सुभाष पालेकर की जीरो बजट प्राकृतिक खेती को देश भर में बढ़ावा देगी केंद्र सरकार

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सुभाष पालेकर की जीरो बजट प्राकृतिक खेती को देश भर में बढ़ावा देगी केंद्र सरकार

लखनऊ। केंद्र सरकार जीरो बजट पालेकर खेती को बढ़ावा देने जा रही है। गुरूवार दोपहर हुई नीति आयोग के साथ हुई बैठक में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने जानकारी दी। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने ट्वीट करके कहा कि बैठक में किसानों को सुभाष पालेकर खेती करने के लिए प्रेरित करने पर चर्चा हुई, जिसमें शून्य लागत पर खेती होती है।

क्या है पालेकर खेती?

पालेकर खेती, खेती-किसानी की एक विधि है जिसमें शून्य लागत पर किसानों को खेती करना सीखाया जाता है। यह पद्धति महाराष्ट्र के विदर्भ के किसान वैज्ञानिक सुभाष पालेकर ने विकसित की है। इसमें उनका 15 सालों का गहन अनुसंधान शामिल है।

इस विधि में संकर या जीएम बीज का उपयोग नहीं होता है, सिर्फ देसी बीज का उपयोग होता है। एक ही बीज का उपयोग कई साल तक होता है। इस खेती का सिद्धांत है कि किसी भी उपज का 98.5 प्रतिशत हिस्सा प्रकृति (हवा, पानी, प्रकाश) से बनता है, जिसके लिए शून्य लागत होती है। वहीं 1.5 प्रतिशत हिस्सा जमीन से लिया जाता है। इस 1.5 प्रतिशत के लिए हजारों रूपए खर्च करने की जरूरत नहीं है।

इस विधि में हवा से पानी लिया जाता है। वहीं जमीन से पानी लेने के लिए केंचुए काम आते हैं जो जमीन में अनंत कोटि छिद्र करते हैं। इससे बारिश का पूरा पानी जमीन में चला जाता है और वहीं पानी जमीन से जड़ को मिलता है। इसलिए इस खेती में किसी भी तरह के खाद, कीटनाशक और वर्मी कम्पोस्ट का प्रयोग नहीं करना होता है।

इस प्रकार की खेती में गाय काफी महत्वपूर्ण होते हैं। देसी गाय के गोबर का उपयोग ना सिर्फ खाद बल्कि कीटनाशक का भी काम करता है। पालेकर का कहना है कि इस जीरो बजट खेती में उपज बढ़ती है और किसानों को दाम भी अधिक मिलता है। पालेकर का दावा है कि अगर किसान इस विधि का उपयोग करते हैं तो उन्हें पलायन या आत्महत्या के लिए मजबूर नहीं होना पड़ेगा। इसका प्रयोग विदेशों में भी किया जा चुका है।

सुभाष पालेकर पिछले 20 सालों से लगातार शून्य लागत प्राकृतिक कृषि की खेती का प्रशिक्षण दे रहे हैं। इस पद्धति को अपनाकर लाखों को बिना लागत के खेती से अपनी आय बढ़ाते हुए मुनाफा कमा रहे हैं। उनके इस योगदान को देखते हुए साल 2016 में भारत सरकार ने उन्हें पदमश्री सम्मान से सम्मानित किया था।

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कौन हैं सुभाष पालेकर?

किसानों के बीच कृषि ऋषि के रूप में पहचाने जाने वाले सुभाष पालेकर का जन्म महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र के अमरावती जिले में हुआ था। उन्हें शून्य लागत कृषि का जन्मदाता कहा जाता है। कृषि स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने अपने गांव में एक किसान के रूप में 1973 से लेकर 1985 तक खेती की। आधुनिक और रासायनिक खेती करने के बाद भी जब उत्पादन नहीं बढ़ा तो उन्होंने खेती-किसानी में प्रयोग करना शुरू किया।


गांव कनेक्शन से एक साक्षात्कार में सुभाष पालेकर बताते हैं, "जब खेत में पर्याप्त खाद डालने के बाद भी उत्पादन नहीं बढा तो मैं जंगल की तरफ चले गए। जंगल में जाकर मेरे मन में प्रश्न पैदा हुआ कि बिना मानवीय सहायता के इतने बड़े और हरे-भरे जंगल कैसे खड़े होते हैं? यहां इनके इनके पोषण के लिए रासायनिक उर्वरक कौन डालता है? जब यह बिना रासायनिक खाद के खड़े रह सकते हैं तो हमारे खेत क्यों नहीं? इसी को आधार बनाकर मैंने बिना लागत की खेती करने का अनुसंधान शुरू किया और शून्य लागत खेती की विधि विकसित की।"

सुभाष पालेकर एक कृषि वैज्ञानिक के साथ ही संपादक भी हैं और वह 1996 से लेकर 1998 तक कृषि पत्रिका का संपादन भी कर चुके हैं। इसके साथ ही वह हिन्दी, अंग्रेजी, मराठी सहित कई भाषाओं में 15 से अधिक पुस्तकें भी लिख चुके हैं। उनकी विकसित की गई विधि पर आईआईटी दिल्ली के छात्र शोध भी कर रहे हैं।

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