अश्विनी निगम
लखनऊ। गन्ना एक ऐसा मुद्दा है जिसके बलबूते राजनैतिक दल को किसानों के एक बड़े वोट बैंक को अपने पक्ष में लाना चाहते हैं। इस बार भी गन्ना के दाम बढ़ाने, मिलों में किसानों के बकाये पैसे का भुगतान कराने को लेकर घोषणाएं पार्टियों ने की हैं लेकिन गन्ना किसानों की स्थितियां साल दर साल बदतर होती जा रही हैं।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ, बागपत, संभल, मुजफ्फरनगर, मुरादाबाद, शामली और बिजनौर जैसे दर्जन भर जिलों में नकदी फसल गन्ना को लेकर राजनीति शुरू हो गई है। बुलंदशहर जिले के बड़े गन्ना किसान दिनेश शर्मा का कहना है, ‘’गन्ना किसानों के नाम सभी पार्टियां चुनाव के समय बड़ी-बड़ी बातें करती हैं लेकिन सरकार में आने के बाद अपना वादा भूल जाती हैं। मिलों पर हमारा लाखों रुपए बकाया है लेकिन मिलों के दबाव में सरकार हमारी तरफ ध्यान नहीं देती।’’
उत्तर प्रदेश में 40-45 जिलों में कम या ज्यादा गन्ना उगाया जाता है। 35 लाख से ज्यादा किसान सीधे तौर पर गन्ने की खेती से जुड़े हैं। यूपी में 168 गन्ना समितियां हैं। साथ ही 119 गन्ना मिल और 2700 करोड़ से ज्यादा गन्ने से जुड़ा व्यवसाय है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में करीब 60 से 70 और पूरे प्रदेश में लगभग 168 विधानसभा सीटों पर गन्ना किसानों का वोट निर्णायक है। यही कारण है कि उत्तर प्रदेश में किस पार्टी की सरकार बनेगी उसमें गन्ना किसानों अहम रोल होता है। इसलिए चुनाव के समय सभी राजनीतिक पार्टियों में गन्ना किसानों को लुभाने की होड़ मची रहती है।
गन्ना किसानों पर काम करने वाले कृषि विशेषज्ञ धर्मेन्द्र मलिक का कहना है, ‘’गन्ना को मुद्दा बनाकर दर्जनों लोगों ने राजनीति में जाकर विधायक, सांसद और मंत्री बनकर अपनी किस्मत चमकाई लेकिन गन्ना किसानों के जो मुद्दे थे उसको हल करने के लिए किसी ने गंभीरता से काम नहीं किया।’’ उन्होंने बताया कि इसी का नतीजा है कि आज गन्ना किसान गन्ने की खेती से मुंह मोड़ रहा है। गन्ने की खेती को घाटे का सौदा मानते हुए किसान इससे दूर हो रहा है।
घटता जा रहा रकबा
देश के सबसे बड़े गन्ना उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश में गन्ने की खेती का रकबा लगातार घट रहा है। साल 2012-13 में जहां प्रदेश में 24.24 लाख हेक्टेयर में गन्ने की खेती हुई थी वहीं इस साल 2016-17 में घटकर 20.53 लाख हेक्टेयर रह गया है। मेरठ के अब्दुल्लापुर गाँव के किसान ओंकार सिंह का कहना है, ‘’हर चुनाव में गन्ना और गन्ना किसानों के नाम पर बड़ी-बड़ी घोषणाएं होती हैं। इस बार भी यही चल रहा था लेकिन इस पर किसी को ध्यान नहीं है कि प्रदेश में गन्ने की खेती कम होती जा रही है। नेताओं का सिर्फ हमारे वोट से मतलब है।’’
गन्ने पर राजनीति ने कइयों को बनाया मंत्री
गन्ने की राजनीति पर सवार होकर कई नेताओं ने विधानसभा से लेकर मंत्री बनने का सुख भी भोगा है। गन्ना किसानों की बदौलत राष्ट्रीय लोकदल के मुखिया चौधरी अजीत सिंह सांसद और केन्द्रीय मंत्री तक सफर किया। इनके अलावा गन्ना किसानों के दम पर ही स्वामी ओमवेश प्रदेश में गन्ना राज्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे। इसके अलावा सुधीर पंवार, वीएम सिंह और भारतीय किसान यूनियन के राकेश टिकैत ऐसे दर्जनों नेता हैं, जो गन्ना किसानों के दम पर अपनी ताकत दिखाते हैं। लेकिन प्रदेश में गन्ना किसानों की समस्याएं कोई खत्म नहीं करा पाया।