प्रदेश में खोले जाएंगे किसान सिंचाई स्कूल

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प्रदेश में खोले जाएंगे किसान सिंचाई स्कूलgaonconnection, प्रदेश में खोले जाएंगे किसान सिंचाई स्कूल

लखनऊ। प्रदेश में किसानों को जागरूक करने के लिए 16 जिलों में किसान सिंचाई स्कूल संचालित किये जायेंगे, जिसमें कृषक स्नातकों को प्रशिक्षित करके कम पानी में अधिक पैदावार के लिए ब्लॉक और पंचायत स्तर पर नियुक्त किये जांएगे।

प्रदेश में बाराबंकी, रायबरेली, अमेठी, ललितपुर, एटा, फिरोजाबाद, कासगंज, मैनपुरी, फर्रूखाबाद, इटावा, औरेया, कानपुर देहात, कानपुर नगर, फतेहपुर और कौशाम्बी जैसे 16 जिलों में 1200 कृषक स्नातकों को प्रशिक्षित कर कम पानी में अधिक पैदावार के लिए किसान सिंचाई स्कूल संचालित किये जायेंगे। इसके लिए सरकार ने रूपये 50 लाख स्वीकृत किये हैं।

कानपुर रोड स्थित होटल पिकेडली में विश्व बैंक की संस्था फूड एण्ड एग्रीकल्चर आर्गनाइजेशन (एफएओ) द्वारा आयोजित त्रिदिवसीय वर्कशाप ‘‘फार्मस वाटर स्कूल करीकूलम डेवलपमेंट वर्कशाप’’ का आयोजन किया गया। इस वर्कशाप के आयोजन में उत्तर प्रदेश वाटर सेक्टर रिस्ट्रक्चरिंग प्रोजेक्ट सहभागी हैं।

वर्कशाप में उत्तर प्रदेश के कृषि उत्पादन आयुक्त प्रवीर कुमार ने कृषि विशेषज्ञों एवं किसानों को आगाह करते हुए कहा, “खेती किसानी में जिस तरह से सिंचाई के लिए भूगर्भ जल का प्रयोग बढ़ रहा है और राज्य में अति दोहित विकास खण्डों की संख्या के आंकड़ें आ रहे हैं उसे देखते हुए कहीं ऐसा न हो कि आने वाली पीढ़ी पानी की कमी से कृषि पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव

उन्होंने कहा कि प्रदेश के 111 विकास खण्ड खेती के लिए भूगर्भ जल के अतिरिक्त प्रयोग के कारण अतिदोहित श्रेणी में आ गये है, जबकि 68 विकास खण्ड चिंताजनक जल स्तर पर आ चुके हैं। ऐसा समय है जब किसानों को समझाना होगा कि अनमोल पानी आज के लिए और भविष्य के लिए भी अत्यन्त मूल्यवान है, इसका समझ बूझकर किफायती एवं संतुलित प्रयोग किया जाना चाहिए।

कार्यक्रम के दौरानफूड एण्ड एग्रीकल्चर आर्गनाइजेशन (एफएओ) के भारत के प्रतिनिधि श्याम खड्का ने  विषय पर कहा कि यह हाल उस प्रदेश का है जहां पांच नदियों प्रवाहित होती हैं। पंजाब पहले चावल नहीं होता था पर आज चावल का बड़ा उत्पादक होने के कारण पंजाब में पानी की कमी हो रही है। 

उन्होंने आगे कहा कि एक किलो चावल पैदा करने के लिए दो हजार लीटर पानी का प्रयोग होता है। महाराष्ट्र में भूगर्भ जल स्तर पहले से ही नीचे होने के बावजूद गन्ने की खेती बढ़ने से वहां पानी की भयंकर किल्लत हुयी है। 

निदेशक सीमा रहमानखेड़ा मुकेश गौतम ने भी पानी के अति दोहन से बचते हुए जमीन की जल धारण क्षमता बढ़ाने वाले उपायों पर जोर दिया है। उन्होने कहा कि किसानों को ढैंचा की खेती को ज्यादा करना चाहिए जिससे धरती में जल धारण की क्षमता बढ़े।

 

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