फिल्में बनाता रहूंगा, वो मेरे लिए पहले इश्क की तरह हैं

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फिल्में बनाता रहूंगा, वो मेरे लिए पहले इश्क की तरह हैंगाँवकनेक्शन

उनकी हर फिल्म में साधारण कहानी के साथ एक सामाजिक मुद्दा होता है, जो दर्शकों को सोचने पर मजबूर करता है। हम बात कर रहे हैं मशहूर निर्देशक सुधीर मिश्रा की, जिनके लिए  फिल्म मेकिंग एक जुनून है। यशभारती 2016 पुरस्कार से सम्मानित फिल्मकार सुधीर मिश्रा पहुंचे गाँव कनेक्शन के ऑफिस, जहां उन्होंने फिल्मों के साथ-साथ अपने शहर लखनऊ और गाँव से जुड़ी यादें साझा कीं।

फिल्म मेकिंग से दूर नहीं होना चाहता

यशभारती से सम्मानित सुधीर मिश्रा कहते हैं इस सम्मान के बहुत मायने है। फिर जब घर पर सम्मान मिलता है तो फीलिंग्स अलग ही होती है। लखनऊ में हमारा परिवार चार-पांच पीढ़ियों से है। वहीं पुरस्कार मिलने में देरी के लिए सुधीर कहते हैं कि मैं ऐसा कभी नहीं सोचता हूं। बुरा लगता है तो सिर्फ एक दिन के लिए ही महसूस करता हूं अगले दिन मैं उसे भूल जाता हूं। शायद यही वजह है कि मैं इस  उम्र में इतना काम कर रहा हूं। नई चीजों के बारे में सोच रहा हूं। हर चीज  को एक्साइटमेंट के साथ करना मुझे पसंद है। डायरेक्शन के लिए आइडिया पर बात करना हो या जो भी, मुझे सबकुछ रोमांचित करता है। भले ही इंडस्ट्री में मुझे आए समय हो गया है और कभी मैं अनुराग कश्यप, इम्तियाज अली जैसे डायरेक्टर्स के लिए इंस्पिरेशन भी रहा होगा लेकिन आज वे लोग मुझे इंस्पायर करते हैं। 

56 साल की उम्र में मैंने कभी अपने आप को सीनियर नहीं महसूस किया। कोई अच्छी फिल्म देखता हूं तो लगता है कि ये फिल्म मैंने क्यों नहीं बनाई। हां, उस दिन मुझे वाकई बुरा लगेगा जब फिल्म मेकिंग मुझसे छिन जाएगी। 

पहले इश्क की तरह है फिल्म डायरेक्शन

अपनी ऑफबीट फिल्ममेकिंग स्टाइल के बारे में सुधीर कहते हैं कि मैं जायज फिल्म मेकर हूं ये तो वक्त तय करेगा। मैं सिर्फ वैसी फिल्में बनाऊंगा जिसे लोग याद रखे। भले ही उसके लिए मुझे अवॉर्ड मिले या नहीं। मुझे इसकी चिंता नहीं। मेरी फिल्म ‘हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी’ में भारत में लगी इमरजेंसी के विरोध में दिखाया था। फिल्म जब आई उस वक्त यूपीए की सरकार थी इसलिए उसे नैशनल अवॉर्ड के लिए कंसीडर तक नहीं किया गया। उस वक्त अफसोस हुआ, लेकिन अगले दिन मैं भूल गया। ये मेरी खास आदत है कि चीजें ज्यादा याद नहीं रखता हूं। बस फिल्में बनाता रहूंगा क्योंकि वो मेरे लिए पहले इश्क की तरह है।

