अपनों की याद में बनाते हैं 'स्मृति स्तंभ', हजारों साल पुरानी है परंपरा

स्मृति स्तंभ किसी अपने के गुजर जाने के बाद उसकी याद में बनाए जाते हैं। छत्तीसगढ़ में बस्तर और दंतेवाड़ा में रहने वाली मारिया और गोंड जनजातियों की यह 3,000 साल या उससे अधिक पुरानी परंपरा है।

Abhishek VermaAbhishek Verma   16 Sep 2022 9:43 AM GMT

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अपनों की याद में बनाते हैं स्मृति स्तंभ, हजारों साल पुरानी है परंपरा

बस्तर और दंतेवाड़ा जिलों में छोटे और ऊंचे खंभे देखना आम बात है। कुछ लकड़ी से बने होते हैं, कुछ पत्थर से और कुछ कंक्रीट से। वे सड़क के किनारे, जंगलों के अंदर या धान के खेतों के बीच में भी पाए जाते हैं।

ये स्मृति स्तंभ हैं, जिन्हें किसी व्यक्ति की मौत के बाद उनकी याद में बनाया जाता है। छत्तीसगढ़ में बस्तर और दंतेवाड़ा में रहने वाली मारिया और गोंड जनजातियों की यह 3,000 साल या उससे अधिक पुरानी परंपरा है।

किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद नौवें या दसवें दिन औपचारिक रूप से खंभे बनाए जाते हैं।

सबसे पुराने पत्थरों के हैं और उनमें से कई को प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल अवशेष अधिनियम, 1958 के तहत संरक्षित स्मारक घोषित किया गया है।

उनमें से कुछ सीधे पत्थर से बनाए जाते हैं, तो कुछ में पेंटिंग भी बनाई जाती है। किसी में मछलियों और पक्षियों की नक्काशी की जाती है। जो अभी भी पेंटिंग को बरकरार रखते हैं वे संगीतकारों और लोककलाओं, जानवरों और पौधों को दिखाते हैं।

नक्काशी के साथ लकड़ी के खंभे अभी भी खड़े हैं, हालांकि आदिवासी निवासियों के अनुसार, क्योंकि लकड़ी खराब हो जाती है इसलिए वे कंक्रीट या पत्थर का उपयोग करना पसंद करते हैं।

पेंटिंग्स समय की प्रगति को दिखाती हैं और कुछ नए लोगों के पास हवाई जहाज, ट्रेन, आधुनिक इमारतें भी दिखती हैं और अधिक पारंपरिक जनजातीय कला बनाते हैं। इसके अलावा, जबकि कुछ प्राकृतिक रंग से रंगे जाते हैं तो नए खंभे चमकीले रंगों से बनाए जाते हैं।

स्मृति स्तंभ पर कई बार मृतक की पसंद-नापसंद, उनके शौक आदि को दर्शाया जाता है। अक्सर, खंभों पर मृतकों की तस्वीरें भी बनायी जाती हैं।

कुछ विशेष कारीगरों से खंभे तैयार कराते हैं। कारीगर काम पूरा होने तक परिवार के साथ रहते हैं।

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