मुजफ्फरपुर: तमाम शोध और जांच रिपोर्ट फेल, बीमारी अभी भी अबूझ पहेली

अब तक के शोध और जांच में बढ़े तापमान, आद्रता, कुपोषण और लीची को इसका जिम्मेदार माना गया है, लेकिन अभी भी इस बीमारी के मूल कारणों का पता नहीं लगाया जा सका है

Chandrakant Mishra

Chandrakant Mishra   25 Jun 2019 12:56 PM GMT

मुजफ्फरपुर (बिहार)। पिछले 25 साल से बिहार के मुजफ्फरपुर और आसपास के जिलों में चमकी बुखार हर साल कहर बरपा रही है। हर साल बड़ी संख्या में बच्चे इस बीमारी वजह से दम तोड़ देते हैं। इस लाइलाज बीमारी की पहचान करने की कोशिशें की जा रही हैं। अब तक के शोध और जांच में बढ़े तापमान, आद्रता और कुपोषण और लीची को इसका जिम्मेदार माना गया है। लेकिन अभी भी इस बीमारी के मूल कारणों का पता नहीं लगाया जा सका है।

वर्ष 1995 से लगातार यह बीमारी मासूमों की जान ले रहा है। लक्षण के आधार पर इसे एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम नाम दे दिया गया, लेकिन मुजफ्फरपुर के प्रसिद्ध बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर अरुण शाह इस बीमारी की वजह कुपोषण, गंदगी और गरीबी को मानते हैं।



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डॉक्टर अरुण शाह ने गाँव कनेक्शन से कहते हैं, "चमकी बुखार का मुख्य कारण गंदगी, गरीबी, उमस भरी गर्मी और कुपोषण है। इस क्षेत्र के लोग ज्यादा पढ़े लिखे नहीं हैं इसलिए वे इस बीमारी को लेकर जागरूक भी नहीं हैं। इतनी उमस भरी गर्मी में बच्चों को लीची के बाग में घूमने के लिए छोड़ देते हैं। इस दौरान बच्चे लीची के बाग में सड़े-गले लीची खा लेते हैं, जिससे उनके शरीर में एक टॉक्सिन उनके शरीर में चला जाता है। रात में बच्चा बिना कुछ खाए पीए सो जाता है। ऐसी स्थिति में बच्चों के शरीर का ग्लूकोज का स्तर अचानक से कम होने लगता है। कुपोषित बच्चों में यह प्रक्रिया और तेजी से होती है। कुपोषण के कारण बच्चे का शरीर शुगर के स्तर को स्थिर नहीं कर पाता है। इस बीमारी का सबसे बड़ा इलाज कुपोषण को दूर करना है।"


बुखार से पीड़ित बच्चों की जांच के लिए केंद्रीय टीम के लिए भी यह बीमारी अबूझ पहेली बनी हुई है। राष्ट्रीय बाल कल्याण कार्यक्रम के सलाहकार डॉ अरुण सिन्हा ने मीडिया को बताया, "यह ब्रेन टिश्यू से संबंधित मामला लग रहा है। आखिर यह बीमारी क्या है इस पर अध्ययन की जरूरत है। अभी तक बीमारी के लक्षणों के आधार पर इलाज किया जा रहा है।" लेकिन सवाल यह है कि आखिर कब तक जांच एजेंसी इस बीमारी का अध्ययन करेगी? कब पुख्ता इलाज बच्चों को मिलेगा? कब थमेगा बच्चों के मौत का सिलसिला?

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मुजफ्फरपुर के रहने वाले राजेश साहनी (55वर्ष) ने बताया, "करीब एक दशक से हमारे यहां यही हाल है। गर्मी के मौसम में बच्चे मरते हैं, कुछ दिन लोग हो-हल्ला मचाते हैं फिर बारिश होते ही सब ठंडे हो जाते हैं। हर साल पुणे की एक जांच टीम नेशनल काउंसिल ऑफ डिजीज कंट्रोल आती है, कुछ दिन रहकर चली जाती है, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकलता है। आखिर इन बच्चों के मौत का सिलसिला कब थमेगा।"

वर्ष अस्पताल में भर्ती बच्चे मौतें
2012 235 89
2013 90 35
2014 334 117
2015 37 15
2016 44 18
2018 43 12
2019 350 125

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मुजफ्फपुर में एक सामाजिक संस्था चलाने वाले विनोद कुमार पांडेय कहते हैं, "पिछले कई साल से इस बीमारी की वजह को पता लगाने के लिए शोध किया जा रहा है। पुणे की संस्था नेशनल इंस्टीट्यूट आफ वायरोलॉजी की एक टीम वर्ष 2012 से यहां आकर जांच कर रही है। हर साल टीम के लोग यहां आते हैं। जांच के लिए बीमार बच्चों के खून और यूरीन के सैंपल ले जाते हैं। लेकिन अभी तक जांच में इस बीमारी के मूल कारण का पता नहीं लगाया जा सका है।"


बिहार के मुजफ्फरपुर में चमकी बुखार से हो रही मौतों के बाद यह भी यह भी कहा जाने लगा कि कहीं बच्चों की मौत अधिक लीची खाने से तो नहीं हो रही? क्यूंकि जहां चमकी बुखार बच्चों की मौतें हो रही हैं वो मुजफ्फरपुर जिला भारत में लीची उत्पादन के लिए काफी चर्चित है।

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देश-विदेश की कई मीडिया संस्थानों ने इस बीमारी के लिए लीची को जिम्मेदार बताया क्योंकि मुजफ्फरपुर लीची की पैदावार बहुत होती है। मुजफ्फरपुर में लीची रिचर्स इंस्टीट्यूट भी है। उसके निदेशक डॉ. विशाल नाथ इन आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहते हैं, "चमकी बुखार से हो रही बच्चों की मौतों का लीची से कोई कनेक्शन नहीं है। यह महज संयोग है कि जहां लीची सबसे ज्यादा पैदा होती है वहां इस बुखार से मौतें हो रही हैं। अगर बच्चों की मौतें लीची खाने से हो रही हैं तो-देहरादून, पठानकोट, रांची, सहारनपुर, पश्चिम बंगाल में ऐसे मामले क्यों सामने नहीं आते? वहां भी तो लीची का उत्पादन होता है। इसे सिर्फ मुजफ्फरपुर से क्यूं जोड़ा जाए ? "


मुजफ्फरपुर के श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल (एसकेएमसीएच) के मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ. सुनील शाही कहते हैं, "इस बीमारी से लीची का दूर-दूर तक लेना-देना नहीं है, एक साल या दो साल के बच्चे आ रहे हैं, कौन माँ अपने एक-दो साल के बच्चे को लीची खिलाएगी? लीची तो पिछले साल भी हुई थी, उससे पहले भी हुई थी, तो इस साल ही मौतें क्यूं ज्यादा हुईं?"

वर्ष 2014 में सीडीसी अटलांटा (रोग नियंत्रण एवं निवारण केंद्र) की एक टीम मुजफ्फपुर आई थी। टीम ने जिले के प्रभावित ब्लाकों में जाकर वहां से जांच के लिए नमूने लिए। गंदगी, मच्छरों, बीमार बच्चों के खून, पेशाब के भी नमूने लिए। जांच में जिस वायरस से बच्चों की मौत होती है उन वायरस के लक्षण इन नमूनों में नहीं पाया गया है। अब तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि आखिर क्या वजह है कि एक खास क्षेत्र में हर साल बच्चों की मौत क्यों हो रही है।

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