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कोविड-19: स्कूल बंद होने से बच्चों की सीखने की क्षमता पर गंभीर असर, 82% छात्र गणित के सबक भूले, 92% भाषा के मामले में पिछड़े

एक सर्वे रिपोर्ट के अनुसार स्कूल न खुलने से छात्र ना सिर्फ अपनी वर्तमान कक्षाओं के सबक को ठीक ढंग से नहीं सीख पा रहे हैं, बल्कि पिछली कक्षाओं में जो सीखा था, उसे भी भूलने लगे हैं।
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कोरोना के कारण लगभग एक साल तक स्कूलों के लगातार बंद रहने से बच्चों की सीखने की क्षमता पर गंभीर असर पड़ा है। एक सर्वे के अनुसार बच्चे ऑनलाइन कक्षाओं में कुछ नया सीखने की बजाय अपनी पिछली कक्षाओं में जो सीखा था उसे भी भूल रहे हैं। विशेषज्ञों के अनुसार ऐसा अध्यापक-छात्र के सीधा संवाद न होने और ऑनलाइन कक्षाओं के प्रभावी ढंग से काम न करने के कारण हो रहा है।

शिक्षा के क्षेत्र में लगातार काम करने वाले अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय की तरफ़ से यह सर्वे करवाया गया है। जनवरी 2021 में हुआ यह सर्वे पाँच राज्यों (छत्तीसगढ़, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड) के 44 ज़िलों के 1,137 सरकारी स्कूलों के कक्षा 2 से कक्षा 6 तक के 16,067 छात्रों पर किया गया। इस सर्वे के अनुसार स्कूल न खुलने से छात्र ना सिर्फ अपनी वर्तमान कक्षाओं के सबक को ठीक ढंग से नहीं सीख पा रहे हैं, बल्कि पिछली कक्षाओं में जो सीखा था, उसे भी भूलने लगे हैं।

सर्वे के अनुसार, 92% बच्चे भाषा के मामले में कम-से-कम एक विशेष बुनियादी कौशल को भूल चुके हैं। कक्षा 2 के 92%, कक्षा 3 के 89%, कक्षा 4 के 90%, कक्षा 5 के 95% और कक्षा 6 के 93% छात्रों में यह कमी देखी गई है। इस सर्वे में भाषाई स्तर पर छात्रों के बोलने, पढ़ने, लिखने और उसे सुन या पढ़ कर याद करने की क्षमता को भी जांचा गया।

सर्वे में पाया गया कि 54% छात्रों की मौखिक अभिव्यक्ति प्रभावित हुई है। इसका अर्थ है कि वे अपने कक्षा के पाठ्यक्रम मसलन किसी शब्द, चित्र, कविता, कहानी आदि को देखकर उसकी ठीक ढंग से व्याख्या नहीं कर पा रहे हैं। इसी तरह 42% छात्रों की पढ़ने की क्षमता प्रभावित हुई है। वे न सिर्फ अपनी वर्तमान कक्षा बल्कि अपनी पिछली कक्षाओं के पाठ को भी सही ढंग से पढ़ नहीं पा रहे हैं। कक्षा 2 और कक्षा 3 के छात्रों में यह कमी सबसे अधिक है, जिसके क्रमशः 71% और 67% छात्र अपनी कक्षा के पाठ नहीं पढ़ पा रहे हैं। 40% छात्रों की भाषाई लेखन क्षमता भी स्कूल न खुलने के कारण प्रभावित हुई है।

सर्वे के अनुसार कुल 82% बच्चे पिछली कक्षाओं में सीखे गए गणित के कम-से-कम एक सबक को भूल गए हैं। बच्चे नंबर पहचानना, जोड़-घटाव-गुणा-भाग आदि करना तक भूल रहे हैं। अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी ने इस सर्वे की रिपोर्ट जारी करते हुए एक बयान भी जारी किया है, जिसमें संस्थान की तरफ से कहा गया कि भाषा और गणित का बुनियादी कौशल ही दूसरे सभी विषयों को पढ़ने का आधार बनते हैं।

