बजट सत्र में संसद के दोनों सदनों में कृषि कानून और किसानों का मुद्दा छाया हुआ है। राज्य सभा में 3 फ़रवरी को नए कृषि क़ानूनों पर चर्चा हुई। चर्चा के दौरान विपक्ष ने सरकार से कहा कि वो हठधर्मिता छोड़कर इन तीनों क़ानूनों को वापस ले, दूसरी तरफ़ सत्ता पक्ष के सांसदों ने इन तीनों क़ानूनों की पैरवी करते हुए कहा कि इससे किसानों और कृषि के क्षेत्र में बड़ा बदलाव आएगा। इससे पहले सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच इन तीन कृषि क़ानूनों पर चर्चा के लिए बनी सहमति में चर्चा के लिए 15 घंटे का समय तय किया गया।
चर्चा के दौरान राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष, ग़ुलाम नबी आज़ाद ने कहा कि किसान देश के अन्नदाता हैं। हमारा अनाज कई देशों में जाता है। वो उनके भी अन्नदाता है। हिंदुस्तान में किसानों की ताकत सबसे ज्यादा है, हम उनसे लड़ाई लड़ कर किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकते।
उन्होंने ब्रिटिश हुक़ूमत के दौरान हुए कई किसान आंदोलनों का भी अपने भाषण में जिक्र किया। 1900-1906 के पंजाब लैंड कोलेनियम एक्ट 1900, दोआब बारी एक्ट 1906 का उदाहरण देते हुए कहा कि ये कानून किसानों की ज़मीन हड़पने वाले थे लेकिन किसानों ने भगत सिंह के बड़े भाई सरदार अजीत सिंह के नेतृत्व इसका विरोध किया। पंजाब, लाहौर और रावलपिंडी में हिंसा हुई लेकिन भारी विरोध के बाद अंग्रेजों को अपने कानून वापस लेने पड़े। इसी तरह बिहार के चंपारण में नील आंदोलन में किसानों की जीत का भी उन्होंने जिक्र किया। ग़ुलाम नबी आज़ाद ने 1918 के गुजरात में खेड़ा और बारदौली आंदोलन का भी जिक्र किया और बताया कि कैसे अंग्रेजी हुक़ूमत किसानों के आगे झुकी थी। आज़ाद ने कहा कि ये पहली बार नहीं है जब किसानों और सरकार के बीच में गतिरोध है। सैकड़ों सालों से किसान अपने हक़ों के लिए संघर्ष करता रहा है और सरकारों को झुकना पड़ा है।
उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को संबोधित कहते हुए कहा कि सरकार को किसानों से लड़ाई नहीं लड़नी चाहिए। अगर बिल पहले सेलेक्ट कमेटी को भेजे जाते तो ये नौबत नहीं आती। अगर अंग्रेज़ कानून वापस ले लेते थे तो आप को क्या दिक्कत है।” आज़ाद ने लालकिले पर हुई घटना की निंदा करते हुए उसे शर्मनाक बताया और दोषियों को कड़ी सजा देने की मांग की लेकिन निर्दोष किसानों नेताओं को न सताए जाने पर भी ज़ोर दिया।
राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव के दौरान किसानों के मुद्दे पर चर्चा करते हुए बिहार में जेडीयू के सांसद राम चंद्र प्रसाद सिंह ने न सिर्फ कृषि क़ानूनों को किसानों की जिंदगी बदलने वाला बताया बल्कि ग़ुलाम नबी आज़ाद के तर्कों का जवाब भी दिया। राम चंद्र प्रसाद सिंह ने कहा कि, चंपारण सत्याग्रह, खेड़ा-बारदौली आंदोलनों की इस किसान आंदोलन से तुलना नहीं की जा सकती। चंपारण में अंग्रेज़ जबरन नील की खेती करवाते थे, खेड़ा-बारदौली में लगान का मुद्दा था। लेकिन इन क़ानूनों में न तो कहीं जबरन खेती की बात है और ना ही किसी तरह के लगान की बात है।
उन्होंने मंडियों को भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया और बिहार का उदाहरण दिया। जेडीयू सांसद ने कहा, ” मंडियों में ग्रुप-सी की पोस्टिंग के लिए बड़ी बड़ी सिफ़ारिशें चलती थीं। बिहार में एपीएमसी खत्म होने के बाद अनाज का उत्पादन जो 2005 में 81 लाख मीट्रिक टन था वो अब 181 लाख मीट्रिक टन है। गेहूं का उत्पादन 118, धान का 119 फीसदी तो मक्के का उत्पादन 135 फीसदी बढ़ा है।”
आवश्यक वस्तु अधिनियम को समय की जरुरत बताते हुए जेडीयू सांसद ने कहा कि वो कानून जब बना था जब हम दाने-दाने को मोहताज थे। अनाज बाहर से आता था। लेकिन आज अनाज, फल, सब्जियां सब सरप्लस हैं। सरकार ने एक्ट बनाए, आपको अगर लगता है कि उनमें सुधार की गुंजाइश है तो वो आप को वार्ता के लिए बुला रही है लेकिन आप हठधर्मिता कर रहे हैं। आज ज़ररुत इस बात की है कि चर्चा इस बात हो कि किसानों की आमदनी कैसे बढ़े, कैसे लोग खेतों को न छोड़ें।
