कोरोना के कारण बीएचयू प्रवेश परीक्षा टालने की मांग, पांच लाख से अधिक छात्र होंगे शामिल

प्रवेश परीक्षा टालने को लेकर नीरज नाम का एक छात्र बैठा अनिश्चितकालीन धरने पर, सोशल मीडिया पर दूसरे छात्रों और छात्र संगठनों का भी मिला समर्थन। कोरोना महामारी के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए ये छात्र प्रवेश परीक्षा को कुछ दिनों के लिए टालने की मांग कर रहे हैं।

Akash PandeyAkash Pandey   15 Aug 2020 10:59 AM GMT

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- आकाश पांडेय

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र स्थित काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में प्रवेश परीक्षा कराने को लेकर बवाल मचा हुआ है। छात्र कोरोना का हवाला देकर अभी प्रवेश परीक्षाएं टालने की मांग कर रहे हैं जबकि विश्वविद्यालय प्रशासन प्रवेश परीक्षाएं कराने के अपने निर्णय से पीछे हटने को तैयार नहीं है। विश्वविद्यालय प्रशासन 16 अगस्त से प्रवेश परीक्षाओं के प्रवेश पत्र भी वितरित करने लगेगा, जबकि नए अधिसूचना के अनुसार प्रवेश परीक्षाएं 24 अगस्त से शुरू होंगी। बीएचयू के दर्जनों ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट कोर्सेज के लिए 5 लाख से भी अधिक छात्रों ने आवेदन किया हुआ है।

छात्रों ने विश्वविद्यालय प्रशासन से मिलकर बात करने की कई कोशिशें की लेकिन वाइंस चांसलर छात्रों से नहीं मिले, कोई प्रशासनिक अधिकारी छात्रों से नहीं मिला। इसी टकराव के बाद कल यानि गुरूवार को एक छात्र नीरज कुमार विश्वविद्यालय प्रशासन पर छात्रों की जान से खिलवाड़ करने और छात्रों की बातें न सुनने का आरोप लगाते हुए अनिश्चितकालीन धरने पर बैठ गए।

नीरज का कहना है, "महामारी के दौरान सभी प्रकार की परीक्षाएं स्थगित की जाए। आज देश में कोरोना संक्रमितों की संख्या 24 लाख से ऊपर हो गई है और 48000 हजार लोगों अपनी जान गवां चुके हैं। रोजाना लगभग 65000 नए केस आ रहें हैं। ऐसे में किसी भी प्रकार की परीक्षा करवाना जिसमें लाखों परीक्षार्थी शामिल होंगे, खतरे से खाली नहीं है। BHU entrance समेत JEE Neet, आदि परीक्षाएं महामारी में स्थगित होनी चाहिए।"


बीएचयू के छात्र प्रियेश पांडेय का कहना है कि प्रशासन की लापरवाही से कितने बच्चे कोरोना पॉजिटिव हुए हैं, इसकी बानगी हम अभी हाल ही में हुए यूपी बीएड की प्रवेश परीक्षा में देख चुके हैं। इसलिए विश्वविद्यालय प्रशासन को अभी प्रवेश परीक्षाएं नहीं करानी चाहिए।

बीएचयू प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी कर रही गोल्डी बताती हैं, "इस समय तो प्रवेश परीक्षा कराने में बहुत ही खतरा है। दूर से आने वाले छात्रों के लिए आने-जाने के दौरान, रूकने और बाहर खाने-पीने के दौरान भी कोरोना का खतरा है। ऐसे में परिवार के लोग भी घर से जाने की अनुमति नहीं देंगे। हमारे पैसे भी बर्बाद होगे और हम परीक्षा भी नहीं दे पाएंगे।"

कोरोना के दौरान किसी भी तरह की परीक्षा का विरोध कर रहे छात्र संगठन आइसा के बीएचयू ईकाई के अध्यक्ष विवेक कहते हैं, "जब देश में 100 केस थे तब नरेन्द्र मोदी लॉकडॉउन की घोषणा करके देश के लाखों मजदूरों को सड़कों पर मरने के लिए छोड़ दिए और अब जब केस की संख्या बढ़कर हर दिन 70000 के आस पास हो चुकी है तब परीक्षा लेने की जिद्द कर रहे है। एक तरफ सरकार खुद लोगों को घरों में रहने की हिदायत दे रही है और दूसरी तरफ देश भर के लाखों छात्रों को परीक्षा देने की लिए मजबूर किया जा रहा है। यह विरोधाभास दर्शाता है कि इस देश की कमान कितने अदूरदर्शी लोगों के हाथों में है।"


