लखनऊ। उत्तर प्रदेश की सियासत में इन दिनों केसरिया रंग चढ़ा हुआ है। पुराने रंग बदल रहे हैं और केसरिया रंग में तब्दील हो रहे हैं। अभी की बात है, लखनऊ में ‘उत्तर प्रदेश हज समिति’ की दीवारों का रंग केसरिया में बदले जाने पर विपक्षी पार्टियों के नेताओं के तेवर जनता के सामने आने लगे। मगर राजनीति में ऐसा पहली बार नहीं हुआ है, जब रंग बदले हों और विपक्षियों के तेवर चढ़ गए हों। हमारे देश की राजनीति में हमेशा से ही अलग-अलग रंगों में दिखाई दी है और खास बात यह है कि राजनीति में बदला हर रंग कुछ कहता है…
यूपी में चढ़ रहा केसरिया रंग
उत्तर प्रदेश में योगी सरकार आने के बाद केसरिया रंग उत्तर प्रदेश का आधिकारिक रंग बनता जा रहा है। सबसे पहले मुख्यमंत्री आवास का रंग बदलकर भगवा कर दिया गया। यहां तक की, मुख्यमंत्री की कुर्सी, तौलिया, पर्दे और सोफा तक केसरिया रंग में रंग दिया गया। मुख्यमंत्री सचिवालय भी केसरिया रंग में चढ़ गया। इतना ही नहीं, सूचना विभाग से जारी प्रदेश सरकार की डायरी भी केसरिया रंग में रंगी नजर आई। वहीं, केसरिया गमछों पर भी हाल में राजनीति गरमाई दिखी।
ये भी केसरिया
- बीती 11 अक्टूबर को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश में संकल्प बस सेवा नाम से 50 बसों को हरी झंडी दिखाई। गाँवों को जोड़ने के लिए शुरू की गई इन बसों का रंग भी केसरिया रंग में डूबी रहीं।
- शिक्षा विभाग की ओर से प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूलों में पढ़ रहे छात्र-छात्राओं को केसरिया रंग में रंगे बैग बांटे गए।
मायावती राज में सब नीला-नीला
साल 1995 में उत्तर प्रदेश में पहली भारतीय दलित महिला के रूप में मायावती ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। इसके बाद मायावती का पसंदीरा रंग गहरा नीला हर ओर दिखाई देने लगा। मायावती किसी भी शहर में रैली या किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में शामिल होती थीं, तो पूरा पंडाल नीले रंग में रंगा नजर आता था। मायावती राज में साइन बोर्ड, सजावट की लाइटें, फुटपाथ पर लगी ग्रिल समेत सरकारी डायरी, कैलेंडर और प्रकाशन सब कुछ गहरे नीले रंग में तब्दली हो गया था। इतना ही नहीं, मायावती सरकार में न सिर्फ बसें नीली रंग में रंगी गई, बल्कि सड़कों पर डिवाइडर तक गहरे नीले और सफेद रंग में दंग दिए गए थे।
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अखिलेश युग में छाया लाल-हरा
मार्च 2012 में उत्तर प्रदेश की सत्ता में समाजवादी पार्टी से मुलायम सिंह यादव के पुत्र अखिलेश यादव ने मात्र 38 वर्ष की उम्र में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। समाजवादी राज में अखिलेश यादव के सत्ता संभालने के बाद हर जगह लाल और हरा रंग दिखाई देने लगा। अखिलेश यादव ने बसों, एंबुलेंस, नोटिस बोर्ड और साइकिल पथ समेत कई चीजों का रंग बदलकर उनके रंग को लाल और हरे रंग में तब्दील कर दिया गया था। इतना ही नहीं, प्राइमरी स्कूल में छात्र-छात्राओं को बैग बांटे गए, लैपटॉप बांटे गए, जिसमें मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव की तस्वीर लगी हुईं थी। इतना ही नहीं, राशन कार्ड तक में अखिलेश यादव की फोटो लगाई गई।
दूसरे राज्यों पर भी गौर करें
अब देश के राजनीतिक दलों में जो रंगों की राजनीति दिखाई देती है, यह सिर्फ मतदाताओं को लुभाने की कोशिश है। यह एक तरह से नकारात्मक राजनीति को बढ़ावा देती है।
