रायबरेली के सबसे बड़े दुग्ध उत्पादक हैं भानु प्रताप

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रायबरेली के सबसे बड़े दुग्ध उत्पादक हैं भानु प्रतापगाँव कनेक्शन

रायबरेली जिला आदर्श पशुपालक सम्मान पा चुके भानु प्रताप सिंह 56 ने जब वर्ष 2008 में 8 भैसों के साथ एक छोटा सा डेरी फार्म खोला था, तब उन्होंने यह बिलकुल भी नहीं सोचा था कि वो एक दिन जिले के सबसे बड़े दूध उत्पादक पशुपालकों में शामिल होंगे।

रायबरेली जिला मुख्यालय से 40 किमी उत्तर दिशा में विकास खंड बछरावां में इचौली गाँव के भानु प्रताप को उनके आसपास के 20 गाँवों के अलावा पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों के लोग भी जानते हैं। जनपद रायबरेली में दुग्ध उत्पादन को एक नया आयाम दे रहे भानु बताते हैं, "छोटे स्तर पर डेरी शुरू करने के बाद मेरी ख्वाहिश थी की आगे चल कर इस दिशा में कुछ अच्छा करूं। 2013 में मुझे सरकार की मिनी कामधेनु डेरी योजना के बारे में एक मित्र से पता चला। योजना की मदद से अच्छा सहयोग मिला, जिसके कारण आज हम 25 पशुओं की डेरी से हर दिन 250 लीटर दूध उत्पादन कर रहे हैं।"

प्रदेश में कामधेनु योजना की सफलता के बाद प्रदेश सरकार पशुपालन को बढ़ावा देने के लिए मिनी कामधेनु डेरी योजना चला रही है, इसमें प्रदेश सरकार 50 पशुओं के डेरी फार्म खुलवाने पर पशुपालक को 52 लाख रूपए तक की आर्थिक मदद देती है।

डेढ़ एकड़ के क्षेत्र में कुशल पशुपालन कर रहे भानुप्रताप ने अपने पशुओं की खास देखरेख के लिए शेड पद्धति पर आधारित आधुनिक ढंग की डेरी का निर्माण करवाया है। इस सुविधा में डेरी के सभी पशुओं को छायादार बाड़े में आराम से रखा जा सकता है। इस बाड़े के चारों ओर ढलान में बनी नालियों की मदद से जानवरों का मल भी आसानी से बहार निकल जाता है, जिससे पशु के इर्द गिर्द साफ सफाई भी रहती है।

"डेरी में पशुओं को बेहतर ढंग से रखा जा सके, इसके लिए हमने कानपुर और फैज़ाबाद विश्वविद्यालय में शेड पद्धति से बने बाड़ों के बारे में जाना, जिसकी मदद से आज हम अपनी डेरी में 25 हरियाणवी किस्म की मुर्रा भैसों का सफल पालन कर रहे हैं।" भानु प्रताप आगे बताते हैं।

जहां एक तरफ रायबरेली, अमेठी व प्रतापगढ़ जैसे जिलों के किसान धान, गेहूं व आंवले जैसी पारंपरिक फसलों पर निर्भर रहते हैं, वहीं दूसरी ओर किसान भानु प्रताप ने इन फसलों की खेती के साथ साथ बड़े स्तर पर पशु पालन के दायरे को भी बढ़ाया है।

प्रदेश में दुधारू पशुओं की अच्छी नस्लों की कमी के बारे में बताते हुए भानु प्रताप कहते हैं, "प्रदेश सरकार पशुपालकों के लिए बहुत कुछ कर रही है पर इसके बावजूद प्रदेश में मुर्रा भैसों की ब्रीडिंग के लिए नाम मात्र के गर्भाधान केंद्र हैं। ऐसे में जिन पशुपालकों के पास मुर्रा भैंसे हैं, वो कम जागरूक होने की वजह से उनका साधारण गर्भाधान करवा देते हैं, जिससे उनके पशु के दूध की गुणवक्ता तो कम होती ही है साथ ही उनका विकास भी रुक जाता है।"

मिनी कामधेनु डेरी योजना का लाभ उठा रहे भानु वर्तमान समय में अपने क्षेत्र में आसपास के 20 से ज़्यादा छोटे पशु पालकों को डेरी उद्योग के प्रति प्रोत्साहित कर चुके हैं। पशुपालन के क्षेत्र में अच्छे काम के वजह भानु को इस वर्ष किसान दिवस पर जिला प्रशासन की ओर से जिला आदर्श पशु पालक सम्मान मिला है।

डेरी की मदद से हो रहे वार्षिक मुनाफे के बारे में बताते हुए भानु प्रताप कहते हैं, "डेरी उद्योग एक मेहनत भरा क्षेत्र है। बढ़िया दुग्ध उत्पादन के लिए यह बेहद ज़रूरी है कि पशुओं की अच्छी देखरेख हो। पशुओं की देखभाल और डेरी में काम करने वाले लेबरों के खर्च को हटा हर साल ढाई से तीन लाख का सुद्ध मुनाफा हो जाता है।"

सम्मानित किसान भानु प्रताप सिंह अपने पशुओं को रेडीमेट पशु आहार व दाना न देकर हरा चारा, चोकर, गुड़ व खली जैसे जैविक आहार देते हैं। उनका मानना है कि जैविक आहार की मदद से पशुओं की दुग्ध उत्पादन क्षमता वर्ष प्रति वर्ष अच्छी रहेगी। इसके अलावा डेरी में पाली जा रही मुर्रा भैंसो के गर्भाधान के लिए भानु पंजाब से खरीदे हुए उन्नत नस्लों के भैंसा पाल रखे हैं।

 

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