पदोन्नति में आरक्षण देना अवैधानिक: हाईकोर्ट

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जबलपुर (भाषा)। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय एक अहम फैसला देते हुए पदोन्नति में आरक्षण को अवैधानिक करार दिया है। इस फैसले के बाद मध्य प्रदेश में वर्ष 2002 से अब तक सरकारी नौकरियों में लगभग हुईं 60 हज़ार पदोन्नतियां रद्द हो जाएंगी।

मध्य प्रदेश के मुख्य न्यायाधीश अजय मानिकराव खानविलकर व न्यायाधीश संजय यादव ने शनिवार को राज्य सरकार द्वारा अनुसूचित जाति-जनजाति वर्ग को पदोन्नति में आरक्षण देने के संबंध में वर्ष 2002 में बनाए गए नियम को असंवैधानिक करार देते हुए निरस्त कर दिया।

इससे पहले उत्तर प्रदेश में भी प्रमोशन में आरक्षण समाप्त करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि कर्मचारियों को प्रोन्नति में आरक्षण नहीं दिया जा सकता। यह संविधान के प्रावधानों के खिलाफ है और प्रोन्नत कर्मचारियों को अपने मूल पदों पर लौटना ही होगा।

इससे पहले मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में दायर याचिका में राज्य सरकार द्वारा लोकसेवा पदोन्नति नियम-2002 के प्रावधान के तहत अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति वर्ग को पदोन्नति में 16 से 20 प्रतिशत का आरक्षण दिये जाने को कटघरे में रखा गया। याचिका में कहा गया है कि मध्य प्रदेश के सभी विभागों में उक्त वर्ग के कर्मचारी सर्वाधिक कार्यरत हैं तथा पदोन्नति में आरक्षण दिए जाने से अन्य वर्ग के लोगों की पदोन्नति का हक मारा जा रहा है। मामलों में सरकार द्वारा अनुसूचित जाति-जनजाति वर्ग को दिए गए आरक्षण पर सवाल उठाते हुए कहा गया कि इसमें वर्ष 2006 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए दिशा निर्देशों का पालन नहीं किया गया, जिसके कारण पूरे प्रदेश में अनुसूचित जाति-जनजाति वर्ग की हुईं करीब 60 हजार पदोन्नतियां अवैधानिक हैं, और खारिज करने योग्य हैं।

याचिका में कहा गया था कि पदोन्नति में आरक्षण देना संविधान की धारा 14 व 335 का उल्लंधन है। धारा 14 के तहत सराकर को सभी कर्मचारियों को सामान्य नजरों से देखना चाहिए। धारा 335 के तहत आरक्षण के कारण शासन की प्रशासनिक दक्षता प्रभावित नहीं होनी चाहिए।

अनुसूचित जाति-जनजाति संघ की ओर से सरकार द्वारा दी गई पदोन्नति को वैध ठहराते हुए कहा गया कि सरकार ने यह कदम वर्ष 2002 में बने नियमों के तहत उठाया, जबकि शीर्ष अदालत का आदेश वर्ष 2006 में आया है। संविधान की धारा 14ए तथा 14बी में यह प्रावधान है कि राज्य सरकार पदोन्नति में विशेष वर्ग के लोगों को आरक्षण प्रदान कर सकती है।

मामले में राज्य सरकार के नगरीय प्रशासन विभाग, जल संसाधन विभाग, ऊर्जा विभाग, लोक निर्माण विभाग एवं पशु चिकित्सा विभाग के प्रमुख सचिवों सहित अन्य को पक्षकार बनाया गया था। याचिकाओं पर 29 से 31 मार्च तक तीन दिन चली मैराथन सुनवाई के दौरान बहस पूर्ण होने पर युगल पीठ ने अपना निर्णय सुरक्षित कर लिया था, जिसे शनिवार को सार्वजनिक करते हुए पीठ ने कहा कि वर्ष 2002 के इस नियम के आधार पर अनुसूचित जाति-जनजाति वर्ग के लोगों को प्रोन्नति में दिया गया आरक्षण कानून की नज़रों में शून्य होगा। इतना ही नहीं, जिन भी लोगों को इस नियम के आधार पर प्रोन्नति मिली है, उन सभी को वर्ष 2002 की स्थिति में पदावनत किया जाए।

 

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