दिल्लीः बेरोजगार हुए रावण का पुतला बनाने वाले कारीगर, दो जून की रोटी का संकट

देश में जारी कोरोना महामारी के बीच तमाम उद्योग-धंधों पर असर पड़ा है। दशहरे के समय में राजधानी दिल्ली में रावण का पुतला बनाने का व्यवसाय हर साल काफी चलता है, लेकिन कोरोना संकट के कारण इस साल यह व्यवसाय भी संकट में है। पुतला बनाने वाले कारीगर दो जून की रोजी-रोटी के लिए भी संघर्ष कर रहे हैं।
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देश की राजधानी दिल्ली के पश्चिमी हिस्से मे स्थित तीतरपुर में हर साल दशहरे के समय सैकड़ों रावण जन्म लेते हैं। इस इलाके में सैकड़ों कारीगर रावण का पुतला बनाते हैं। सुभाष नगर और टैगोर गार्डन के बीच खींची तीतरपुर के इस लम्बी सड़क पर इस साल ना रावण दिखाई दे रहा है और ना रावण बनाने वाले कारीगर। कोरोना वायरस संक्रमण के कारण इस साल शहर के दर्जनों रामलीला मैदान खाली पड़े हैं। जिसके कारण रावण बनाने वाले कारीगरों की दुकानें बंद पड़ी हैं। आपको बता दें कि दिल्ली रावण का पुतला बनाने वाला एशिया का सबसे बड़ा बाजार है।

महेंद्र 45 साल से रावण का पुतला बनाने के व्यवसाय में हैं। वह इस साल भी रावण का पुतला बना रहे लेकिन उनके अलावा सड़क पर और कोई अन्य रावण नहीं बना रहा। वरना हर साल यह सड़क रावण के पुतलों से भरा रहता था। महेंद्र ने गांव कनेक्शन को बताया कि उनके बनाए रावण हर साल देश के कोने-कोने में जाया करते थे। लेकिन इस साल उनके पास कोई बड़ा आर्डर नहीं आया है। वह कहते हैं, “हमारे यहां से हर साल असम, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और पंजाब में रावण का पुतला भेजा जाता था। मैंने खुद पिछले साल लगभग चार हजार पुतला बेचा था। लेकिन इस बार तो दाल- रोटी का हिसाब निकालना मुश्किल हो गया है।”

नहीं मिल रहे आर्डर

रावण का पुतला बनाने वालों को जन्माष्टमी के बाद से ही आर्डर आना शुरू हो जाता है। महेंद्र ने बताया कि पिछले साल तक लगभग 500 से 550 रुपये फीट के हिसाब से पुतले बेचे जाते थे। लेकिन इस साल लोग इस कीमत पर पुतले खरीदने को तैयार नहीं हैं। महेंद्र हर साल दशहरे के सीजन में 4 से 5 लाख रूपये के बीच कमा लेते थे, लेकिन इस साल मांग 50% तक कम हो गई है। वह कहते हैं कि पिछले साल प्रदूषण की समस्या के चलते अधिक रावण नहीं बिके और इस बार कोरोना ने पूरी तरह तबाह कर दिया।

राम मंदिर निर्माण से थी उम्मीदें

महेंद्र बताते हैं कि इस साल सभी को उम्मीद थी कि राम मंदिर के भव्य निर्माण के बाद दशहरा खूब धूमधाम के साथ मनाया जाएगा और रावण के पुतले की खूब बिक्री होगी। लेकिन उम्मीद के मुताबिक कुछ होता दिखाई नहीं दे रहा है।