उत्तर प्रदेश से समाजवादी पार्टी के सांसद प्रो. राम गोपाल यादव ने कहा, “अगर आप कृषि क़ानूनों को डेढ़ साल तक होल्ड करने के लिए राज़ी हो जाते हैं तो तीनों क़ानूनों को इस सत्र में रद्द कीजिए और नए कानून ले आइये। अगर पहले आप इन बिलों को स्टैंडिंग कमेटी के भेज देते तो ये नौबत नहीं आती। अब सड़क खोदकर कंक्रीट की दीवारें बनाई जा रही हैं। कीलें लगवाई जा रही हैं। जैसे दिल्ली नहीं ये पाकिस्तान का बॉर्डर है।”
न्यूनतम समर्थन मूल्य पर चर्चा करते हुए प्रो. यादव ने कहा कि पिछले साल जब ये अध्यादेश नहीं आया था हमारे यहां मक्का का भाव था 2,250 रुपए कुंतल था। इस बार हमारा ही मक्का 1,100 रुपए कुंतल में बिका है।” उन्होंने कॉरपोरेट सेक्टर द्वारा बनाए जा रहे बड़े-बड़े गोदामों का जिक्र किया और उससे खेती पर पड़ने वाले असर की तरफ इशारा किया।
“कुछ काम ऐसे होते हैं जो मन में संदेह को मजबूत करते हैं। आपने चावल, गेहूं आलू, कुछ तिलहन और दलहन को आवश्वय वस्तु अधिनियम से हटा दिया। ये भंडारण की खुली छूट किसके लिए दी गई। जब किसान के पास अनाज नहीं होगा तो ये बड़ी कंपनियों वाले उसे मनमाने रेट पर बेचेंगे। आपका क्या नियंत्रण रह जाएगा।”
उन्होंने संसद में अपने गुरु उदय प्रताप सिंह की लिखी 4 लाइनों का भी जिक्र किया।
खेत में मेहनत तुमने की, तुम्ही को तंगी का डर हो
तुम्हारे घर में दिया जले, रौशनी और कहीं पर हो
उठे ए नीलकंड, तुम्हें तीसरे नेत्र की याद दिलाता हूं, तुम्हें आवाज़ लगाता हूं
उन्होंने कहा, “किसान जिस दिन विद्रोह पर उतर आएगा, बड़े-बड़े लोग नहीं बच पाएंगे। ये लोकतंत्र है, उन्हें मनाइए। वो आपको मना रहे हैं वो अहसान कर रहे हैं। आप नए बिल लाइए, संशोधित बिल, जिसमें किसानों की राय ली जाए।”
इससे पहले असम से बीजेपी सांसद भुवनेश्वर कलिता ने सरकार की योजनाओं और घोषणाओं की तारीफ करते हुए कृषि क़ानूनों को कृषि और किसानों के लिए आमूल-चूल परिवर्तन लाने वाला बताया। उन्होंने कहा कि सरकार और किसानों के बीच कई दौर की वार्ता हो चुकी है। चर्चा के रास्ते अभी खुले हैं। सरकार इससे जुड़े सभी मसलों पर चर्चा को तैयार लेकिन मैं अपने दोस्तों (सांसदों) से अपील करता हूं कि इसे एक और शाहीनबाग न बनाएं।”
नागरिकता कानून सीएए और एनआरसी को लेकर दिल्ली के शाहीनबाग में तीन महीने तक सड़क पर आंदोलन चला था। उस दौरान नोएडा-बदरपुर की सड़क बंद थी। देशभर में काफी हंगामा हुआ था, इसी दौरान दिल्ली के कई हिस्सों में दंगे हो गए थे।
राज्यसभा में बुधवार को चर्चा के दौरान बीजेपी सांसद विजय पाल सिंह ने कहा कि सरकार 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने को प्रतिबद्ध है। उन्होंने इस दौरान यूपीए और एनडीए के कृषि बजट की तुलना भी की। जितना हमने एक वर्ष बजट का दिया है उतना तो उनका पांच साल का भी नहीं था।”
सदन की शुरुआत में इससे पहले कृषि क़ानूनों को लेकर ज़ोरदार हंगामा हुआ। आम आदमी पार्टी के तीनों सांसदों संजय सिंह, सुशील गुप्ता और एनडी गुप्ता को राज्यसभा के सभापति वेकैंया नायडू ने एक दिन के लिेए सदन से निलंबित कर दिया। संजय सिंह ने सदन के बाहर मीडिया से कहा कि किसान दुश्मन देश के नागरिक नहीं, आपने बॉर्डर पर ऐसी कीलें लगा दी हैं जैसे चीन-पाकिस्तान का बॉर्डर तैयार किया हो। सदन में हम तीनों को एक दिन के लिए सस्पेंड किया गया है लेकिन इससे हमें फर्क नहीं पड़ने वाला है, हम किसानों के हक में आवाज़ उठाते रहेंगे।”
राज्यसभा की कार्यवाही 4 फरवरी को भी जारी रहेगी।
उधर, किसानों के मुद्दे पर लोकसभा में भी हंगामा हुआ। सदन में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि अगर सदस्य किसानों के मुद्दे पर चर्चा चाहते हैं तो सरकार सदन के बाहर और अंदर हमेशा चर्चा को तैयार है।