प्रो. राघवेंद्र प्रताप सिंह, प्रमुख, राजनीति विज्ञान विभाग, वाराणसी हिन्दू यूनिवर्सिटी
रंगों की राजनीति सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही नहीं है, पूरे देश में अलग-अलग रंगों में राजनीति के अलग-अलग रंग दिखाई देते हैं। बात पश्चिम बंगाल की करें तो मुख्यमंत्री बनने के बाद ममता बनर्जी पसंदीदा रंग नीला और सफेद हर ओर दिखाई देने लगा। पश्चिम बंगाल में ममता राज में सरकारी इमारतों से लेकर बसों, सड़क, फ्लाईओवर, रोड डिवाइडर और पार्क के रंगों का भी रंग बदलकर नीला और सफेद रंग में रंग दिया गया। सिर्फ इतना ही नहीं, हाल में उत्तर बंगाल विकास विभाग ने सभी जिलों के प्राथमिक विद्यालयों को नीले और सफेद रंग में रंगने का फैसला किया।
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‘पहले विचार की राजनीति’
वाराणसी हिन्दू यूनिवर्सिटी के राजनीति विज्ञान विभाग में पिछले 40 वर्षों से ज्यादा समय से बच्चों को पढ़ा रहे विभाग के प्रमुख प्रो. राघवेंद्र प्रताप सिंह ने ‘गाँव कनेक्शन’ से बातचीत में बताया, “अब देश के राजनीतिक दलों में जो रंगों की राजनीति दिखाई देती है, यह सिर्फ मतदाताओं को लुभाने की कोशिश है। यह एक तरह से नकारात्मक राजनीति को बढ़ावा देती है।“ वह आगे बताते हैं, “पहले की राजनीति विचारों की राजनीति होती थी, नेता के विचार ही उनकी पहचान रही है, इसलिए गांधी जी, लोहिया जी, नेहरु जी, सुभाष चंद्र बोस जी के विचार आज भी समाज के लिए सार्थक हैं।“ रंगों की राजनीति पर उन्होंने कहा, “यह सिर्फ पार्टी की मार्केटिंग का तरीका बन गया है ताकि लोगों के दिलों में छाप छोड़ सकें। मगर इसका असर नकारात्मक ही दिखाई देता है।“
जयललिता का पसंदीदा रंग रहा हरा
तमिलनाडु की छह बार मुख्यमंत्री रहीं जयललिता को गहरा हरा रंग काफी पसंद था। राजनीतिक सफर में गहरे हरे रंग से उनका हमेशा लगाव रहा। विधानसभा चुनाव जीतने के बाद जब जयललिता ने छठी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली तो भी वह गहरे हरे रंग की साड़ी पहने हुए थीं। इतना ही नहीं, मुख्यमंत्री बनने के बाद जब वह राज्यपाल से मिलीं तो उन्हें हरे रंग का गुलदस्ता भेंट किया। वह अपने हाथों में अंगूठी पहनती थी, जिसमें लगा पत्थर भी हरे रंग था। जयललिता का 5 दिसंबर, 2016 को जब निधन हुआ तो अंतिम समय के सफर में भी वह हरे रंग की साड़ी पहने हुए थीं।
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राजनीतिक दलों के अलग-अलग रंग
पार्टी – रंग
- भारतीय जनता पार्टी (भाजपा)- केसरिया
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (कांग्रेस)- आसमानी नीला
- बहुजन समाज पार्टी (बसपा)- गहरा नीला
- भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी (सीपीआई)- लाल
- तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी)- गहरा हरा
- राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी)- नीला
- भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी,मार्क्सवादी (एनसीपी-एम) – लाल
- पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट (पीडीपी), जम्मू-कश्मीर- हरा
- आम आदमी पार्टी, नई दिल्ली- नीला
- जनता दल यूनाइटेड, बिहार (जेडीयू), हरा
- शिवसेना, महाराष्ट्र- केसरिया
- तेलगु देशम पार्टी, आंध्र प्रदेश (टीडीपी)- पीला
(श्रोत: न्यूज रिपोर्ट्स)