फीका पड़ रहा शाहजहांपुर का कालीन उद्योग

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फीका पड़ रहा शाहजहांपुर का कालीन उद्योगगाँव कनेक्शन

शाहजहांपुर। अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कालीन की घटती मांग का असर शाहजहांपुर के कालीन उद्योग पर भी पड़ रहा है। घटती मांग का सबसे ज़्यादा असर हस्त कालीन कारीगरों पर हुआ है, जिसके कारण उन्हें काफी नुकसान झेलना पड़ रहा है।

गाँव कनेक्शन रिर्पोटर ने शाहजहांपुर के कालीन कारोबार के सबसे पुराने मशहूर कालीन कारोबारी शफीउल्ला के बेटे इख्तखार उल्ला से मौजूदा कालीन उद्योग के बारे में पूछा तो दिन प्रतिदिन कम होते जा रहे हैं, कारोबार की सच्चाई सामने आ गई।

''पहले शाहजहांपुर की बनी कालीनों की मांग भारत के अलावा विदेशों में भी काफी थी। सन् 1995 तक यहां का कालीन उद्योग अपनी पहचान बनाए हुए था पर उसके बाद कालीन कारोबार लगातार कम होता चला गया, जिसकी मुख्य वजह पानीपत और उत्तराखण्ड सहित देश के कई हिस्सों में मशीनों से बनी कालीनें हैं।’’ इख्तखार उल्ला बताते हैं।

शाहजहांपुर और पीलीभीत के कालीन उद्योग में कुल मिलाकर 50,000 से ज़्यादा कालीन कारीगर काम करते हैं। कालीन बनाने का काम शाहजहांपुर शहर के अलावा तिलहर, मीनारपुर, पीलीभीत और पहाड़गंज में होता है। शाहजहांपुर में छोटे-बड़े कालीन कुटीर उद्योग लगभग दो हज़ार हैं।

मशीन और हाथों की मदद से बनाई गई कालीनों में अंतर के बारे में इख्तखार उल्ला ने बताया कि हाथ से बनी कालीनों के मुकाबले मशीन से बने कालीन सस्ते पड़ते हैं और उनकी फि नीशिंग भी अच्छी होती है। इस समय फैशन का दौर है लोग क्वालिटी से ज्यादा खूबसूरती पर ध्यान देते हैं। हाथ से बनी हुई कालीन काफी टिकाऊ और मजबूत होती है और कहीं से कट-फ ट जाए तो उनको रिपेयर भी किया जा सकता है।

शाहजहांपुर और भदोही में कालीन कारीगरों की हालत में सुधार के बारे में भारतीय कालीन निर्यात संवर्धन परिषद के वरिष्ठ अधिकारी ओंकार नाथ मिश्रा बताते हैं, ''भदोही में स्थानीय कालीन कारीगरों की हालत में सुधार और उन्हें नई तरह की कालीन बनवाने के लिए हमने अपने पहले क्लस्टर में भदोही और वाराणसी के कई ग्रामीण बुनकर क्षेत्रों में 29 नए कार्पेट वीविंग सेंटर्स खोले हैं,जिनमें ट्रेनिंग दी जा रही है। अगले क्लस्टर में हमने शाहजहांपुर, हरदोई, रायबरेली और पीलीभीत जैसे कालीन औद्योगिक केंद्रों को चुना है।’’

''मुझे नहीं लगता कि इस कारोबार को मशीन के बने कालीनों के सामने फिर से जीवित किया किया जा सकता है क्योंकि अब मजबूती पर नहीं बल्कि खूबसूरती और सस्ते दाम पर लोग ज़्यादा ध्यान देते हैं।'' इख्तखार उल्ला आगे बताते हैं।

रिपोर्टर - रमेश चंद्र शुक्ला

 

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