राजधानी की सुरक्षा में ‘वीरांगनाएं’

Neetu SinghNeetu Singh   1 Aug 2016 5:30 AM GMT

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राजधानी की सुरक्षा में ‘वीरांगनाएं’gaonconnection

लखनऊ। राजधानी लखनऊ के एक मोहल्ले में अपनी नौ माह की बेटी के साथ एक महिला रहती है। कई महीनों से अपने पति के रात-रात भर गायब रहने से वो परेशान थी। पुलिस थाने न जाकर उसने अपनी समस्या वहां रहने वाली ‘वीरांगना’ सिद्धेश्वरी को बताई। सिद्धेश्वरी ने उसकी समस्या को सुलझा दिया।

सिद्धेश्वरी सिंह (43 वर्ष) मडियांव की रहने वाली हैं। सिद्धेश्वरी की तरह राजधानी लखनऊ में 6500 ‘वीरांगनाएं’ हैं। जो अलग-अलग क्षेत्रों से आकर नशा मुक्त, 1090, बाल आयोग, महिला आयोग, ट्रैफिक जैसे कार्यों में उत्तर-प्रदेश सरकार की मदद करने के लिए तत्पर हैं।

ये वीरांगनाएं बाराबंकी, सीतापुर और लखनऊ के कई गाँवों की महिलाएं और लड़कियां हैं। घरेलू हिंसा से लेकर ट्रैफिक पुलिस तक की समस्याएं ये वीरांगनाएं बखूबी सुलझा रही हैं। स्वयं सेवी संस्था उम्मीद ने इन्हें वीरांगना नाम दिया है। दो साल पहले तक ये लड़कियां अपने घरों तक ही सीमित थी लेकिन आज ये पूरे लखनऊ में लोगों की सुरक्षा के लिए काम कर रही हैं। लखनऊ में छह से आठ जोन हैं, जिसमें 110 वार्ड हैं और 2500 से ज्यादा मोहल्ले हैं। हर मोहल्ले में एक-एक वीरांगना हैं, जो अपने-अपने मोहल्ले की छोटी-छोटी समस्याओं का समाधान कर रही हैं।

गैर सरकारी संस्था ‘उम्मीद’ जो 2003 से लखनऊ में विभिन्न मुद्दों पर काम कर रही हैं। संस्था के संस्थापक बलबीर सिंह बताते हैं, “लड़कियों में बहुत जज्बा होता है वो जिस भी काम को ठान ले, उसे पूरा करती हैं। 

लखनऊ को स्मार्ट शहर बनाने में हम सबको आगे आना होगा। इस दिशा में उम्मीद संस्था ने ट्रैफिक पुलिस के साथ मिलकर यातायात व्यवस्था को प्लेटफ़ॉर्म पर लाने की जिम्मेदारी ली है। 100 वीरांगनाओं को 20-20 करके 15 दिनों में ट्रैफिक रूल्स का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इन ट्रैफिक सम्भालने वाली वीरांगनाओं को “वीरांगना कोप्स” नाम दिया गया है। बाराबंकी जिले के सिद्धौर ब्लॉक से आठ किलोमीटर दूर बाबा का टढवा गाँव है। इस गाँव में रहने वाली दीपिका (21 वर्ष) खुश होकर बताती हैं, “हमेशा हमारे गाँव में ये कहा जाता हैं कि लड़कियां ये नहीं कर सकती वो नहीं कर सकती। मैं इस गलत धारणा को ट्रैफिक पुलिस की मदद करके दूर करना चाहती हूं।  वो आगे कहती हैं, “मुझे वीरांगना काप्स की ट्रेनिंग लेते 15 दिन हो गये हैं। मेरा आत्मविश्वास बढ़ा है। 10 अगस्त से मानदेय के तौर पर आठ हजार रुपए मिलना शुरू हो जाएगा।

इन वीरांगनाओं की कमांडर आराधना सिंह सिकरवार का कहना हैं कि आज के समय में हर एक लड़की अपने ही शहर में खुद को महफूज नहीं मानती है। इस समस्या से निजात पाने के लिए केवल पुलिस प्रशासन पर निर्भर रहना पर्याप्त नहीं है बल्कि हम लड़कियों को खुद की सुरक्षा करने के लिए स्वयं आगे आना होगा। ये वीरांगनाएं हमारे शहर के लिए एक महत्वपूर्ण कदम हैं। आराधना आगे बताती हैं कि इन वीरांगनाओं को प्रशिक्षित करके उन्हें पूर्ण रूप से ट्रैफिक पुलिस के सहयोग के लिए जागरूक करना हैं। ये वीरांगनाएं लखनऊ शहर के यातायात को सुचारू रूप से चलाने और स्मार्ट सिटी को बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी।

 स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

 

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