प्रौढ़ शिक्षा: साक्षरता अभियान या मात्र छलावा

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प्रौढ़ शिक्षा: साक्षरता अभियान या मात्र छलावागाँव कनेक्शन

लखनऊ। सरकार ने साक्षर भारत अभियान के तहत महिलाओं और पुरूषों को शिक्षित करने के लिए प्रौढ़ शिक्षा की शुरूआत की थी लेकिन ये योजना अपने लक्ष्य पर कितना खरा उतर पाई है। ये हर दूसरा गाँव बता रहा है। 

लखनऊ जिला मुख्यालय से लगभग 45 किमी दूर लल्लीखेड़ा गाँव की राजकुमारी देवी (56 वर्ष) अब अंगूठा नहीं लगातीं हस्ताक्षर करना सीख गई हैं। ये बदलाव उनके गांव में एक सप्ताह चले प्रौढ़ शिक्षा अभियान का है। लेकिन इसके बाद अगर उन्हें कुछ पढ़ने के लिए शब्द दिए जाए तो वो नहीं पढ़ सकेंगीं। वो बताती हैं, ''सालभर पहले क्लास लगी थी उनमें हम जैसी कई औरतें काम खत्म करके पढ़ने जाती थीं हफ्ता भर बाद सब बंद हो गया कोई पढ़ाने वाला ही नही आया तो पढ़े कौन।"

प्रौढ़ शिक्षा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से पहली पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत राष्ट्रीय साक्षरता मिशन एनएलएम में 15- 35 वर्ष की आयु समूह में अशिक्षितों को कार्यात्मक साक्षरता प्रदान करने के लिए वर्ष 1988 में शुरू किया गया था, जिसे वर्ष 2009 में सर्व साक्षरता अभियान में शामिल कर लिया गया। इसके साथ ही इस योजना में कई बदलाव किए गए।

गाँव कनेक्शन ने मोहनलालगंज और गोसाईंगंज ब्लॉक के लगभग 15 गाँवों में अभियान के बारे में पूछा तो पता चला कोई ऐसी योजना नहीं चल रही जबकि विभागीय अधिकारियों का कहना है योजना हर जगह लागू है। स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग, उत्तर प्रदेश की निदेशक संजुक्ता मुदगल बताती हैं, ''योजना पिछले सात सालों से चल रही है लेकिन उत्तर प्रदेश में इसका काम बहुत धीमी गति से हो रहा है। कई बार बैठकें भी हुई हैं लेकिन जमीन पर योजना बंद पड़ी है।" इसका कारण बताते हुए वो आगे बताती हैं, ''कारण ये है कि प्रेरकों को इनकी जिम्मेदारी दी गई थी कि वो लोगों को चिन्हित करें लेकिन उनकी संख्या कम है। एक पंचायत में दो प्रेरक रखे जाने थे जबकि कई पंचायतों में अभी एक भी नहीं हैं। न समय पर किताबें पहुंचती हैं।"

मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार के मुताबिक वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की साक्षरता दर 72.99 प्रतिशत है। इसमें पिछले 10 वर्षों की अवधि में समग्र साक्षरता दर में 8.15 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। 2001 में 64.84 प्रतिशत थीं वहीं 2011 में 72.99 प्रतिशत हुई। 

लल्लीखेड़ा गाँव से पांच किमी दूर कलंदरखेड़ा गाँव की प्रेरक, माधुरी (45वर्ष) बताती हैं, ''हमारा काम बच्चों को स्कूल के लिए बुला कर लाना और प्रौढ़ शिक्षा के लिए लोगों का चिन्हीकरण करना था लेकिन जब कक्षाएं चलती ही नहीं है तो हम किसे नाम दें दे, किताबें भी नहीं आतीं। योजना न के बराबर है यहां।"

सरकार द्वारा चलाया जा रहा प्रौढ़ शिक्षा अभियान, जहां पंचायतों में दम तोड़ रहा है, वहीं गैर सरकारी संस्थाएं इस क्षेत्र में अच्छा प्रयास कर रही हैं। अमेठी जिले के अन्नीबैजल ग्राम सभा की विजया देवी (45वर्ष) अब अखबार पढ़ लेती हैं, जोड़ना, घटाना भी सीख गई हैं। ये बदलाव उनके गाँव में चल रहे देहात संस्था द्वारा चलाए जा रहे प्रशिक्षण कार्यक्रम का है। 

संस्था के क्षेत्रीय अधिकारी प्रदीप सिंह बताते हैं, ''हमने सर्वे करके ऐसे गाँव ढूढें जहां महिलाएं बिल्कुल निरक्षर थी और पढ़ना चाहती थीं। उनके लिए दो घंटे की रोज कक्षाएं एक साल तक चलाई गईं। उसके लिए हमने अपने टीचर रखे, चार्ट, चित्र के माध्यम से उन्हें पढ़ाया जाता था। अब 963 महिलाओं की परीक्षा भी हुई है, जिसका रिजल्ट अभी नहीं आया है।"

 

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