देश में जारी कोरोना संकट के बीच 11 अक्टूबर को रामलीला के आयोजन को लेकर दिल्ली सरकार ने आदेश जारी किया था। दिल्ली के मुख्य सचिव एवं डीडीएमए की राज्य कार्यकारी समिति के अध्यक्ष विजय देव ने कहा था कि सभी कार्यक्रम आयोजकों को कोरोना के विशेष प्रोटोकाल नियमों (एसओपी) का पालन करना होगा और पंडाल के आसपास जलूस, मेला, झांकी या फ़ूड स्टाल लगाने की अनुमति नहीं होगी। वहीँ गृह मंत्रालय ने कहा था कि बंद जगह पर 50 फीसदी लोग ही मौजूद रह सकते हैं और खुले स्थानों पर सोशल डिस्टेन्सिंग के नियमों का पालन करना ज़रूरी है।

रिस्क उठाकर बनाए जा रहे हैं रावण के पुतले

पांच से 50 फीट तक की ऊँचाई वाले रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद देश की राजधानी के कारीगरों द्वारा बनाए जाते हैं। हर साल जन्माष्टमी के बाद से आर्डर आना शुरू हो जाता है, लेकिन इस बार पहले से कोई आर्डर नहीं मिला है। महेंद्र रिस्क उठाकर अपने पैसों से रावण बना रहे हैं। “रावण बनाने के लिए बांस, तार, साडी का कपडा और पेपर लगता है, जिसका दाम भी इस साल बढ़ गया है। एक रावण बनाने पर सात से दस हज़ार का खर्च आता है, इसके अलावा श्रम अलग से लगता है। अगर रावण नहीं बिके तो लाखों का नुकसान सहना पड़ेगा। हम पूरे साल का इसी से कमा लेते थे, अब पूरे साल का बचा इस पर लगा दिए हैं,” महेंद्र कहते हैं।

कारीगरों की मांग हुई कम

रावण का पुतला बनाने के लिए कारीगरों को बिहार, उत्तरप्रदेश और दिल्ली के नज़दीकी क्षेत्रों से बुलाया जाता है। करीब 5000 कारीगर दिन-रात एक कर रावण का पुतला तैयार करते हैं। इन्हे दिन का 250 से 500 रूपये तक मजदूरी मिल जाता है। लेकिन इस साल ना कारीगर दिखाई दे रहा है और ना रावण बनाने वालों की दुकान। सुभाष नगर से लेकर राजौरी गार्डन मेट्रो स्टेशन तक की सड़क खाली पड़ी है। केवल एक या दो लोग ही कारीगरों के साथ रावण बनाने का जोखिम उठा रहे हैं। महेंद्र बताते हैं कि उन्हें हर साल 25-30 मजदूरों की आवश्यकता रहती है, लेकिन इस बार पहले से आर्डर ना मिलने के चलते वह सिर्फ दस लोगों के साथ ही काम चला रहे हैं।

बबलू (27 वर्ष) पुतला बनाने वाले एक ऐसे ही कारीगर है, जो दिल्ली के मादीपुर में रहते हैं। पिछले साल तक वह रावण का पुतला बनाया करते थे और दो महीने में बीस हज़ार रूपये तक कमा लेते थे। लेकिन इस बार उनके पास काम नहीं है। “सुभाष नगर मेट्रो के नीचे रावण के पुतले की दुकान लगाती था, लेकिन इस साल जब हम वहां पहुंचे तो कोई नहीं मिला। इस साल हम कोई और काम करेंगे। यूं तो जब रावण बनाते थे तब हर दिन का रु.350 मिल जाता था। अब रु. 200 में दिहाड़ी पर पुताई का काम कर रहे हैं,” बबलू कहते हैं। वह पिछले पांच साल से रावण बना रहे हैं। हालांकि इस साल भी वो रावण बना रहे हैं लेकिन किसी सेठ या मालिक के लिए नहीं बल्कि अपने इलाके के बच्चों के लिए। बच्चो ने इसके लिए चंदा जमा किया है। बबलू उनके साथ मिलकर रावण तैयार कर रहे हैं और बच्चों को भी रावण बनाने की कला सिखा रहे हैं।

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इस मुस्लिम परिवार में तीन पीढ़ियों से हो रहा रावण का पुतला बनाने का काम

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