मेघा प्रकाश
दस जुलाई, 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मध्य प्रदेश के रीवा में 750 मेगावाट के सोलर प्लांट का उद्धघाटन किया। इसके साथ ही भारत 2022 तक 20,000 मेगावाट से 1,00,000 मेगावाट तक सौर ऊर्जा क्षमता बढ़ाने के अपने लक्ष्य के करीब बढ़ रहा है। ऐतिहासिक पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते के तहत भारत ने 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से 40 प्रतिशत बिजली पैदा करने का लक्ष्य रखा है।
राष्ट्रीय सौर मिशन के तहत 2015 में केंद्र सरकार ने 2021-22 से 1,00,000 मेगावाट तक सौर ऊर्जा क्षमता बढ़ाने की अपनी योजना को बढ़ाया है। सौर पार्कों और अल्ट्रा-मेगा सौर ऊर्जा विकास परियोजनाओं के तहत, नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) ने पांच वर्षों में कम से कम 25 सौर परियोजनाओं की स्थापना का प्रस्ताव दिया था। लेकिन, एक सौर महाशक्ति के रूप में भारत को उभरने के लिए सौर पैनलों के ढेर को पीछे छोड़ना होगा। अप्रैल 2019 में जारी ब्रिज टू इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत 2050 तक 1.8 मिलियन टन सौर फोटोवोल्टिक कचरा पैदा कर सकता हैं।
देहरादून स्थित ग्रीन एसेट्स नामक अपशिष्ट प्रबंधन फर्म के सीईओ रोमिक राय ने कहा, “सौर मॉड्यूल स्वच्छ और हरे ऊर्जा का विकल्प है जब तक कि वे बिजली पैदा नहीं करते हैं। जब वे एक बार अपने जीवन के अंतिम अवस्था में पहुंच जाते हैं, तो ये पैनल मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण की स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकते हैं।”
एक सोलर पैनल की औसतन आयु 10-12 वर्ष होती हैं, इसके बाद पैनल जलवायु परिवर्तन, पर्यावरणीय कारण जैसे सौर विकिरणित ऊर्जा, हवा, तापमान, नमी, वर्षण और सौर वर्णक्रमीय विशेषताओं के साथ ही UV तीव्रता के कारण खराब होने लगता हैं।
एक फोटोवोल्टिक (PV) मॉड्यूल या सोलर पैनल ग्लास, धातु, सिलिकॉन बहुल तत्वों से मिलकर बना होता है। इन पैनलों के कुल वजन का 80 फीसदी हिस्से में कांच और एल्यूमीनियम के तत्व इस्तेमाल होते हैं। हालांकि, शेष 20 प्रतिशित में भारी धातुओं, कंपाउंड पॉलीमर और मिश्रित धातु होते हैं। धातु और कांच के साथ अन्य अपशिष्ट सहित बैटरी और विद्युत उपकरण भी शामिल होते हैं।
मौजूदा दौर में देश में सोलर कचरे के प्रबंधन और उसके रिसाइक्लिंग के लिए कोई नीति नहीं है। 2019 में सोलर कचरे के कारण उपजी स्वास्थ्य और पर्यावरणीय जोखिमों का हल निकालने के लिए नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा सोलर कचरे को ई-कचरे के रुप में वर्गीकृत किया गया था।
वर्तमान समय में सोलर मार्केट असंगठित है। खराब हो चुके सोलर पैनल अब बदल दिए जाते हैं और उनकी मरम्मत नहीं होती है। बदले हुए पैनल को गोदामों में डंप कर दिया जाता है। बाद में कुछ स्थानीय कबाड़ वाले खराब पैनल खरीदते हैं। उन खराब पैनलों में कुछ धातु जैसे एल्मुनियिम निकाला जाता हैं।
उदाहरण के लिए, एक किलोवाट के पैनल में लगभग 15-16 किलोग्राम का वजन होता है, फ्रेम एल्मुनियिम से बना होता है और इसका वजन 1-2 किलोग्राम होता है और बाकि वजन कांच का होता है। रद्दी बाजार में एल्यूमिनियम के दाम में रोजाना उतार-चढ़ाव होता है। उदाहरण के लिए, यह 85 रुपये प्रति हो सकता है। ग्लास उद्योग में 2-3 रुपये प्रति किलोग्राम में बेचा जाता है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि एक किलोग्राम पैनल की कीमत रद्दी बाजार में लगभग 200 रुपये है।