फिल्म पर रोक लगाने के खिलाफ हूं

फिल्म सेंसरशिप के बारे में सुधीर कहते हैं कि मैं अक्सर इसके खिलाफ बोलता आया हूं। वो सर्टिफिकेशन की कमेटी है जिसका पूरा नाम सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन है। तो आप सिर्फ सर्टिफाई करिए फिल्मों को, उनपर रोक नहीं लगाइए। इस वक्त डिजिटल टेक्नोलॉजी इतनी आगे बढ़ गई है कि आगे कुछ साल में कब कौन सी चीज कहां से अपलोड हो जाएगी पता भी नहीं चलेगा। अपनी आने वाली फिल्मों के बारे में सुधीर ने बताया कि मैंने शरतचंद के उपन्यास से प्रेरित फिल्म और देवदास बनाई थी जिसके पात्र भी वही हैं, लेकिन किसी असिस्टेंट ने देखी तो उसने कहा कि आपने फिल्म दासदेव बनाई है। इसमें इंसान के दास से देव बनने की कहानी है। इसके अलावा फैंटम फिल्म्स प्रोडक्शन के साथ मैंने हाथ मिलाया है जिसके लिए एक फिल्म बनाऊंगा। इसकी स्क्रिप्ट इतनी बेहतरीन है कि उस जैसी मैंने फिल्म बनाई नहीं है। नया आइडिया है। बहुत फनी है किसी पर बेस्ड नहीं है। आज के संदर्भ में है जैसे आज के समय में हर इंसान कुछ बनना चाहता है। यू कहूं कि बदनाम भी हुए तो भी नाम हुआ। उस तरह का चक्कर है।

सब्सिडी मिलने से काफी सपोर्ट मिल जाता है

वहीं यूपी सरकार की ओर से मिलने वाली सब्सिडी के बारे में उनका कहना है कि यह बहुत अच्छी चीज है। इससे प्रोड्यूसर्स को काफी सपोर्ट मिलता है। खास बात यह है कि फिल्म जब रिलीज हो जाती है तब सब्सिडी मिलती है। सब चीजें यहीं की इस्तेमाल होता है। मेसेज भी ज्यादा है कि शूटिंग करना आसान है और दूसरी तरह का व्यवसाय करना आसान है। बोनी कपूर, अनुराग कश्यप, विशाल और मैंने भी यहां शूटिंग की है। इश्किया, मसान, डेढ़ इश्किया, तनु वेड्स मनु जैसी बेहतरीन फिल्में यहां शूट हुई हैं।

क्या कलाकारों को पेंशन की जरूरत

यशभारती अवॉर्ड पाने वालों को पेंशन भी मिलेगी। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या वाकई कलाकारों को पेंशन की जरूरत है। इस पर सुधीर कहते हैं कि कई लोगों को है कई लोगों को नहीं है। सिर्फ कलाकारों के लिए ही नहीं है। डॉक्टर, स्पोर्ट्सपर्सन, पर्वतारोही, लेखक, साइंटिस्ट हैं सबके लिए ये अवॉर्ड है। कई ऐसे क्लासिकल म्यूजिशियन हैं जिनके अब शोज नहीं हो रहे हैं उनके लिए ये अवॉर्ड मिलना अच्छी बात है। अपने पसंदीदा डायरेक्टर्स में वह राजू हिरानी, इम्तियाज और राकेश ओमप्रकाश मेहरा को मानते हैं।  उनकी फिल्में हमेशा याद की जाती हैं।

गाँव में रह चुका हूं इसलिए सब समझता हूं

गाँव से खास कनेक्शन रहा है। मैंने ग्रामीण इलाकों में बहुत शूटिंग भी की है। मेरे काफी दोस्त गाँव से आते थे। उनकी खुशियों में शामिल होता था। मेरा नैचुरल सा कनेक्शन है। मैं पड़ोस में दादी के शोकसभा में गया हूं। बच्चे के पैदा होने पर गया हूं। कभी यूं ही गया हूं। मैंने गाँव को लेकर बुंदेलखंड के गाँव से बहुत कनेक्शन है। मैं गाँव में रहा हूं इसलिए मेरी फिल्मों में वहां के सीन में सजीवता झलकती है। मैं गाँवों में वर्कशॉप करना चाहता हूं। दिल करता है वहीं जाकर वर्कशॉप करके वहीं फिल्म बनाए। गाँववाले ही अपने किरदार निभाए।

रिपोर्टर - शेफाली श्रीवास्तव

 

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