– अमरज्योति बरुआ
असम के तिनसुकिया ज़िले में बाघजान तेल क्षेत्र स्थित ऑयल इंडिया लिमिटेड के एक तेल कुएं से पिछले 72 दिनों से बेकाबू ढंग से गैस रिसाव हो रहा है। गैस का रिसाव 27 मई 2020 को शुरू हुआ, जिसमें बीते 9 जून को आग पकड़ लिया। आग बुझाने की कोशिश में दो दमकल कर्मियों की मौत हो गई थी। हालांकि इतने दिनों बाद भी गैस रिसाव पर काबू नहीं पाया जा सका है।
सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम ऑयल इंडिया लिमिटेड (ओआईएल) ने गैस रिसाव को रोकने के लिए वैश्विक विशेषज्ञों से मदद मांगी थी। जून में सिंगापुर की एक फर्म ‘अलर्ट डिज़ास्टर्स कंट्रोल’ की टीम ओएनजीसी और ओआईएल के साथ आग बुझाने घटना स्थल पर पहुंची थी. 22 जून को कुएं के सिर से चरखी (स्पूल) निकालते वक्त एक धमाका हो गया, जिसमें तीन विदेशी विशेषज्ञ घायल हो गएं। 5 अगस्त, 2020 को, ओआईएल ने कहा है कि धमाके को कम करने का प्रयास अपने अंतिम चरण में है।
चूंकि ओआईएल के अधिकारियों को आग बुझाने में काफी मशक्कत करनी पड़ रही है, जो पिछले कुछ वर्षों में इसके संचालन को लेकर पर्यावरणीय नियमों के उल्लंघन की ओर इशारा करता है। 26 जून को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल(एनजीटी) ने बाघजान कुएं में आग लगने और उसके कारण मनुष्य, वन्यजीवों और पर्यावरण को हुए नुकसान की जांच के लिए एक आठ सदस्यीय समिति का गठन किया था। ट्रिब्यूनल ने यह भी निर्देश दिया था कि ओआईएल अंतरिम नुकसान की भरपाई के लिए ज़िला प्रशासन के साथ 25 करोड़ रुपए जमा करे।
गुवाहाटी उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश, न्यायमूर्ति ब्रजेन्द्र प्रसाद कटैकी की अध्यक्षता वाली विशेषज्ञ समिति द्वारा ट्रिब्यूनल के समक्ष 400 पन्नों की एक आलोचनात्मक रिपोर्ट प्रस्तुत की गई थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि ओआईएल ने प्रमुख पर्यावरण मानदंडों का उल्लंघन किया है। सार्वजनिक उपक्रम की इस तेल कंपनी ने आज तक कुएं स्थापित और संचालित करने को लेकर अनिवार्य सहमति नहीं ली है।
समिति ने अपनी रिपोर्ट में असम में ओआईएल की सभी मौजूदा परियोजनाओं की जांच करने का आह्वान भी किया है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे संबंधित क़ानूनों और नियमों को पालन करने के साथ प्राधिकरण प्राप्त करने के लिए अनिवार्य आवश्यकताओं को पूरा करते हैं या नहीं।
रिपोर्ट में कहा गया है, “ओआईएल को जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम की धारा 25 एवं 26 और वायु (रोकथाम और प्रदूषण पर नियंत्रण) अधिनियम की धारा 21 के तहत स्थापित और संचालित दोनों की सहमति तब से नहीं थी, जब 2006 में पहली बार बाघजान के कुएं नंबर 5 की खुदाई की जा रही थी।”
रिपोर्ट में ओआईएल को विशेष रूप से वायु (रोकथाम और प्रदूषण पर नियंत्रण) अधिनियम 1981, जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम 1974, खतरनाक अपशिष्ट (प्रबंधन और हैंडलिंग) अधिनियम 1989 और हाल ही में बनाए गए खतरनाक अपशिष्ट (प्रबंधन, हैंडलिंग और ट्रांसबाउन्डरी मूवमेंट) नियम 2016 के तहत दोषी ठहराया गया है।
समिति ने अपनी रिपोर्ट में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड(पीसीबी), असम की भी आलोचना की है। रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि बाघजान तेल क्षेत्र से संबंधित परियोजना के संबंध में ओआईएल और पीसीबी, असम द्वारा प्रस्तुत किए गए दस्तावेज के अवलोकन से अनिवार्य सहमति और प्राधिकरण को लेकर कथित तौर पर उल्लंघन का एक पैटर्न का पता चलता है। रिपोर्ट में कहा गया है, “यह अनुशंसा की जाती है कि माननीय एनजीटी पीसीबी, असम की गतिविधियों को देखे, जो कि वर्तमान समय में असम में क्रियाशील ओआईएल की सभी परियोजनाओं के लिए सीटीई/एनओसी और सीटीओ देने के संबंध में है।”
इस बीच, ओआईएल ने ट्रिब्यूनल को सौंपे गए रिपोर्ट पर आपत्ति दर्ज करते हुए कहा है कि रिपोर्ट डेस्क अनुसंधान तथा माध्यमिक डेटा की समीक्षा पर आधारित है। ओआईएल ने ट्रिब्यूनल से अनुरोध किया है कि वह रिपोर्ट के आधार पर कोई निष्कर्ष नहीं निकाले। ओआईएल के अनुसार, विशेषज्ञों द्वारा किया गया अवलोकन और निष्कर्ष अपुष्ट आंकड़ों पर आधारित है। इसे विभिन्न संगठनों, स्थानीय लोगों और अन्य प्रकाशित रिपोर्टों के आधार पर तैयार किया गया है, ना कि स्वयं के वैज्ञानिक और प्रयोगशाला में प्राप्त आंकड़ों के आधार पर। ओआईएल ने यह भी आरोप लगाया है कि समिति रिपोर्ट प्रस्तुत करने से पहले घटना स्थल का दौरा भी नहीं की है।
