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‘मैं चाहती तो पहली फ्लाईट लेकर भारत आ जाती, लेकिन मैं इटली में ही रहीं क्योंकि …’

ऐश्वर्या राठौर इटली के मिलान में एक डिजाइनर हैं। वह कई दिनों से अपने कमरे मे क्वारंटाइन हैं। उन्होंने अपने अनुभवों पर एक डायरी लिखकर भेजी है, जिसका यह हिंदी अनुवाद है।
#corona

बाईस फरवरी, शनिवार की सुबह थी। मैं कुछ दोस्तों के साथ इटली के मिलान शहर में लंच के लिए निकली थी। तब इटली में कोरोना के मामले उतने अधिक नहीं थे। लोगों के बीच बस इसकी थोड़ी-बहुत फुसफुसाहट थी। उस दिन तक इटली में कोरोनो वायरस के सिर्फ 79 पॉजिटिव मामले सामने आए थे।

मेरे लिए यह कोई बड़ी संख्या नहीं थी। इसके अलावा यह ‘सिर्फ एक फ्लू’ ही तो था। कोरोनावायरस चीन में था, जो ‘बहुत दूर’ था। हां, मैं बिल्कुल वैसा ही सोच रही थी, जैसा भारत में आप लोग कुछ दिनों पहले तक सोच रहे थे। मुझे बहुत कम ही पता था कि इस वायरस को दूर रखने के लिए मुझे क्या करना है और क्या नहीं।

अगले दिन मेरा एक दोस्त भारत वापस आने वाला था। उसने मुझे चिंतित होकर फोन किया कि कुछ अधिकारी उसे उत्तरी इटली में क्वारंटाइन होने की बात कर रहे हैं। मैंने पहले उसकी बातों पर यकीन नहीं किया, लेकिन फिर भी घर में मैंने कुछ सामानों को स्टॉक करना शुरू कर दिया। मेरी तरह ही आस-पास ऐसे कई इंसान थे, जो ऐसा सोच रहे थे। सुपरमार्केट पूरी तरह से भरा हुआ था लेकिन मैंने कभी भी सुपरमार्केट में पास्ता वाले हिस्से को इतना खाली नहीं देखा था।

उस वीकेंड हमें अपने ऑफिस से एक सप्ताह तक वर्क फ्रॉम होम करने के लिए कह दिया गया। एक अंतर्मुखी व्यक्ति होने की वजह से यह मेरे लिए यह एक बढ़िया कदम था। मैं वास्तव में इसको लेकर बहुत उत्साहित थी। यह मुझे उस समय की याद दिलाता है जब 2009 में स्वाइन-फ्लू के कारण भारत में लगभग दस दिनों के लिए स्कूल बंद कर दिए गए थे। मुझे लगा यह कुछ इसी तरह का होगा।

एक हफ्ते बाद इसकी अवधि को और बढ़ाया गया और फिर 3 अप्रैल तक पूरे देश में तालाबंदी की घोषणा कर दी गई। शुक्र है हमें आवश्यक चीजें घर तक मिल रही थीं। लेकिन जैसा कि मामले हर दिन बढ़ रहे थे, इसकी संभावना भी बढ़ रही थी कि इस लॉकडाउन को और आगे भी बढ़ाया जाएगा।

मैं काफी भाग्यशाली हूं, लेकिन मुझे यह भी पता है कि दुनिया में बहुत सारे लोगों के पास यह सुविधा नहीं है। मेरे पास एक ऐसी नौकरी है जिससे मैं घर से काम करके भी पैसे अर्जित कर सकती हूं। मेरे पास एक इंटरनेट कनेक्शन भी है, जो मुझे दुनिया भर से और अपने परिवार-दोस्तों से जुड़े रहने का मौका देता है। क्योंकि मैं अकेले रहती हूं, इसलिए मुझे इस बात का भी डर नहीं है कि अगर मैं संक्रमित हो जाऊं तो अपने आस-पास के और लोगों को भी संक्रमित कर सकती हूं।

हालांकि मैं इतना जरूर कह सकती हूं कि किराने के सामान का प्रबंधन कुछ दिनों बाद थोड़ा मुश्किल हो गया था। पहली बार मैंने उसे ऑनलाइन मंगाया, दूसरी बार वेबसाइट पर ही दो घंटे की लाईन लगी थी और तीसरी बार मुझे एक स्टोर पर जाना पड़ा। सड़कों पर दिन-ब-दिन खामोशी बढ़ती जा रही थी, जो काफी निराश करने वाला था।

हफ्ते बीत रहे थे। मुझे अब सोचने के लिए बहुत सारा वक्त मिल रहा था। लोगों से भरा रहने वाला शहर अब एकदम से खाली था। मेरा पड़ोसी अब दिन में दस-दस बार पियानो बजा रहा था। कभी-कभी यह भी महसूस होता था कि किसी इंसान से बातचीत ना करने की वजह से मैं पागल हो रही हूं।

एक दिन ऐसा भी समय आया कि मैं उन चीजों को करने में बोरियत महसूस करने लगी, जिसे पहले मुझे करने में बड़ा आनंद आता था। तब मैंने एक दोस्त को कॉल किया और हमने अपना कॉल अंताक्षरी का खेल खेल समाप्त किया। मुझे याद आया कि मैने पिछली बार अंताक्षरी तब खेली थी, जब मेरे पास स्मार्टफोन नहीं था। कुछ पाने की हड़बड़ी में हम ठहरना और यह सब करना भूल जाते हैं। सब इधर-उधर हो जाता है।

लेकिन अब रातों में मुझे डर और चिंता होने लगी थी। कोरोना वायरस की लगातार बढ़ती संख्याओं, अस्पतालों के वीडियो, ताबूतों की कतारों, डॉक्टरों के अनुभव सब दिल झकझोर देने वाले थे। मुझे लगने लगा था कि जब यह सब खत्म होगा तो शायद सब कुछ ही खत्म हो जाएगा। यह सोच कर और भी दिल दहल जाता था कि अगर भारत में ऐसा होता है तो यह संकट और बढ़ जाएगा क्योंकि भारत की जनसंख्या और चिकित्सा की बुनियादी ढांचें बहुत प्रतिकूल हैं।

यह इस समय की मांग है कि हमें बहुत जिम्मेदारी से काम करना है और दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करना है। भले ही मैं भारत से हजारों मील दूर हूं और आसानी से पहली उड़ान लेकर वापस आ सकती थी, मैंने #stayathome को चुना क्योंकि यह अब सिर्फ मेरे बारे में नहीं है। इससे निपटने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग और सेल्फ आइशोलेसन ही एकमात्र तरीका है। यदि आप में से किसी को लगता है कि आपके साथ ऐसा नहीं होगा तो निश्चित रूप से आप गलतफहमी में हैं। आज हम जिस तरह से कार्य करेंगे, वैसा ही भविष्य हमें कल को देखने को मिलेगा।

घर पर रहकर मैं इन दिनों अपने पौधों की ओर रुख करती हूं। मिट्टी को छूना मुझे शांत करता है। एक बार जब यह सब खत्म हो जाएगा तो मैं एक नर्सरी में जाऊंगी और टमाटर का पौधा खरीदूंगी। हम एक अंधाधुंध दौड़ में लगे हुए थे लेकिन एक छोटे से वायरस ने एक लंबा विराम देकर हमें सोचने पर मजबूर किया है कि वास्तव में हम कहां हैं। चलिए, इस समय का बेहतर उपयोग करें।

(ऐश्वर्या राठौड़ एक डिजाइनर हैं, जो इटली के मिलान में रहती हैं)

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