राजस्व संहिता में संशोधन, महिलाओं को बराबरी का हक
अंकित मिश्रा 12 Feb 2016 5:30 AM GMT
लखनऊ/मैनपुरी। उत्तर प्रदेश में अब अविवाहित लड़कियों को भी पैतृक ज़मीन में बराबरी का हक मिल सकेगा। प्रदेश सरकार ने राजस्व संहिता में संशोधन करते हुए महिलाओं को अधिक अधिकार दिए हैं। अब पत्नी को पट्टे की ज़मीन पर पति के बराबर दर्ज़ा मिलेगा।
उत्तर प्रदेश सरकार ने राजस्व संहिता, 2006 में कई संशोधन किए हैं। नई राजस्व संहिता 11 फरवरी से लागू हो गई है।
नई राजस्व संहिता को जारी करते हुए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा, ''इससे गाँव के लोगों को सहूलियत मिलेगी और उन्हें कोर्ट-कचहरी के चक्कर कम काटने पड़ेंगे। उन्हें सस्ता न्याय मिल सकेगा।"
राजस्व परिषद के आंकलन के अनुसार हर साल लगभग पांच करोड़ लोग कलेक्ट्रेट और तहसील के चक्कर लगाते हैं। मार्च 2015 में न्यायालयों में 17 लाख मुकदमे लंबित थे, जिनकी संख्या अब 6.9 लाख रह गई है।
प्रदेश में दो तिहाई मामले ज़मीन-ज़ायदाद से जुड़े हैं, इन्हें सुलझाने के लिए न्यायिक अफसरों के नए पद सृजित। अभी तक आजादी के समय बनाए गए नियमों से ही मामले निपटाए जाते थे। रूके मामलों की जल्द सुनवाई कर तय समय में निस्तारण के लिए संशोधन किए गए हैं।
''इससे हर वर्ग को राहत मिलेगी। हां, कुछ और नियमों में बदलाव होते तो यह और कारगर साबित होती।" नई व्यवस्था के बारे में लखनऊ के राजस्व अधिवक्ता राजेंद्र सिंह कहते हैं।
अब कोर्ट के चक्कर इसलिए नहीं लगाने पड़ेंगे। क्योंकि पहले अधिकारियों के सामने प्रस्तुत होकर स्वयं को प्रमाणित करना पड़ता था, लेकिन अब शपथ पत्र के माध्यम से प्रमाणित किया जा सकेगा।
चकबंदी व सीलिंग को छोड़ कर 39 अधिनियम समाप्त कर दिए गए हैं। अब भूमि व्यवस्था से जुड़े सिर्फ तीन अधिनियम-राजस्व संहिता, चकबंदी जोत अधिनियम और उप्र अधिकतम जोत सीमा आरोप अधिनियम ही रह जाएंगे।
पट्टे की ज़मीन में महिलाओं का नाम दर्ज़ करने के फैसले से खुश लखनऊ के महिलाबाद तहसील के नत्थूखेड़ा में रहने वाली किरन (20 वर्ष) कहती हैं, ''इससे न सिर्फ हमारा कद बढ़ेगा, हम आत्मनिर्भर भी होंगे।"
अब अनुसूचित जाति के लोगों को डीएम की अनुमति से तीन विशेष परिस्थितियों में अपनी खेती की जमीन गैर अनुसूचित जाति के व्यक्तियों को बेच पाएंगे। ऐसे मामलों में ज़मीन बेचने पर अनुसूचित जाति के व्यक्ति के पास कम से कम 3.125 एकड़ जमीन बची रहने की अनिवार्यता खत्म कर दी गई है।
अब पचास हज़ार तक के बकाए पर गिरफ्तारी न होने के नियम से खुश लखनऊ जिला मुख्यालय से 27 किलोमीटर पश्चिम में मलिहाबाद तहसील के ढेढ़ेमऊ निवासी किसान संतोष द्विवेदी (65 वर्ष) कहते हैं, ''किसानों के लिए यह बड़ा तोहफा है। पहले लगान का या ज़मीन पर कोई भी क़र्ज़ होता था, तो उसे अधिकारी तंग करते थे।"
वहीं मलिहाबाद के बेलगरहा निवासी किसान नेत्रराम (55 वर्ष) कहते हैं, ''अब अधिकारियों को दोनों पक्षों की बात सुनकर फैसला लेना पड़ेगा। पहले एक पक्ष की बात सुनकर ही फैसला सुना देते थे। दूसरा पक्ष कोर्ट का चक्कर लगाता रहता था।"
''यह सरकार की अच्छी पहल है। नई राजस्व संहिता से पीड़ितों को कम समय में जहां न्याय मिलेगा। पहले नियमों के बीच में अधिकारी और पीड़ित उलझ कर रह जाते थे और कोई ठोस फैसला नहीं ले पाते थे, लेकिन अब कई नियमों के समाप्त हो जाने से फैसला लेने में भी आसानी होगी।" नीता यादव, एसडीएम, मलिहाबाद बताती हैं।
यदि कोई गरीब 29 नवंबर, 2012 से पूर्व सरकारी ज़मीन पर 2,000 फीट में अपने परिवार के साथ गुजर-बसर कर रहा है, तो वह ज़मीन अब उसकी स्थाई रूप से हो जाएगी। उस ज़मीन पर वह निर्माण कार्य कराकर आराम से रह सकेगा।
मैनपुरी भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष तिलक सिंह राजपूत बताते हैं, ''एक हजार रुपए जमा करके अगर किसान अपनी जमीन की पैमाइश करा सकता है, तो यह व्यवस्था बेहद अच्छी है। इसका सीधा लाभ किसानों को ही होगा। बाद में किसान भटकते रहते थे लेकिन उन्हें न्याय नहीं मिलता था।"
ये हुए अहम बदलाव
निजी भूमि की पैमाइश कराना भी आसान। एक हज़ार रूपये जमा कर हो सकेगी पैमाइश। जांच करके तत्काल गलतियां सुधारी जाएंगी।
अनुसूचित जाति के गरीबों को अपनी भूमि बेचने का अधिकार।
मिनजुमला के तहत परिजनों को भूमि में बराबरी की हिस्सेदारी।
सरकार से मिले पट्टे की भूमि में पत्नी को बराबरी का दर्जा।
50,000 रुपये तक के क़र्ज़ पर गिरफ्तारी नहीं।
कोई आशक्त व्यक्ति अपनी कृषि भूमि का दूसरे के नाम पट्टा भी कर सकता है।
किसानों को सरकार से अपनी भूमि बदलने का प्रावधान।
रिपोर्टिंग - गणेश जी वर्मा/अंकित मिश्रा
More Stories