एक खतरा जिसे रोका जा सकता था
समिति का विचार है कि बाघजान की घटना को आसानी से रोका जा सकता था। इस घटना से वैसे लोग प्रभावित हुए हैं जो पहले से ही बाढ़ की विभीषिका झेल रहे हैं। आग ने आस-पास के गांवों और उसके कृषि-योग्य भूमि को प्रभावित किया है। जलभराव के कारण आग बुझाने के राहतकार्य को बंद कर देना पड़ रहा है। आस-पास की नदियां उफान पर बह रही हैं, जो कुएं के मुहाने पर आग बुझाने के लिए लगाए गए पंपों को जलमग्न कर दे रही हैं।
आस-पास के घरों में आग लगने और कृषि-योग्य भूमि बर्बाद होने के अलावा मगुरी-मोटापुंग वेटलैंड, डिब्रू साखू नेशनल पार्क सहित प्राकृतिक संसाधनों का व्यापक नुकसान पहुंचाया है। यह दोनों क्षेत्र घटना स्थल से मात्र 900 मीटर की दूरी पर स्थित है। यह एक जैवविविधता हॉटस्पॉट है, जो स्तनधारियों की 36 प्रजातियां, पक्षियों की 500 प्रजातियां, तितलियों की 105 प्रजातियां और मछली की 108 प्रजातियों का घर है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि, “प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, असम द्वारा 12 और 23 जून को घटना स्थल और उसके आस-पास मृदा-विश्लेषण से मिट्टी में अनुमत सहिष्णुता सीमा से अधिक ‘तेल और ग्रीस’ पाया गया है। साथ ही ब्लोआउट क्षेत्र के नमूने से, शीशा और तांबा जैसी भारी धातुओं को भी अनुमत सहिष्णुता सीमा से ऊपर बताया गया है।”
रिपोर्ट में कहा गया है कि एक महत्वपूर्ण कार्रवाई की गंभीरता को समझने में कोताही बरती गई। किसी सुरक्षा परीक्षण के बिना ब्लोआउट प्रजेंटर (बीओपी) को हटाया गया। इस नाजुक प्रक्रिया को पूरा करने से पहले उचित योजना नहीं बनाई गई। प्रक्रिया को पूरा करने में योजना और क्रियान्वयन में मेल का अभाव देखा गया। कॉन्ट्रैक्टर और ओआईएल दोनों तरफ से तेल कुआं क्षेत्र में मानक संचालन प्रक्रिया में विचलन और महत्त्वपूर्ण कामों के संचालन में पर्यवेक्षण की गंभीर कमियां थीं।
समिति ओआईएल की आलोचना करते हुए कहती है कि सार्वजनिक उपक्रम के पास स्थिति से निपटने के लिए आकस्मिक योजना नहीं है। रिपोर्ट में, समिति का विचार है कि यह आवश्यक है कि आद्र प्रदेश(वेटलैंड) पारिस्थितिकी, जलविज्ञान, मत्स्य क्षेत्र, जलपाखी तथा अन्य क्षेत्र के विशेषज्ञों और समुदाय के सदस्यों को मिलाकर एक बहु-विषयक टीम का गठन किया जाए. यह टीम समिति को रिपोर्ट करने के साथ मगुरी मोटापुंग वेटलैंड की पुनर्स्थापना के लिए उत्तरदायी होगी। साथ ही इसका काम नुकसान की सीमा का पता लगाना और उसके अनुसार मुआवजा तय करना भी होगा।
संशोधित मुआवजा
समिति ने प्रभावित लोगों को ओआईएल द्वारा प्रदान की गई मुआवजा राशि पर भी असंतोष व्यक्त किया है। इसने अंतरिम मुआवजे के सवाल का आकलन करने के लिए प्रभावित परिवारों की तीन श्रेणियों में गठन का प्रस्ताव दिया है – जिनके घर पूरी तरह से बर्बाद हो गए हैं (25 लाख रुपए), जिनके घर बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गए हैं (10 लाख रुपए), और जिनके घर आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हुए हैं (2.5 लाख रुपए)।
1. जिनके घर पूरी तरह से आग की चपेट में आ गए हैं, जिससे जीवन और स्वास्थ्य को गंभीर चोट पहुंची है। आजीविका की हानि, खेती योग्य भूमि का नष्ट हो जाना, पशुधन, खड़ी फसलों, बागवानी और मत्स्य पालन आदि का नुकसान।
2. जिनके घर आग में बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए हैं, जिससे जीवन और स्वास्थ्य को गंभीर चोट पहुंची है। आजीविका की हानि, खेती योग्य भूमि का नष्ट हो जाना, पशुधन, खड़ी फसलों, बागवानी और मत्स्य पालन आदि का नुकसान।
3. जिनके घर मामूल या आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हुए हैं, साथ ही खड़ी फसले और बागवानी को भी आंशिक रूप से नुकसान पहुंची है। जिससे जीवन और स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा है. साथ ही खेती योग्य भूमि, पशुधन और मतस्य पालन को नुकसान पहुंचा हो।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि समिति अपने बाद की रिपोर्ट में ‘प्रदूषक’ यानी ओआईएल द्वारा पारिस्थितिक तंत्र के नुकसान की बहाली के लिए मुआवजे के भुगतान के लिए आवश्यक सिफारिशें करेगी।
अनुवाद- दीपक कुमार