भारत में गधों की संख्या लगातार कम होती जा रही है। पिछले एक दशक में देश गधों की आधी से अधिक आबादी को खो चुका है। 2019 की पशु जनगणना के अनुसार देश में गधों की कुल आबादी 1.2 लाख है, जो पिछली यानी 2012 की जनगणना से 61.23 प्रतिशत घट गई थी। 2012 में यह संख्या 3.2 लाख थी। अफसोस की बात यह है कि गधा एक ऐसा जानवर है, जिनके साथ सबसे अधिक दुर्व्यवहार होता है, उनसे अधिक काम लिया जाता है और थोड़ा भी हालत खराब होने पर उन्हें मरने के लिए छोड़ दिया जाता है।
घोड़ों और गधों की प्रजाति पर शोध करने वाला संस्थान, ICAR- नेशनल रिसर्च सेंटर ऑन इक्विन्स, हिसार (राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र) कृत्रिम गर्भाधान के माध्यम से गधों की आबादी को बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठा सकता है। इसके अलावा मलधारी जब अपने मवेशियों को रण के कच्छ में ले जाते हैं, तो उस समय उन्हें जंगली गधों के साथ संबंध बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है। इसके साथ ही गधा-गधी को सिर्फ भार ढोने के लिए उपयोगी समझने के सोच पर रोक लगाया जाना चाहिए और उन्हें दुनिया के सबसे महंगे दूध का उत्पादक भी समझा जाना चाहिए।
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क्लियोपेट्रा नाम की महारानी अपनी सुंदरता को बनाए रखने के लिए गधी के दूध से स्नान करती थी। अब 2000 से अधिक वर्षों के बाद गधे का दूध न सिर्फ फैशन उत्पाद के रूप में बल्कि सुपर फूड के रूप में भी वापस आ गया है। गधी का सिर्फ 100 मिलीलीटर दूध 700 रुपये में मिलता है।
अपने देश में भी गधी के दूध को महत्व देना चाहिए ताकि उनका संरक्षण हो सके। गधी के दूध को कई कॉस्मेटिक उत्पादों के लिए उपयोगी माना जाता है। सौंदर्य प्रसाधन के उत्पादों में गधी के दूध का उपयोग एक एंटीऑक्सिडेंट के रूप में किया जाता है जो क्लीनिंग करने के साथ त्वचा में नमी बनाए रखता है।
गधी के दूध में मौजूद वसा की मात्रा त्वचा को पोषण देने और उसे मुलायम बनाने का काम करती है। गधी का दूध विटामिन और पॉली अनसेचुरेटेड वसा से भरपूर होता है। 200 मिलीलीटर के शावर जेल शैम्पू की कीमत 2,400 रुपये होती है। गधी के दूध से बने साबुन, क्रीम, सौंदर्य प्रसाधन, मॉइस्चराइज़र और स्किनकेयर उत्पादों की सौंदर्य बाजारों में भारी मांग है। गधी के दूध में गाय के दूध के मुकाबले चार गुना विटामिन सी होता है। इसके अलावा सौंदर्य प्रसाधन में इस्तेमाल के अलावा इसमें कैसीन, लैक्टोज, विटामिन ए, बी 1, बी 2, बी 6, विटामिन डी और विटामिन ई भी होता है।
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन के अनुसार गधी के दूध में विशेष पोषक तत्व होते हैं। इसे उन शिशुओं के लिए एक विकल्प के तौर पर देखा जाता है जिनको गाय के दूध से एलर्जी होता है। गधी के दूध को अमेरिका सहित कई देशों में प्रमुखता से स्वीकारा जाता है लेकिन अभी तक भारत ने इस पर कोई विचार नहीं किया है। अमेरिका सहित अन्य देशों में यह बड़े पैमाने पर सौंदर्य प्रसाधन उद्योग और दुग्ध उद्योग में उपयोग किया जा रहा है।
(लेखक भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के पूर्व निदेशक और वर्तमान में अफ्रीका में यूनाइटेड नेशन के प्रतिनिधि हैं।)
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