संदीप पौराणिक
भोपाल (आईएएनएस)। केंद्र सरकार की नोटबंदी ने जहां एक ओर आम आदमी की जिंदगी को प्रभावित किया है, वहीं इसका असर मध्यप्रदेश के शहडोल लोकसभा व नेपानगर विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव पर पड़ने की आशंका को नकारा नहीं जा सकता। मतदान 19 नवंबर को होना है।
केंद्र सरकार द्वारा 500-1,000 के नोटों को अमान्य किए जाने के बाद से बैंकों और डाकघरों के बाहर लगी कतारों को देखकर आम लोगों की परेशानी को समझा जा सकता है। यही कुछ हाल शहडोल संसदीय क्षेत्र के शहडोल, अनूपपुर, उमरिया और बुरहानपुर के नेपानगर का है, यहां भी लोग नगदी निकासी, नोट बदलने व पुराने नोट जमा करने के लिए कई कई घंटे बैकों के बाहर खड़े नजर आ जाते हैं।
यह दोनों ही क्षेत्र अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है, इन वर्गो की संख्या भी यहां बहुतायत है। इतना ही नहीं, इस वर्ग की अधिकांश आबादी की जिंदगी अमूमन रोज कमा कर चलती है। इसके अलावा खेतिहर मजदूर भी पर्याप्त है। किसानों के पास रकम न होने पर बीज, खाद की खरीदी नहीं हो पा रही है, लिहाजा खेतों का काम भी थमा हुआ है।
वरिष्ठ पत्रकार अरविंद मिश्रा का मानना है, “शहरी इलाके तो नोटबंदी को लेकर सरकार द्वारा दिए जा रहे तर्क कालेधन, आतंकवाद में कालेधन के उपयोग की बात को समझ सकते हैं, मगर ग्रामीण इलाकों तक यह बात ही नहीं पहुंच रही है। ग्रामीणों को तो अपनी परेशानी ही नजर आ रही है, क्योंकि रोज कमाने खाने वाले सुबह से शाम तक नोट बदलवाने, निकासी में लगे रहते हैं।”
मिश्रा आगे कहते हैं, “अगर बैंकों का यही हाल रहा तो 19 नवबंर की तारीख आते देर नहीं लगेगी और इन क्षेत्रों के मतदाता मतदान की बजाय नोट निकासी व बदलने के लिए बैंकों के बाहर खड़े नजर आएंगे। दूसरी ओर जिन लोगों ने अभी बैंक से रकम निकालने में दिन गंवाया है, वे मतदान के दिन मजदूरी को प्राथमिकता देंगे, जिससे मतदान में गिरावट से इनकार नहीं किया जा सकता।”
पिछले लोकसभा चुनाव में शहडोल में 62 प्रतिशत से अधिक मतदान हुआ था, ऐसा ही कुछ नेपानगर में हुआ, जहां 77 प्रतिशत वोट पड़े थे। देानों ही स्थान पर भाजपा के उम्मीदवार जीते थे। उनके निधन के चलते उपचुनाव हो रहे हैं। शहडोल में 18 लाख और नेपानगर में दो लाख 30 हजार मतदाता है।
एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेसी (एडीआर) की कार्यसमिति के सदस्य संजय सिंह कहते हैं, “इस चुनाव में कालेधन और मतदाताओं को लुभाने के लिए नगदी का इस्तेमाल करना संभव नहीं होगा, क्योंकि 500-1000 के नोट बंद है। इसके चलते मतदाताओं को नोट बांटना आसान नहीं रहेगा। यह संभव है कि नोट बांटकर मतदाता को लुभाने वालों के मंसूबे पूरे न हों।”
एक तरफ वे लोग हैं जो रोज कमाते हैं, तब खाते हैं। वहीं किसान भी हैं जो खाद और बीच की खरीदी के लिए नोट का जुगाड़ करने में लगे हैं। लिहाजा, यह वर्ग भी वोट करने जाएगा, यह तय नहीं है। इसके चलते इन दोनों ही स्थानों पर मतदान का प्रतिशत कम रहने की संभावना बनी हुई है।