देहरादून स्थित कबाड़ मार्केट के एमआर अंसारी बताते है कि वर्तमान में पुराने पैनल उपलब्ध नहीं है। उन्होंने कहा, “मुझे याद है पांच-छह साल पहले मैंने सौर गीजर पैनलों को खंगाला था। मैंने एक अस्पताल से पुराने पैनल खरीदे और 35,000 रुपये में उसे बड़े रद्दी खरीदार को बेच दिया। मैं नहीं जानता था कि कैसे उसे पुनर्नवीकरण किया जाए।” उन्होंने आगे बताया कि इसके बाद बेकार सोलर पैनलों का कारोबार बहुत कम हुआ है।
एक स्वतंत्र ऑपरेटर और देहरादून में एस एंड एन मर्चेडाइजर कंपनी के मालिक संगीत शर्मा के मुताबिक, सोलर कचरा प्रंबधन अपनी प्रारंभिक अवस्था में है।
रीसाइक्लिंग की ओर छोटे कदम
दुनिया भर के वैज्ञानिक मृत PV पैनलों को फिर से जिंदा करने की कोशिश में है। PV पुनर्चक्रण की प्रकिया अभी भी विश्व स्तर पर एक नवजात अवस्था में है। ज्यादातर देश PV कचरे को सामान्य आद्योगिक या ई-कचरे के रुप में वर्गीकृत करते हैं। बेंगलोर के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (IISc) का एक समूह खराब पैनलों का प्रयोग बिल्डिंग के निर्माण कार्य में पता लगाने वाला पहला संस्थान बना और अपने जीवन को 20 से 30 साल तक आगे बढ़ाने के लिए कुछ उत्पादों को बनाया।
2018 में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (IISc) के सेंटर फॉर सस्टेनेबल टेक्नोलॉजीज के एसोसिएट प्रोफेसर मोंटो मणि को एक आइडिया आया, तब उन्होंने अपनी प्रयोगशाला का विस्तार किया।
मणि ने गांव कनेक्शन को बताया, “2007 में हमने एक छत वाली बिल्डिंग के साथ एक प्रयोगशाला का निर्माण किया था। हमारे पास 2007 में किए गए एक प्रोजेक्ट से कुछ पुराने PV पैनल थे। हमने उन्हें इस्तेमाल करने का फैसला किया।” उन्होंने आगे बताया, “प्रयोगशाला में नई सुविधाएं बेकार पैनलों की मदद से बनाया गया था। हमने टेबल और काटने वाली बोर्ड की तरह कुछ अन्य उत्पाद बनाए थे।”
मणि ने समझाते हुए कहा, “पारंपरिक रुप से ग्लास सबसे सुरक्षित रहा है। पैनलों की डिजाइंनिग ऐसी होती है कि वे 25 साल तक चल जाए और बैक शीट बेहद टिकाऊ होती है। चूंकि हम घर के अंदर के वातावरण में बैक शीट के लिए छोटी और लंबी अवधि के खतरों से जुड़े संभावित विषैलापन से अनभिज्ञ है। इसलिए हम दो पैनलों को बैक टू बैक रखते है, जिसमें ग्लास के बाहर और अंदर का सामना होता हैं।”
PV पैनल ग्लास-ग्लास से मिलकर बना होता हैं। यह पूरी तरह से पैनल जोखिमों को सामान रुप में बाटते हैं और ये बिल्डिंग निर्माण कार्य में अधिक सुरक्षित होते है। हालांकि, इसके पर्यावरण पर प्रभाव अभी लंबे समय के बाद ही हो सकते हैं।
मणि और उनकी टीम ने फेंके हुए सोलर पैनलों का उपयोग करके कुछ अन्य उत्पादों को बनाया है। उदाहरण के तौर पर छोटे पैनलों को काटने वाली बोर्ड के रुप में बदल दिया है। पैनल के ऊपर लगा हुआ ग्लास कठोर होता है और किचन में प्रयोग होने वाले चाकू का सामना कर सकता है। इन पैनलों के ऊपरी सतह पर एक बनावट है,जो पकड़ने में मदद करती है। हालांकि, नुकीली चीजों से बचने के लिए बचाव करना चाहिए।
मणि की टीम तेजी से खुद स्वच्छता इकाइयों का निर्माण करने की योजना बना रही है, जो खुद ही समतल व्यवस्था, प्रकाश व्यवस्था और संभवतः कीटाणुशोधन के साथ-साथ बेकार PV पैनलों को पूरी तरह से बाहर कर सकते हैं। स्ट्रीट लाइट द्वारा संचालित मोबाइल चार्जिंग स्टेशन और वाई-फाई पॉइंट, कम दक्षता वाले ईओएल पैनलों को बस-स्टॉप पर स्थापित किया जाता है। इसी तरह ठेले पर भी कम दक्षता वाले ईओएल पैनल को लगाया जाता है और फेरीवालों के लिए टेंट की व्यवस्था पर विचार किया जा रहा है।
यूरोप में पीवी कचरे के लिए विशिष्ट नियम हैं। वर्तमान में ज्यादातर कचरे को पारंपरिक रूप से लैमिनेटेड ग्लास और धातु पुनर्नवीनीकरण के लिए भेजा जाता है। कुछ देशों में रीसाइक्लिंग की सुविधा है, लेकिन फ्रांस में हाल ही में पहली रीसाइक्लिंग सुविधा चालू कर दी गई है।
अनुवादक- आनंद कुमार
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