वहीं छात्र संगठन एनएसयूआई की बीएचयू ईकाई से जुड़े जगन्नाथ दूबे का मानना है कि जब प्रधानमंत्री सोशल डिस्टेंसिंग के पालन की बात कहते हैं और जब देश कोरोना मामलों में दुनिया में टॉप देशों में हो ऐसे में पांच लाख छात्रों की प्रवेश परीक्षाएं कराना विश्वविद्यालय प्रशासन का मूर्खतापूर्ण कदम है। "जब भूमिपूजन के बाद नृत्य गोपाल दास जी कोरोना संक्रमित पाए गए जिससे प्रधानमंत्री तक के कोरोना संक्रमित होने का खतरा उतपन्न हो गया है। यूपी बीएड की प्रवेश परीक्षा के बाद छात्र लगातार कोरोना संक्रमित हो रहे हैं और ये संख्या लगातार बढ़ रही है ऐसे में केंद्र सरकार और विश्वविद्यालय प्रशासन का रवैया संदेह के घेरे में है।"

इस मामले में विश्वविद्यालय प्रशासन का पक्ष जानने के लिए जब हमने बीएचयू के जन सम्पर्क अधिकारी (पीआरओ) राजेश सिंह को फोन किया तो उन्होंने पहले तो हमारे किसी सवाल का उत्तर देने से मना कर दिया और कहा कि उन्हें इस मामले की कोई जानकारी नहीं हैं। गौरतलब है कि बीएचयू 24 अगस्त से 31 अगस्त तक प्रथम चरण की प्रवेश परीक्षा कराने की घोषणा कर चुका है।

छात्रों का यह डर यूं ही नहीं है। यदि हम दुनिया भर में देखें तो अमेरिका में स्कूलों के खुलने के बार लगभग एक लाख बच्चे कोरोना संक्रमित हुए हैं जो कि सरकार की लापरवाही की निशानी है। इसके साथ ही यदि हम इजराइल को देखें तो यहाँ स्कूलों के खुलने से पहले एक दिन में मात्र 10-15 कोरोना के केस आते थे लेकिन जैसे ही स्कूल खुले इजराइल में एक दिन में आने वाले कोरोना केसों की संख्या लगभग 1200 तक पहुंच गई।


भारत में यूपी बीएड की प्रवेश परीक्षा के बाद जिस तरह से लगातार छात्र संक्रमित हो रहे हैं उसको लेकर यूपी सरकार से सवाल तो होगा कि इस भयंकर महामारी में परीक्षा करने क्या जरूरत आन पड़ी थी? भूमि पूजन और बीएड प्रवेश परीक्षा के बाद उत्तर प्रदेश में कोरोना संक्रमितों के आंकड़े लगातार बढ़ रहे हैं।

यूपी बीएड प्रवेश परीक्षा देने के बाद कोरोना संक्रमित हुए इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र मंगलेश का कहना है कि संक्रमण का सबसे ज्यादा खतरा सफर के दौरान होता है और यदि देश या प्रदेश में किसी परीक्षा का आयोजन कराया जाता है तो परीक्षार्थियों को दूर-दूर तक का सफर करना पड़ता है। अतः किसी भी प्रकार की परीक्षा का आयोजन कराए जाने पर ढेर सारे छात्र इस महामारी के संक्रमण में आ सकते हैं। यह संभव है कि मैं भी सफर के दौरान ही संक्रमित हुआ होऊंगा। मैं यही चाहता हूं सरकार परीक्षाओं का आयोजन बाद में भी करा सकती परंतु वृद्धि दर को देखते हुए अभी भी किसी प्रकार की भी परीक्षा का आयोजन ना ही कराए जाए तो अच्छा है। यदि संभव हो तो सत्र को शून्य किया जाए।


ये घटनाएं साफ तौर पर दर्शा रही हैं कि अभी स्कूलों, विश्वविद्यालयों के खोलने का समय नहीं आया है।

ऐसा नहीं है कि ये सिर्फ बीएचयू का मामला है। आईआईटी और मेडिकल की तैयारी कर रहे छात्र भी अभी प्रवेश परीक्षा कराने के खिलाफ हैं। वे भी सोशल मीडिया पर अपना विरोध दर्ज करा रहे हैं ऐसे में सरकार, शिक्षा मंत्रालय और यूजीसी को सोचना होगा कि क्या इस वक्त प्रवेश परीक्षाएं कराना कोरोना को निमंत्रण देना नहीं होगा?

ये भी पढ़ें- यूपी में कोरोना के 40,000 से अधिक एक्टिव मामले, फिर भी बी.एड. प्रवेश परीक्षा कराने पर अड़ा प्रशासन

   

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