए लोगों की संख्या के बराबर है। राज्य के 91 प्रमुख जलाशयों में 29 फीसदी से कम पानी होने के साथ, भारत इस दशक की सबसे बड़ी पानी की संकट का सामना कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट में हाल में ही केंद्र द्वारा दाखिल हलफनामे के अनुसार 10 राज्यों ने खुद को सूखाग्रस्त घोषित किया है जिनमें 2.50 लाख गाँव आते हैं। भारत में करीब छह लाख गाँव हैं यानी 40 फीसदी गाँव सूखे की मार झेल रहे हैं। कर्नाटक, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, ओडिशा और झारखंड के 90 फीसदी जिले सूखा प्रभावित हैं। इसके अलावा भारत के सबसे बड़े प्रदेश राजस्थान के 57 फीसदी, आंध्र प्रदेश के 76 फीसदी और सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश के 75 फीसदी जिले सूखाग्रस्त हैं। उत्तर प्रदेश में करीब 9 करोड़ 80 लाख लोग सूखे का सामना कर रहे हैं।

तापमान ज्यादा व कम नमी है सूखे की वजह 

इस सूखे की वजह यह है कि गर्मी बढ़ने के साथ ही पानी का उपयोग भी बढ़ रहा है और जलाशयों का पानी सूख भी रहा है। कैच न्यूज वेबसाइट के अनुसार 7 से 13 अप्रैल के बीच जलाशयों से लगभग दो बिलियन क्यूबिक मीटर (बीसीएम) पानी कम हुआ है। इस बीच हमारा भूजल स्तर गिरता जा रहा है और नदियां सूखती जा रही हैं। मध्यप्रदेश में भी सूखा संकट दस्तक दे चुका है।

यहां छतरपुर जिले में लगातार तीसरे साल सूखा पड़ा है। ओडिसा में जनगणना 2011 के अनुसार, 35.4 फीसदी परिवारों को पीने का पानी लेने के लिए घर से 500 मीटर दूर तक जाना होता है जबकि 2001 में यह आंकड़ा 30.8 फीसदी था।  एसोसिएटेड चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (एसोचैम) और मौसम का हाल बताने वाली कंपनी स्काईमेट वेदर सर्विसेज के मुताबिक साल में गर्म दिनों की संख्या बढ़ती जा रही है और दिन और रात का तापमान बढ़ रहा है जिसकी वजह से देश में सूखे के हालात बनते जा रहे हैं। रिपोर्ट में कहा गया था कि वर्ष 1951 से 2013 के बीच गर्म दिनों की संख्या बढ़ी है और दिन और रात के तापमान भी बढ़ गए हैं।

इतना ही नहीं जिन इलाकों में तापमान बढ़ रहा है वहां वर्ष 1960 से ही मानसून में गिरावट आ रही है। वर्ष 1990 से 2000 के दौरान औसतन एक दशक में एक साल का सूखा पड़ता था लेकिन वर्ष 2000 से 2015 के बीच, 15 साल में पांच साल का सूखा पड़ा है यानी औसतन हर तीन वर्ष में एक बार सूखा पड़ा है। भारत सरकार की मनरेगा योजना के अंतर्गत जल संरक्षण के लिए तालाबों, कुओं और नहरों के निर्माण में अब तक पूरे देश में 6,04532 नए तालाब, कुएं और नहर बनाए जा चुके हैं। इनमें भी अधिकांश तालाबों में एक बूंद पानी नहीं है। वहां अब बकरियां चरती हैं। यह भी एक दुविधा है। 

जल के लिए संवेदनशील होना जरूरी

मौसम विभाग के अनुसार इस साल अच्छे मानसून आने के आसार हैं। इस पर लखनऊ यूनिवर्सिटी के भू-विज्ञान के विभागाध्यक्ष विभूति राय ने बताया कि मेट्रोलॉजिकल डिपार्टमेंट तो हर साल बारिश के लिए भविष्यवाणी करता है लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि जिस हिसाब से हम भूजल का दोहन करते हैं उतना भूजल वर्षा के जल से संचित नहीं होता। इसे इस हिसाब से समझिए कि अगर हम 60 सेमी पानी निकाल रहे हैं तो वर्षा के जल से केवल 4-5 सेमी पानी ही संचित होगा।

हमने ये अनुमान लगाया कि लखनऊ की आबादी 32 लाख है जिसमें प्रति व्यक्ति 6 बाल्टी पानी इस्तेमाल होता है। अगर हम एक संकल्प लेकर चलें कि रोज एक बाल्टी पानी बचाना है तो इस तरह 32 लाख लीटर पानी की बचत हो सकती है। आजकल लोग सबमर्सिबल लगाकर भूजल का पानी खींच रहे हैं जो जलसंकट पर असर डाल रहा है। इसके अलावा भारत के संविधान में एक बात कही गई है कि जिसकी जमीन है तो उस जमीन के नीचे का पानी भी उसी का होगा लेकिन यह नहीं बताया गया कि कितना लीटर पानी उसका है। इस नियम में परिवर्तन होना चाहिए।

आज हम जिस स्थिति में पहुंचे हैं उसकी वजह यही है कि पानी के प्रति लोगों में संजीदगी नहीं है। अभी भी लोग नहीं चेते हैं। ये बहुत खराब स्थिति है। हमें ये सोचना चाहिए आज हम जो जल इस्तेमाल कर रहे हैं वह हमें कल नहीं मिलेगा। एक गिलास पानी पीने के बाद हम काफी सारा पानी उसे धोने में बर्बाद कर देते हैं। लोगों को जल संचय करने के लिए जागरूक करना बहुत जरूरी है। घरों के आगे गड्ढा बनाएं उसमें पानी संचित करें।

डि्रप इरिगेशन के जरिए सिंचाई का सुझाव

विभूति राय कहते हैं कि यह एक प्रकार का भ्रम है कि शहरों में ही ज्यादा पानी बर्बाद होता है जबकि गाँवों में खेतों में सिंचाई के दौरान पानी बहुत बर्बाद होता है। कई जगह किसानों को बिजली मुफ्त है जिस वजह से किसान घंटों पानी उड़ेलते रहते हैं जब तक कि उनके खेत आधे भर नहीं जाते हैं। इससे निजात पाने के लिए हम ड्रिप इरिगेशन (ड्रिप द्वारा सिंचाई) तकनीक अपना सकते हैं। इसमें फसलों तक ड्रिप तकनीकी से पानी पहुंचाया जाएगा। वैसे भी पौधों की जड़ों को ही केवल पानी की जरूरत होती है। 

लखनऊ में समाज सेवक रिद्धि किशोर वर्षा जल संचयन के लिए कई वर्षों से काम कर रहे हैं। गोमती बचाओ अभियान से जुड़े रिद्धि शहर के मंदिरों से निकलने वाले पानी को फिल्टर्ड तकनीक द्वारा कुंओं में संचित कर रहे हैं। इसी के साथ वह लोगों को आरओ का पानी बचाने के लिए संदेश दे रहे हैं। रिद्धि बताते हैं, “लोग घरों में फिल्टर्ड पानी के लिए आरओ मशीन से पानी निकालते हैं जिससे एक गिलास पानी निकालने के बाद करीब 3-4 गिलास पानी बर्बाद होता है जिसके लिए हम लोगों को बताएंगे कि उस जगह एक बाल्टी या टब रख दें ताकि उसमें पानी संग्रहित हो सके।”

संकलन - शेफाली श्रीवास्तव

 

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