पाठ के किसी अंश को समझते हुए पढ़ना, पढ़ी हुई सामग्री का सार अपने शब्दों में बताना और संख्याओं का जोड़ना-घटाना करना आदि इन बुनियादी कौशलों में शामिल हैं। इसलिए सर्वे में भाषा और गणित के ज्ञान पर ज़ोर दिया गया है। विश्वविद्यालय का कहना है कि अगर भाषा और गणित में बच्चे कमजोर हो रहे हैं, तो अन्य विषयों में हुए नुकसान का अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है।

रिपोर्ट में इसके समाधान पर भी बात करते हुए कहा गया है कि अब जब स्कूल धीरे-धीरे खुलने लगे हैं तो सरकार को इन बच्चों का स्तर सुधारने में अतिरिक्त प्रयास करना होगा। इसकी भरपाई के लिए ब्रिज कोर्स और पढ़ाई के घंटों में बढ़ोतरी जैसे प्रयास की जरूरत होगी ताकि बच्चे अपने भूले गए कौशल को फिर से हासिल कर सकें। इसके लिए शिक्षकों को भी अपनी कार्य क्षमता और समय-सीमा बढ़ानी होगी। शिक्षकों को इस नुक़सान की भरपाई करने के लिए उचित समय देना होगा। इसके अलावा यह भी कहा गया है कि बच्चों को पास करके अगली कक्षा में ले जाने की हड़बड़ी से भी बचना होगा।

इस सर्वे के लिए दो हज़ार से भी अधिक शिक्षकों का सहयोग लिया गया। उनसे जाना गया कि मार्च 2020 में जब स्कूल बंद हुए तो उस समय बच्चों के बुनियादी कौशल क्या थे और उसकी तुलना में वर्तमान में बच्चों में कितना परिवर्तन हुआ है। सर्वे के दौरान शिक्षकों ने अपनी पहचान सार्वजनिक नहीं करते हुए कोविड के दौरान के अपने अनुभव भी साझा किए।

राजस्थान के एक सरकारी अध्यापक ने बताया, “सरकारी विद्यालयों में अधिकतम ग्रामीण क्षेत्र के ग़रीब घरों के बच्चे पढ़ते हैं। स्कूल बंद रहने के दौरान ऑनलाइन कक्षाओं से इनकी कोई खास पढ़ाई नहीं हो सकी। इन बच्चों के माता-पिता भी इतने सक्षम नहीं होते कि वे घर पर बच्चों की पढ़ाई के दौरान मदद कर सकें। कुल मिलाकर इसका सबसे अधिक प्रभाव ग़रीब तबकों के बच्चों पर पड़ा है।” उन्होंने आशंका भी जाहिर की कि उनके विद्यालय के जो बच्चे पढ़ाई में अपनी रूचि खो चुके हैं, वे हो सकता है कि कभी स्कूल ना आए।

उत्तराखंड की एक महिला शिक्षिका ने अपना मार्मिक अनुभव साझा करते हुए कहा, “लॉकडाउन के बाद जब मैं पहली बार बाजार गईं, तो मैंने देखा कि मेरी ही स्कूल में पढ़ रही एक बच्ची किसी कपड़े की दुकान पर सूट बेच रही है। कुछ दिन बाद मैंने अपने एक और छात्र को एक जूते की दुकान पर काम करते हुए पाया। यह सब देखना मेरे लिए बहुत ही दर्दनाक था।”

अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के कुलपति अनुराग बेहार ने इस रिपोर्ट को जारी करते हुए कहा, “कोरोना ने भारत समेत पूरी दुनिया के एक पूरे शैक्षणिक सत्र को बर्बाद कर दिया है। इससे बच्चे अकादमिक रूप से पिछड़ रहे हैं और इससे बहुत ही गंभीर और व्यापक नुकसान होगा। सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि जब स्कूल खोले जाएँ तब शिक्षकों को इस नुक़सान की भरपाई करने का समय दिया जाना होगा और इसमें उन्हें पर्याप्त आवश्यक सहयोग प्रदान किया जाना होगा।”

“इसके लिए सभी राज्यों को स्कूल खुलने के बाद सभी छुट्टियाँ ख़त्म करते हुए 2020-21 के अकादमिक सत्र को लंबा करना होगा और पाठ्यक्रम को फिर से अलग ढंग से व्यवस्थित कर भविष्य की पढ़ाई की योजना बनानी होगी, ताकि कोरोना के दौरान हुए नुकसान को कम से कम किया जा सके,” उन्होंने कहा।

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