रिपोर्टर – बसंत कुमार
लखनऊ। प्रदेश में विधानसभा चुनाव का रंग हर नेता और पार्टी मुख्यालय पर दिखने लगा है। भले अभी चुनाव के दिन तय नहीं हुए, लेकिन नेता और कार्यकर्ता चुनाव की तैयारी में जुट गए हैं। कुछ दलों ने मुख्यमंत्री के नाम भी तय कर दिए हैं तो कुछ जल्द ही करने वाले हैं। लेकिन वाम दलों में कोई सुगबुगाहट नहीं दिख रही है। वाम नेता हों या राजधानी स्थित वाम दलों के कार्यालय कहीं भी चुनाव का रंग नहीं दिख रहा है। 1974-75 वह आखिरी चुनावी साल था तब सीपीआई ने 16 सीटें जीती थीं। मगर उसके बाद वाम दल यूपी इलेक्शन में आमतौर से आउट ही रहे।
चुनाव आयोग द्वारा मान्यता प्राप्त भारत के छह राष्ट्रीय पार्टियों में से दो भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई ) और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) दोनों का उत्तर प्रदेश में कोई वजूद नहीं बचा है। वाम पार्टियां यूपी में इस कदर कमजोर है कि सभी सीटों पर चुनाव तक नहीं लड़ पाती है।
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक प्रफुल्ल बिदवई अपने एक लेख में लिखते हैं कि भारत में वाम दलों का नेतृत्व सीपीएम के हाथों में है। सीपीएम दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी कम्युनिस्ट पार्टी है। यह चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के बाद दूसरे नंबर की वामपंथी पार्टी है। साल 2004 से 2009 के बीच लोकसभा में इसकी ताकत 60 फ़ीसदी कम हुई है।
उतर प्रदेश में वाम दलों का कभी स्वर्णिम युग नहीं रहा
पश्चिम बंगाल में रिकॉर्ड 35 साल सत्ता में रहने वाले वामदलों का उत्तर प्रदेश में कभी स्वर्णिम युग नहीं रहा है। वाम दलों से आखिरी बार 2007 में सिर्फ एक व्यक्ति विधानसभा पहुंचा था। 2012 में प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव में सीपीआई ने 51 सीटों पर चुनाव लड़ा, जिसमें से एक भी सीट पर जीत नहीं मिली। जिन सीटों पर सीपीआई ने चुनाव लड़ा वहां उन्हें मात्र 1.06 प्रतिशत वोट मिला था। वहीं दुसरे महत्वपूर्ण वाम दल सीपीएम ने 403 विधानसभा सीटों में 17 सीटों पर चुनाव लड़ा था। इसें भी कहीं से भी जीत नहीं मिली। प्रत्येक सिट पर सीपीएम उम्मीदवारों का वोट प्रतिशत 2.13 रहा था।
भाकपा (माले) के प्रदेश सचिव अरुण कुमार बताते हैं कि वाम दलों का संघर्ष चुनाव को लेकर नहीं होता है। हम चुनाव को लेकर ज़मीन पर काम नहीं करते हैं। हमारा मकसद होता है, जनता को जागरूक करना और उनको उनका अधिकार दिलाना और वाम दल यह काम प्रदेश में कर रहें हैं। हम कमजोरों, किसानों और बेरोजगारों की लड़ाई मजबूती से प्रदेश में लड़ रहे हैं।
सीपीआई प्रदेश सचिव डॉक्टर गिरीश बताते हैं कि 1974-75 में अकेले सीपीआई के प्रदेश में 16 विधायक थे, लेकिन धीरे-धीरे प्रदेश की राजनीति, मुद्दा आधारित ना होकर साम्प्रदायिकता और जातिवादी हो गयी जिसके कारण वाम दल हाशिये पर आ गए। इस विधानसभा चुनाव में वाम मोर्चा प्रदेश के 150 चुनाव लड़ेगी और हम कोशिश करेंगे कि एक दर्जन से ज्यादा सीटों पर जीत दर्ज़ करें।
युवा हो रहे वाम दलों से दूर
समयांतर पत्रिका में छपे कृष्ण कुमार के लेख के अनुसार वाम दलों से यूथ जुड़ नहीं रहा हैं। सीपीएम के मुखपत्र पीपुल्स डेमोक्रेसी में के अनुसार युवा, छात्र और महिला मोर्चों में सदस्यों की कुल संख्या में काफी गिरावट आई है। महिला मोर्चे पर जो सदस्यता की स्थिति है वह इस प्रकार है- वर्ष 2008 में कुल सदस्य संख्या 1,19,21,719, थी जो 2011 में घटकर 1,07,01,810 रह गई थी। इसी तरह यूथ फ्रंट का में वर्ष 2008 में 1,75,40,039 थी वर्ष 2011 में यह 1,34,72,478 रह गई थी। पार्टी की सदस्यता की वृद्धि की दर में भी यही प्रवृत्ति नजर आती है। जहां 1994 में 8.8 प्रतिशत, 1998 में 13.7 प्रतिशत, 2001 में 10.9 प्रतिशत, 2004 में 9 प्रतिशत, 2007 में 13.18 प्रतिशत थी 2011 में वह गिर कर 6.3 प्रतिशत पर पहुंच गई थी।
कन्हैया कुमार प्रचार में नहीं आयेंगे
आतंकी अफजल गुरु के फांसी वाले दिन जवाहरलाल नेहरु यूनिवर्सिटी (JNU) में हुए विवाद के बाद देशद्रोह के मामले में जेल गए JNU छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार वाम दलों के प्रचार के लिए प्रदेश में नहीं आएंगे। यह जानकारी कन्हैया कुमार के छात्र संगठन AISF की मुख्य पार्टी CPI के प्रदेश सचिव डॉक्टर गिरीश ने दिया। डॉक्टर गिरीश ने कहा कि कन्हैया छात्रो और महिलाओं के मुद्दों पर बात कर रहे है अभी उनको हम मुख्य राजनीति में प्रचार के लिए नहीं बुलाएँगे। वहीं भाकपा (माले ) के प्रदेश सचिव अरुण कुमार ने बताया कि अगर ज़रूरत पड़ी तो चुनाव प्रचार के लिए जेएनयू से छात्र नेताओं को बुलाएँगे।
7 नवम्बर को शक्ति प्रदर्शन करेगा वाममोर्चा
प्रदेश में विधानसभा चुनाव छह वाम दलों के गठजोड़ से बनी वाममोर्चा लड़ेगी। पार्टी पदाधिकारियों के अनुसार वामदल किसी भी पार्टी से गठबंधन कर चुनाव मैदान में नहीं उतर रही है। वाममोर्चा के सभी दल 9 नवम्बर को राजधानी के लक्ष्मण मेला मैदान में कार्यक्रम कर अपनी शक्ति दिखाएंगे।