फूलों से मिला दर्जनों महिलाओं को रोजगार
Swati Shukla 12 Dec 2015 5:30 AM GMT
बाराबंकी। गीता मौर्या (40 वर्ष) खुद तो आत्मनिर्भर बनी हैं साथ ही अपने आस-पास के गाँव की महिलाओं को भी रोजगार दिया, गीता अगरबत्ती और गुलाबजल बनाती हैं और ग्रामीण महिला को प्रयोग किए गए फलों से अगरबत्ती बनाने का प्रशिक्षण देती हैं।
जि़ला मुख्यालय से 18 किमी दूर दक्षिण दिशा में देवा ब्लॉक के मोहम्मदपुर गाँव की गीता के पास डेढ़ हेक्टेयर खेत है, जिसमें गीता गुलाब की खेती करती है। गीता बताती हैं, ''फूलों से अगरबत्ती बनाने का प्रशिक्षण सिमैप से लिया, उसके बाद अपने स्तर से करने का प्रयास किया फिर गाँव की महिलाओं को इसका प्रशिक्षण देने के साथ उनको भी रोजगार दिया।"
गीता ने अब तक 40 से 50 महिलाओं को गुलाब के फूल से अगरबत्ती बनाने का नि:शुल्क प्रशिक्षण दिया है। इस समय गीता 12 महिलाओं को अपनी संस्था में रोजगार दे रही हैं। वे फूलों को बेचती हैं, फिर मंदिर और मस्जिद चढ़े फूलों को एकत्र कर उनसे अगरबत्ती बनाती हैं।
गीता बताती हैं, "पहले सीमैप से अगरबत्ती बनाने का समान नि:शुल्क मिल जाता था पर अब समान खुद से खरीदना पड़ता है। फूलों को सुखा कर पाउडर बनाकर कच्चा माल तैयार किया जाता है। एक दिन में एक महिला दो से तीन किलो अगरबत्ती बना लेती है। अगरबत्ती की लागत लगभग 80 रुपए आती है, बाजार में इसको 110-120 रुपए किलो में बेचती हैं। ये बाजार में आसानी से बिक जाता है। लखनऊ, बाराबंकी मेें अगरबत्ती की मांग ज्यादा है।"
देवा ब्लॉक के बिशुनपुर गाँव की रहने वाली लक्ष्मी देवी (35 वर्ष) बताती है, "ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं हूं, घर की आर्थिक हालत ठीक नहीं थी, जिस कारण गाँव में ही कुछ काम सीखना चाहती थी। फिर गीता दीदी के बारे में पता चला की वो घर में महिलाओं को प्रशिक्षण देती हैं, फिर हमने उनसे अगरबत्ती बनाने का काम सिखा। अब घर में ही अगरबत्ती बना लेती हूं, जिससे महीने में लगभग दो हजार रुपए की कमाई होती है।"
गीता के सात बच्चे हैं, छह लड़की और एक लड़का, जिनमें से तीन बेटी शारीरिक रूप से अक्षम है।
गीता बताती हैं, "इतने बड़े परिवार को चलाना मुश्किल था, बीच में पति की तबीयत भी खराब हो गई तब मैंने अपने परिवार के लिए कुछ करने को सोचा।" वो आगे बताती हैं, "मेरी बेटियां बहुत सहयोग करती हैं सुबह फूल तोडऩा फिर मस्जिद और मन्दिर से फूल इकट्ठा करना है।"
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